नयी दिल्ली, 13 नवंबर (लाइव 7) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की भूटान यात्रा और थिम्पू में भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक से उनकी लाइव 7 दोनों देशों के बीच परंपरागत रूप से प्रगाढ़ द्विपक्षीय संबंधों से बढ़ कर महत्व रखती है। भारत द्वारा पश्चिम बंगाल और असम से होकर भूटान को जोड़ने वाली रेल मार्ग परियोजनाओं का प्रस्ताव पड़ोसी देश के साथ आवागमन और व्यापार सुविधा बढ़ाने वाली केवल बुनियादी ढ़ाँचा परियोजना नहीं है, बल्कि इसका एक गहरा रणनीतिक महत्व है। प्रस्तावित रेल लाइन से उस दुर्गम और संवेदनशील त्रिभुजाकार इलाके तक पहुंचने में सुविधा होगी जहां भारत, भूटान और चीन-तीन देशों का मिलन होता है।
भूटान के साथ संपर्क को बेहतर करना भारत के लिए लंबे समय से दो दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है। एक तो इससे भूटान के साथ परम्परागत रिश्तों को प्रगाढ़ करने और परस्पर विश्वास की जड़ों को और गहरा करने में मदद मिलेगी। दूसरे, इससे उस क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित करने में आसानी होगी।
हिमालय की गोद में बसा भूटान भी इस पहल को एक आर्थिक अवसर के रूप में तो देखता ही है, साथ ही यह उसके लिए एक रणनीतिक आश्वासन की तरह है। भूटान भी उत्तर के अपने आक् क पड़ोसी और भारत जैसे हमेशा साथ खड़े रहने वाले सहयोगी के बीच रह कर दोनों के साथ संबंधों में एक नाजुक संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है।
भारत और भूटान के बीच यह उच्चस्तरीय बातीचीत ऐसे समय में हुई है जब भारत और चीन के संबंधों में भी सुधार होता दिख रहा है। अगस्त में ही नयी दिल्ली में भारत और चीन के बीच विशेष प्रतिनिधि (एसआर) स्तरीय लाइव 7 का 24 वां दौर हुआ था। इसमें दोनों पक्ष सीमा परिसीमन के लिए ‘शीघ्र समाधान’ तलाशने हेतु प र्श और समन्वय कार्य तंत्र (डब्ल्यूएमसीसी) के तहत एक विशेषज्ञ समूह बनाने पर सहमत हुए थे।
भारत और चीन के बीच हुई इस लाइव 7 का मुख्य विषय यूं तो दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवादों को निपटाना और अपनी सीमाओं का तार्किक सीमांकन करना था, लेकिन यह अप्रत्यक्ष रूप से भूटान को भी प्रभावित करता है। इसलिए जैसे-जैसे भारत चीन के साथ, सावधानीपूर्वक ही सही, अपने संबंधों को बेहतर करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, भूटान भी चीन के साथ अपने संबंधों पर नये सिरे से सोच रहा है और उसके साथ अपने सीमा विवादों को सुलझाने के अवसरों को तलाश रहा है।
गौरतलब है कि भूटान का चीन के साथ न तो कोई राजनयिक संबंध है और न ही उसके साथ कोई सुनिश्चित सीमा रेखा। ऐसी स्थिति में चीन और भूटान के बीच सीमाओं का निर्धारण बहुत मुश्किल और उलझाने वाला विषय हो जाता है। हालांकि इस मामले में दोनों देशों के बीच कई दौर की लाइव 7 हो चुकी है।
भूटान 1984 से अब तक चीन के साथ उत्तर, पश्चिम और पूर्व के तीनों विवादित क्षेत्रों पर 25 बार लाइव 7एं कर चुका है फिर भी कोई स्पष्ट परिणाम नज़र नहीं आया है। इस सीमा विवाद का सबसे संवेदनशील क्षेत्र भूटान का पश्चिमी क्षेत्र है, जो भारत के सिक्किम और तिब्बत के चुम्बी घाटी से सटा है। यह क्षेत्र भारत की मुख्य भूमि से पूर्वोत्तर क्षेत्र को जोड़ने वाले सिलीगुड़ी गलियारे (चिकन्स नेक) के बिल्कुल निकट है। इसलिए भारत की दृष्टि से भी यह रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है।
डोकलाम पठार इस संवेदनशील क्षेत्र और इस विवाद के केंद्र में है जहाँ भारत, भूटान और चीन मिलते हैं। यही वह क्षेत्र है जहाँ चीन जम्फेरी रिज की ओर सड़क निर्माण कर रहा था और उसको लेकर भारत और चीन के बीच 73 दिनों तक सैन्य गतिरोध चला था। यह पठार सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। चीन यदि इस रिज पर कब्ज़ा कर लेता है, तो वह भारत के महत्वपूर्ण गलियारे पर सीधी निगरानी करने में सक्षम हो जाएगा।
