टाटीसिलवे में श्रीमद् भागवत कथा का सातवें दिन, भगवान कृष्ण की महिमा का रसपान
रांची : टाटीसिलवे के ईईएफ मैदान में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन कथा व्यास इंद्रेश जी महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं, उनकी रास लीलाओं और उनकी दिव्य महिमा का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि कैसे भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं के माध्यम से मानवता को सही रास्ता दिखाया और उन्हें भगवान की भक्ति और समर्पण की प्रेरणा दी। कथा के दौरान इंद्रेश जी महाराज ने श्रोताओं को भगवान श्रीकृष्ण की महिमा को समझने और उनके जीवन के मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा दी। उन्होंने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण का जीवन हमें कई महत्वपूर्ण सबक सिखाता है, जिनमें से एक यह है कि हमें अपने जीवन में भगवान की भक्ति और समर्पण को महत्व देना चाहिए। कथा के सातवें दिन बड़ी संख्या में श्रोता उपस्थित थे, जिन्होंने कथा को बहुत ही ध्यान से सुना और भगवान श्रीकृष्ण की महिमा को बताया। भागवत कथा में भगवान कृष्ण की लीलाओं और उनके उपदेशों के माध्यम से ज्ञान और प्रकाश के महत्व को समझाया। ज्ञान और प्रकाश के महत्व को समझाने के लिए कथा में कई उदाहरण दिए गए हैं। भगवान कृष्ण ने अपने उपदेशों में ज्ञान और प्रकाश के महत्व को समझाते हुए बताया कि कैसे ज्ञान और प्रकाश हमें अज्ञानता और अंधकार से मुक्ति दिला सकते हैं। कथा में ज्ञान और प्रकाश के महत्व को समझाने के लिए कई पात्रों का उल्लेख किया गया है, जिनमें से एक प्रमुख पात्र है उद्धव। उद्धव भगवान कृष्ण के प्रिय मित्र और शिष्य थे और उन्होंने भगवान कृष्ण से ज्ञान और प्रकाश की प्राप्ति की थी। अज्ञानता से मुक्ति पाने के लिए ज्ञान और प्रकाश की महत्ता को समझाया है। कथा में ज्ञान और प्रकाश के महत्व को समझाने के लिए कई अन्य श्लोकों का भी उल्लेख किया। भागवत कथा में ज्ञान और प्रकाश का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। कथा में भगवान कृष्ण की लीलाओं और उनके उपदेशों के माध्यम से ज्ञान और प्रकाश के महत्व को समझाया गया है और बताया गया है कि कैसे ज्ञान और प्रकाश हमें अज्ञानता और अंधकार से मुक्ति दिला सकते हैं।

*जीवन में दिशा और दीक्षा दोनों का महत्व*
जीवन में दिशा और दीक्षा दोनों शब्द बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और जीवन में उनका अलग-अलग महत्व है। दिशा का अर्थ है दिशा या रास्ता। जीवन में दिशा का महत्व यह है कि यह हमें अपने लक्ष्यों की ओर ले जाने के लिए एक रास्ता दिखाती है। दिशा हमें यह तय करने में मदद करती है कि हमें अपने जीवन में क्या हासिल करना है और कैसे हासिल करना है। वहीं दीक्षा का अर्थ है प्रशिक्षण या शिक्षा। जीवन में दीक्षा का महत्व यह है कि यह हमें अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान प्रदान करती है। दीक्षा हमें यह सिखाती है कि कैसे हम अपने लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं और कैसे हम अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
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*कथा में महाराज जी ने गुरु के महत्वपूर्ण स्थान के बारे बताया…*
कथा के दौरान इंद्रेश जी महाराज ने कहा कि जीवन में गुरु का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। गुरु हमें जीवन के सही रास्ते पर चलने के लिए मार्गदर्शन करते हैं और हमें अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल प्रदान करते हैं। गुरु के महत्व को समझने से हम अपने जीवन में कई लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

*रास का अर्थ प्रेम या प्रेम की लीला, पूज्य इंद्रेश जी ने किया वर्णन*
महाराज जी ने बताया भागवत कथा में रास का अर्थ बहुत ही महत्वपूर्ण है। रास शब्द का अर्थ है प्रेम या प्रेम की लीला। भागवत कथा में रास का उल्लेख भगवान कृष्ण की प्रेम लीलाओं के संदर्भ में किया जाता है। भागवत कथा के अनुसार भगवान कृष्ण ने अपनी प्रेम लीलाओं के माध्यम से गोपियों के साथ प्रेम की भावना को बढ़ावा दिया गया है।यह प्रेम लीला रास के रूप में जानी जाती है, जिसमें भगवान कृष्ण और गोपियों ने एक दूसरे के साथ प्रेम की भावना को व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि रास का अर्थ न केवल प्रेम की भावना को व्यक्त करना है, बल्कि यह भगवान कृष्ण की दिव्य प्रेम लीलाओं का प्रतीक भी है। रास के माध्यम से भगवान कृष्ण ने अपने भक्तों को प्रेम की भावना को समझने और अपने जीवन में प्रेम को महत्व देने की प्रेरणा दी है।

*भागवत कथा में शरद पूर्णिमा का महत्वपूर्ण स्थान*
भगवान राम से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों को बताते हुए शरद पूर्णिमा को भगवान कृष्ण की रास लीला के साथ जोड़कर देखा जाता है, जो भगवान कृष्ण की प्रेम लीलाओं का प्रतीक है। भागवत कथा के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात को भगवान कृष्ण ने अपनी रास लीला का आयोजन किया था, जिसमें उन्होंने गोपियों के साथ प्रेम की भावना को व्यक्त किया था। इस रात को भगवान कृष्ण की प्रेम लीलाओं का प्रतीक माना जाता है। शरद पूर्णिमा का महत्व न केवल भगवान कृष्ण की रास लीला के साथ जुड़ा हुआ है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण त्योहार भी है जो भगवान कृष्ण की प्रेम लीलाओं को मनाने के लिए मनाया जाता है।

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*आज अंतिम दिन की कथा, इंद्रेश जी भक्तों के साथ खेलेंगे होली*
श्रीमद् भागवत कथा का विराम शनिवार को होगा। पूज्य इंद्रेश जी उपाध्याय रुक्मिणी विवाह प्रसंग सुनाने के बाद भक्तों संग भक्ति-मय होली उत्सव मनाएंगे। महाराज जी स्वयं भक्तों के बीच जाकर पुष्पों की होली खेलेंगे, जिससे वातावरण भक्तिरस से सराबोर हो जाएगा। कथा के अंतिम दिन भजन-कीर्तन और ठाकुर जी के जयकारों से क्षेत्र गुंजायमान रहेगा। व्यास पीठ से इंद्रेश जी ने लोगों से होली उत्सव में शामिल होने की अपील की है।