एक दूसरे का सम्मान संवैधानिक संस्थाओं का कर्तव्य: धनखड़

Live 7 Desk

लखनऊ, 01 मई (लाइव 7) उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संवैधानिक संस्थाओं के टकराव को लोकतंत्र के लिये हानिकारक बताते हुये गुरुवार को कहा कि देश की सभी संवैधानिक संस्थाओं काे एक दूसरे का सम्मान करना चाहिये और यह सम्मान तभी होता है जब सभी संस्थायें अपने-अपने दायरे में सीमित रहती हैं।
एकेटीयू में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के जीवन वृतांत पर आधारित पुस्तक ‘चुनौतियां मुझे पसंद हैं’ के विमोचन के अवसर पर उन्होने हाल ही में संसद में पारित वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर उच्चतम न्यायालय के रुख की तरफ इशारा करते हुए कहा, “ सबसे खतरनाक चुनौती वह है जो अपनों से मिलती है, जिसकी चर्चा हम नहीं कर सकते। जो चुनौती अपनों से मिलती है जिसका तार्किक आधार नहीं है, जिसका राष्ट्र विकास से संबंध नहीं है, जो राजकाज से जुड़ी हुई है। इन चुनौतियों का मैं स्वयं भुक्तभोगी हूं।”
उपराष्ट्रपति ने कहा, “ हमारा यह बाध्यकारी कर्तव्य है कि देश की सभी संवैधानिक संस्थाएं एक दूसरे का सम्मान करें और यह सम्मान तभी होता है जब सभी संस्थाएं अपने-अपने दायरे में सीमित रहती हैं। जब संस्थाएं एक दूसरे का सम्मान करती हैं। संस्थाओं के बीच के टकराव से लोकतंत्र को चोट पहुंचती है। संविधान इस बात की मांग करता है कि समन्वय हो, सहभागिता हो, विचार विमर्श हो, संवाद और वाद विवाद हो।”
उन्होंने कहा, “ राष्ट्रपति जैसे गरिमापूर्ण पद पर टिप्पणी करना मेरे हिसाब से चिंतन का विषय है और मैंने इस बारे में अपनी चिंता व्यक्त की है। सभी संस्थाओं की अपनी-अपनी भूमिका है। एक संस्था को दूसरी संस्था की भूमिका अदा नहीं करनी चाहिए। हमें संविधान का उसकी मूल भावना में सम्मान करना चाहिये।”
श्री धनखड़ ने कहा कि जिस तरीके से विधायिका विधिक फैसले नहीं ले सकती, यह न्यायपालिका का काम है। मैं न्यायपालिका का सबसे ज्यादा सम्मान करता हूं। मैंने चार दशक से ज्यादा समय तक वकालत की है। मैं जानता हूं कि न्यायपालिका में प्रतिभाशाली लोग हैं। न्यायपालिका का बहुत बड़ा महत्व है। हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था कितनी मजबूत है, यह न्यायपालिका की स्थिति से परिभाषित होती है। हमारे न्यायाधीश सर्वश्रेष्ठ न्यायाधीशों में से हैं लेकिन मैं अपील करता हूं कि हमें सहयोग समन्वय और सहयोगात्मक रवैया अपनाना चाहिए।”
गौरतलब है कि श्री धनखड़ ने इससे पहले वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर उच्चतम न्यायालय के एक आदेश पर टिप्पणी करते हुए इसका विरोध किया था।
पहलगाम आतंकवादी हमले का जिक्र करते हुये उन्होने कहा कि जब ऐसी चुनौती आती है तो देश को एक सूत्र के रूप में खड़ा होना पड़ता है। राष्ट्र प्रथम ही हमारा सिद्धांत होना चाहिए।
उप राष्ट्रपति ने अभिव्यक्ति और वाद विवाद को लोकतंत्र का अभिन्न अंग बताते हुये कहा कि जब अभिव्यक्ति करने वाला व्यक्ति खुद को ही सही माने और दूसरे को हर हाल में गलत, तो अभिव्यक्ति का अधिकार ‘विकार’ बन जाता है।
उन्होंने कहा कि वाद विवाद नहीं होगा तो हमारे वेदों का जो दर्शन है वह खत्म हो जाएगा। उसके बाद अहम और अहंकार पैदा होगा। अहम और अहंकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए घातक है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे पुराना लोकतंत्र है। हमारी सांस्कृतिक विरासत भी विशाल है तो कोई भी किसी भी परिस्थिति में इनको चुनौती दे तो उस चुनौती को हमें स्वीकार करना चाहिए।
आपातकाल का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “ लोग यह कहते हैं की जनता की याददाश्त बहुत कम होती है लेकिन ऐसा होता नहीं है। क्या हम आपातकाल को भूल गए। समय तो बहुत निकल गया है। आपातकाल की काली छाया आज भी हमको नजर आती है। वह भारतीय इतिहास का सबसे काला अध्याय है।”
उन्होंने राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को उनके द्वारा रचित पुस्तक के लिये बधाई दी और कहा कि ऐसी पुस्तक लिखना आसान नहीं है और ईमानदारी से लिखना बहुत ही मुश्किल है।
 
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