चीन ने जब 1951 में औपचारिक रूप से तिब्बत पर कब्ज़ा किया, तो उसकी सीमा का विस्तार भूटान की सीमा तक हो गया। यह सीमा इस लिए भी अस्पष्ट थी क्योंकि तिब्बत और भूटान के बीच एक मैत्रीपूर्ण सभ्यतागत और सांस्कृतिक संबंध थे, जहां सीमाओं को लेकर विवाद कभी मुखर नहीं हुए। लेकिन तिब्बत पर कब्जा करने के बाद चीन ने पुराने तिब्बती चरागाह मार्गों और मठ के अभिलेखों के आधार पर ऐतिहासिक दावे करना शुरू कर दिया। 1950 और 1960 के दशक के दौरान, चीन धमकियों और प्रलोभनों का सहारा लेता रहा। उसने भूटान के एक बड़े हिस्से को चीनी क्षेत्र के रूप में दर्शाने वाले मानचित्र भी जारी किये और व्यापार रियायतें और मित्रता की भी पेशकश की।
तिब्बत पर चीन के कब्जे ने भारत की रणनीतिक चिंताओं को भी गहरा कर दिया। भारत भी भूटान के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए तेजी से कदम उठाने लगा। चीन के लिए हालांकि भूटान अब भी एक चुनौती बना हुआ है। भूटान का, भारत के अलावा केवल एक और पड़ोसी चीन है। उसके साथ उसकी कोई सीमा तय नहीं है। भूटान ने अभी तक चीन में कोई मंत्री भी नहीं भेजा है। चीन , तिब्बत पर नियंत्रण मज़बूत करने, हिमालय क्षेत्र में भारतीय प्रभाव को कम करने और सिलीगुड़ी गलियारे तक अपनी रणनीतिक पहुँच बढ़ाने के लिए भूटान के साथ सीमा का अपने ढंग से समाधान ज़रूरी मानता है।
पिछले दशकों में, चीन ने भूटान में अतिक्रमण की एक धीमी गति वाली रणनीति “ग्रे ज़ोन युद्ध” को लागू करने में निपुणता हासिल कर ली है। 1980 और 1990 के दशक में, चीनी चरवाहे और गश्ती दल धीरे-धीरे दक्षिण की ओर बढ़े, शिविर, चौकियाँ और सड़कें बनाईं। हाल ही में, उपग्रह चित्रों से पता चला है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भूटानी क्षेत्र के अंदर चीन द्वारा निर्मित पूरे गाँव बसे हुए हैं, कुछ उत्तर में मेनचुमा घाटी में और कुछ पश्चिम में डोकलाम के पास। 2024 की एक रिपोर्ट में ऐसी 19 बस्तियों की गिनती की गयी है।
भारत के लिए, चीन के साथ भूटान के सीमा विवाद में दांव पर केवल कुछ वर्ग मील बर्फ से ढका जंगल का इलका ही नहीं है, बल्कि इसके बड़े निहितार्थ हैं। भूटान के दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र, खासकर डोकलाम पठार पर नियंत्रण भारत के पूर्वोत्तर राज्यों तक सुरक्षित रास्ते की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा के लिए डोकलाम पठार की सुरक्षा मायने रखती है।
भारत को इसके लिए सिर्फ़ सैन्य बल नहीं बल्कि एक ऐसी स्तरीय, धैर्यपूर्ण रणनीति की ज़रूरत है जिसमें निवारण, विकास और कूटनीति का मेल हो ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भूटान की संप्रभुता और भारत की सुरक्षा, पहाड़ी दर पहाड़ी, घाटी दर घाटी मजबूत बनी रहे। किसी जोर ज़बरदस्ती के ख़िलाफ़ बचाव का सबसे कारगर तरीका परस्पर निर्भरता को मजबूत बनाना है। पश्चिम बंगाल और असम के रास्ते भूटान तक, खासकर कोकराझार-गेलेफू और बनारहाट-समत्से कॉरिडोर तक रेल और सड़क संपर्क का विकास तेज़ करके, भारत और भूटान के आर्थिक जुड़ाव को और मजबूत किया जा सकता है।
इसी तरह, जलविद्युत सहयोग, रियायती वित्तपोषण और सीमा पार बिजली व्यापार का विस्तार भूटान के दीर्घकालिक विकास को भारत के ग्रिड से जोड़ सकता है, जिससे भूटान की की समृद्धि को बढाने तथा उसे चीन के प्रलोभनों से दूर रखने में मदद मिलेगी।
भूटान के साथ भारत के रक्षा संबंध किसी प्रत्यक्ष गठबंधन पर नहीं, बल्कि मौन विश्वास पर आधारित हैं। इस संतुलन को बनाए रखने के लिए, भारत का ध्यान क्षमता निर्माण पर होना चाहिए, जिससे भूटान अपनी सीमाओं की प्रभावी निगरानी और प्रबंधन कर सके। इसमें भूटान की सेना के लिए प्रशिक्षण का विस्तार, रसद और पर्वतीय क्षेत्र में आवागमन को सुगम बनाना, और सीमावर्ती सड़कों और सभी मौसमों में इस्तेमाल लायक सम्पर्क मार्गों पर सहयोग बढ़ाना और निगरानी की तकनीकों का हस्तांतरण महत्वपूर्ण है।
इस चुनौती से निपटने के लिए सैन्यीकरण से पहले जरूरी है जागरूकता । यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उस इलाके में चीनी की ओर से बनायी जाने वाली हर सड़क , चरवाहों के शिविर, या “आदर्श गाँव” का निर्माण निगाह में हो और उसके खिलाफ कूटनीतिक कार्रवाई की जा सके।
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लाइव 7
हिमालय क्षेत्र में मजबूती, चीन के साथ संतुलन के लिए जरूरी है भूटान के साथ संपर्क का विस्तार
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