गहरे पानी में डूबो तो स्थिर रहो, जीवन में संकट आए तो धैर्य रखो : पुज्य इंद्रेश जी महाराज

Ravikant Mishra

-द्रौपदी की क्षमा और ठाकुर जी की कृपा… श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन कई महत्वपूर्ण दिव्य प्रसंग पुज्य इंद्रेश जी ने सुनाएं

रांची : टाटीसिलवे के ईईएफ मैदान में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन कथा व्यास पुज्य इंद्रेश जी उपाध्याय ने अनेक महत्वपूर्ण प्रसंगों का वर्णन किया। इस दिन विशेष रूप से द्रौपदी की क्षमा, ठाकुर जी की कृपा और कुंती के भक्ति भाव का विस्तृत रूप से उल्लेख किया गया। कथा के दौरान इंद्रेश जी ने बताया कि किस प्रकार अश्वत्थामा ने क्रोध और प्रतिशोध की भावना में आकर द्रौपदी के पांच पुत्रों का वध कर दिया। जब अर्जुन को इस घटना का पता चला, तो उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि वह अश्वत्थामा को जीवित नहीं छोड़ेंगे। लेकिन इसी कठिन परिस्थिति में द्रौपदी ने अपने अद्भुत धैर्य और क्षमाभाव का परिचय दिया। उन्होंने अश्वत्थामा को क्षमा करते हुए तर्क दिया कि वह गुरु पुत्र है, जिनसे हमने शिक्षा पाई है। इन्हें मारने से हमारे पुत्र तो वापस नहीं आ सकते, लेकिन प्रतिशोध से कुछ भी अच्छा नहीं होगा। द्रौपदी की इस महानता से ठाकुर जी अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने उन्हें अपना नाम जोड़ते हुए ‘कृष्णम’ नाम दिया।

कथा के दौरान इंद्रेश जी उपाध्याय ने जीवन की कठिन परिस्थितियों को समझाने के लिए जल में डूबने का उदाहरण दिया। उन्होंने बताया कि जब गहरे पानी में चले जाते हैं, तो बचने के लिए दो बातों का ध्यान रखना चाहिए…पहला मुंह बंद रखना और दूसरा हाथ-पैर न मारकर शरीर को स्थिर छोड़ देना। इसी प्रकार जब जीवन में भयावह स्थितियां आएं, तो शांत रहकर धैर्य रखना चाहिए। भगवान हमेशा अपने भक्तों की प्रत्येक गतिविधि पर दृष्टि रखते हैं और उन्हें सही राह दिखाते हैं।  

*कथा के क्रम में कुंती के भक्ति भाव के प्रसंग का भी हुआ उल्लेख*

कथा में एक और महत्वपूर्ण प्रसंग कुंती के भक्ति भाव का भी आया। ठाकुर जी ने कुंती को आश्वस्त किया कि वह जहां भी उनका स्मरण करेंगी, वे तुरंत वहां उपस्थित हो जाएंगे। एक बार जब कुंती को पता चला कि ठाकुर जी की लीला है, यह सुनते ही कुंती का हृदय भाव-विभोर हो गया और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।  

*मानव जीवन में सद्गुण और अवगुण दोनों होते हैं, किसका चयन करना है यह खुद पर निर्भर करता है*

व्यास जी ने बताया कि मानव जीवन में सद्गुण और अवगुण दोनों ही होते हैं। यह व्यक्ति के ऊपर निर्भर करता है कि वह किसका चयन करता है। भागवत कथा सुनकर और गुरुजनों की वाणी का अनुसरण करने वाला व्यक्ति सद्गुण के मार्ग पर आगे बढ़ता है और परमात्मा की कृपा प्राप्त करता है।  श्रीमद् भागवत कथा के इस दिव्य प्रसंग ने श्रद्धालुओं को जीवन में क्षमा, धैर्य और भक्ति का महत्व समझाने का संदेश दिया।

*कथा में उमड़ी आस्था की लहर, भजनों पर झूमे श्रद्धालु*

कथा के तीसरे दिन भक्ति और श्रद्धा का अनुपम दृश्य देखने को मिला। कथा स्थल में करीब 10 हजार भागवत प्रेमियों की भीड़ उमड़ी, जिनकी आस्था और उत्साह चरम पर था। कथा व्यास पुज्य इंद्रेश जी उपाध्याय के दिव्य प्रवचनों ने श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया। महाराज जी के भजन शुरू होते ही पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा। श्रद्धालु झूम उठे और भजन-कीर्तन में लीन होकर ठाकुर जी की महिमा का गुणगान करने लगे। कथा के हर प्रसंग में लोगों की गहरी आस्था देखने को मिली, जिससे माहौल दिव्यता से भर उठा।

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*शीलं परमं भूषणम्*
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