खोरठा संस्कृति की धड़कन “खोरठा की आवाज़ विनय तिवारी: मिट्टी, और अस्मिता का सशक्त हस्ताक्षर”

Ravikant Mishra

 “झारखंड की सांसों में बसता एक नाम — विनय तिवारी: गीत, कविता और संघर्ष की अद्भुत यात्रा” जीवन, साहित्य और संघर्षों की अद्भुत यात्रा

रविकांत मिश्रा 

झारखंड की सांस्कृतिक पहचान में खोरठा भाषा का अपना विशिष्ट महत्व है। यह केवल भाषा नहीं, बल्कि झारखंडी अस्मिता, लोकजीवन, परंपराओं और जन-संवेदनाओं की आत्मा है। इस भाषा और संस्कृति को नई पहचान दिलाने में पारंपरिक कलाकारों के साथ-साथ आधुनिक रचनाकारों ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज यदि खोरठा साहित्य और गीत-संगीत अपनी विशिष्ट पहचान के साथ सम्मुख खड़ा है, तो इसके पीछे कुछ समर्पित साहित्यकारों की अथक साधना है। उन्हीं रचनाकारों में सबसे प्रमुख नाम है — विनय तिवारी।

पिछले तीन दशकों से खोरठा भाषा के साहित्य, गीत-संगीत, फिल्मों और सांस्कृतिक आंदोलनों में निरंतर सक्रिय रहते हुए उन्होंने जो कीर्तिमान स्थापित किए हैं, वह उन्हें आधुनिक खोरठा साहित्य का शीर्ष हस्ताक्षर बनाते हैं।

 विनय तिवारी : मिट्टी से उठी एक गूंजती आवाज

5 अक्टूबर 1974 को धनबाद जिला अंतर्गत तोपचांची प्रखंड के रोआम गाँव में जन्मे विनय तिवारी बचपन से ही गीत-संगीत से गहरे जुड़े थे। प्रारंभिक संघर्षों, सामाजिक अवहेलना और आर्थिक चुनौतियों के बावजूद उन्होंने खोरठा भाषा को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद जहां अधिकांश लोग नौकरी की राह पकड़ते हैं, वहीं विनय तिवारी ने खोरठा साहित्य और संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन की राह चुनी। परिवार और समाज के विरोध के बीच भी वे डटे रहे। यही दृढ़ संकल्प आज उन्हें खोरठा भाषा की आधारशिला का महत्त्वपूर्ण स्तंभ बनाता है।

खोरठा गीतों को लोकप्रिय बनाने वाले अग्रणी गीतकार

टेप रिकॉर्डर और कैसेट के दौर में शादी-ब्याह, पर्व-त्योहारों में जहाँ हिंदी, भोजपुरी और नागपुरी गाने बजते थे, वहीं विनय तिवारी ने ऐसे गीत लिखे कि लोग खोरठा गीतों को सुनने और गुनगुनाने लगे। आज खोरठा गीतों का जन-जन तक प्रसार, उनकी मधुर धुनें और जीवन से जुड़े भाव—ये सब विनय तिवारी की रचनाधर्मिता का परिणाम हैं। उनके लिखे गीत झारखंड ही नहीं, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम और छत्तीसगढ़ तक में लोकप्रिय हुए। सरल शब्दों में गहरे भावों की प्रस्तुति, लोकजीवन के रंग और सामाजिक सरोकारों ने उनके गीतों को विशिष्ट पहचान दी।

बॉलीवुड के बड़े कलाकार जैसे— कुमार शानू, उदित नारायण, सपना अवस्थी, अनूप जलोटा ने उनके गीतों को स्वर देकर खोरठा संगीत को नई ऊँचाइयाँ दीं। टी-सीरीज जैसी कंपनियों ने भी उनसे दर्जनों हिट एलबम बनवाए। ‘ऐ भात रे’, ‘तोर हमार प्रेमक कहानी’, ‘मायं-माटी’, ‘फरक’, ‘एक्क गो हिसाब हत्ये’, ‘मानुस आर बुझै नाय रे भाय’ और ‘तोर अंगे-अंगे बिस भोरल’ जैसे गीत आज भी खोरठा संगीत की पहचान बने हुए हैं।

खोरठा फिल्मों का सशक्त हस्ताक्षर

विनय तिवारी ने केवल गीतकार या कवि के रूप में ही नहीं, बल्कि खोरठा फिल्मों को मजबूत आधार देने वाले पटकथाकार, संवाद लेखक और निर्देशक के रूप में भी उल्लेखनीय कार्य किए हैं। ‘हमर देहाती बाबू’ खोरठा फिल्म के पटकथा लेखक के रूप में उन्होंने दर्शकों का दिल जीत लिया। यह फिल्म प्रथम झारखंड अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में ‘बेस्ट खोरठा फिल्म’ पुरस्कार से सम्मानित हुई। इसी प्रकार शॉर्ट फिल्म ‘पिता का मान बेटियां’ को भी ‘बेस्ट खोरठा फिल्म’ का सम्मान मिला, जिसकी पटकथा, निर्देशन और गीत लेखन उन्होंने ही किया था।

इसके अलावा— ‘दय देबो जान गोरी’ ‘करमा’

‘झारखंडेक माटी’ ‘मॉबलिंचिंग’ ‘जोहार झारखंड’ जैसी फिल्मों में भी उन्होंने गीतकार, पटकथाकार, निर्देशक या सह-निर्देशक के रूप में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है।

 साहित्य, संपादन और बहुआयामी सांस्कृतिक योगदान

खोरठा और हिंदी दोनों भाषाओं में उनकी लेखनी एक समान प्रभावशाली है।

वे कविता, गीत, कहानी, नाटक, निबंध, पटकथा—हर विधा में पारंगत हैं।

संपादन के क्षेत्र में भी उनका योगदान उल्लेखनीय है— सह–संपादक : रविरथी (हिंदी काव्य संकलन) सह–संपादक : अरण्य रसना (झारखंडी बहुभाषीय काव्य संकलन) सह–संपादक : धरती पुत्र दिशोम गुरु शिबू सोरेन ,सलाहकार संपादक : खोरठा पत्रिका ‘परासफूल’ उनकी रचनाएँ कक्षा 8 से लेकर विश्वविद्यालयों के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों तक पढ़ाई जाती हैं।

दूरदर्शन और आकाशवाणी पर उनके गीत, कविताएँ और वार्ताएँ निरंतर प्रसारित होती रहती हैं। वे स्वतंत्र खोरठा भाषा शोधकर्ता के रूप में लगातार अनुसंधानरत हैं तथा झारखंड आंदोलन और खोरठा भाषा आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं।

 भित्तिचित्रों के माध्यम से भाषा-संरक्षण का अनूठा प्रयास

विनय तिवारी खोरठा भाषा को भित्तिचित्र (Wall Art) के माध्यम से पूरे झारखंड में प्रसारित करने वाले पहले व्यक्ति हैं।

उनका यह कार्य सांस्कृतिक जागरूकता और भाषा संरक्षण का एक अभिनव मॉडल है, जिसकी व्यापक सराहना की गई है।

 सम्मान और उपलब्धियों की लंबी शृंखला

उनके समर्पण और सृजनात्मक योगदान के लिए उन्हें राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, जिनमें मुख्य हैं— खोरठा गौरव अवार्ड (2008) खोरठा सम्मान (2011) सांस्कृतिक सम्मान (2016) श्रीनिवास पानुरी मेमोरियल अवार्ड

बेस्ट गीतकार – झारखंड नेशनल फिल्म फेस्टिवल ,बेस्ट स्क्रिप्ट राइटर – द्वितीय झारखंड नेशनल फिल्म फेस्टिवल, खोरठा कला संस्कृति रत्न सम्मान , नमन बिरसा मुंडा झारखंड रत्न सम्मान ,हिंदी आशु काव्यश्री सम्मान – नेपाल, विश्व प्रतिभा अंतरराष्ट्रीय सम्मान (2025) भारत सरकार की संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष डॉ. संध्या पुरेचा द्वारा उनके गृह ग्राम रोआम में विशेष साक्षात्कार आयोजन अपने आप में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।

 एक संवेदनशील सृजनशील व्यक्तित्व

विनय तिवारी बार-बार यह सिद्ध करते हैं कि— “भाषा केवल संवाद नहीं, पहचान और अस्मिता का प्रतीक है।”

उनके लेखन में झारखंड की मिट्टी की महक, लोकजीवन की सहजता, संघर्षों की आंच, प्रेम की मधुरता और सामाजिक सरोकारों की गहराई एक साथ उपस्थित रहती है।

वे आज न सिर्फ खोरठा भाषा के सबसे सशक्त और लोकप्रिय रचनाकारों में से एक हैं, बल्कि नए लेखकों, शोधार्थियों और कलाकारों के प्रेरणास्रोत भी हैं।

खोरठा की आवाज, झारखंड की पहचान

विनय तिवारी का साहित्य, संगीत और सांस्कृतिक योगदान खोरठा भाषा को नई ऊँचाइयों तक ले गया है। उन्होंने साबित किया है कि सीमित संसाधनों और संघर्षों के बीच भी यदि लगन, विश्वास और संकल्प हो, तो कोई भी भाषा और संस्कृति विश्व पटल पर अपनी पहचान बना सकती है। आज वे केवल एक कलाकार नहीं, बल्कि झारखंड की जन-भावनाओं की गूंज, खोरठा संस्कृति की चेतना और नए युग के सांस्कृतिक वाहक हैं। उनका सृजन झारखंड की आत्मा है—

जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।

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*शीलं परमं भूषणम्*
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