विश्व कल्याण की कामना के साथ संगम की रेती में हुयी कल्पवास की शुरुआत

Live 7 Desk

महाकुंभनगर,13 जनवरी (लाइव 7) महाकुंभनगर नगर में सोमवार को पौष पूर्णिमा स्नान के साथ हजारों की संख्या में कल्पवासियों ने विश्व कल्याण की कामना के साथ मां तुलसी का पूजन कर कल्पवास का शंखनाद किया।
धर्म संघ अध्यक्ष एवं तीर्थ पुरोहित राजेंद्र पालीवाल ने बताया कि माघ मास में दो चक्र में लोग कल्पवास करते हैं। पहले खंड में मकर संक्रांति से माघ शुक्लपक्ष की मकर संक्रांति तक मैथिल ब्राह्मण कल्पवास करते हैं। दूसरे खण्ड पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक साधु-संत एवं बड़ी संख्या में गृहस्थ कल्पवास करते हैं।
उन्होंने बताया कि गृहस्थ कल्पवासी गंगा के तीरे विस्तीर्ण रेती पर भैतिक सुख का त्यागकर आध्यात्म में लीन होकर काया शोधन का एक माह तक कल्वास करेंगे। तड़के गंगा स्नान कर अपने-अपने शिवरो में भगवान की पूजा, भजन करने के साथ साधु संतो के प्रवचन का श्रवण करेंगे। इस दौरान कल्पवासी भौतिक सुख का त्याग कर सात्विक जीवन जीने का निर्वहन करेंगे।
श्री पालीवाल ने बताया कि महाकवि तुलसीदास ने  चरितमानस में मकर संक्रांति की महत्ता का वर्णन करते हुए लिखा है कि “ माघ मकर गति रवि जब होई। तीरथ पतिहिं आवै सब कोई, देव दनुज किन्नर नर श्रेणी। सादर मज्जहिं सकल त्रिवेणी। पूजहि माधव पद जल जाता। परसि अखय वटु हरषहि गाता।”
उन्होंने बताया कि तुलसीदास ने इस दोहे के ज़रिए समझाया है कि जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तब प्रयाग में त्रिवेणी स्नान करना बहुत पुण्यदायी होता है। ऐसा माना जाता है कि गंगा, यमुना, और सरस्वती के संगम पर प्रयाग में मकर संक्रांति के दिन सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान करने आते हैं।
श्री पालीवाल ने कहा कि पुराणों और धर्मशास्त्रों में कल्पवास को आत्मा शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए जरूरी बताया गया है। यह मनुष्य के लिए आध्यात्म की राह का एक पड़ाव है, जिसके जरिए स्वनियंत्रण एवं आत्मशुद्धि का प्रयास किया जाता है। हर वर्ष  लु एक महीने तक संगम के विस्तीर्ण रेती पर तंबुओं की आध्यात्मिक नगरी में रहकर अल्पाहार, तीन समय गंगा स्नान, ध्यान एवं दान करके कल्पवास करना चाहिए तथा अपने को लोकाचार से दूर रखना चाहिए।
तीर्थ पुराेहित ने बताया कि आदिकाल से चली आ रही इस परंपरा के महत्व की चर्चा वेदों से लेकर महाभारत और  चरितमानस में अलग-अलग नामों से मिलती है। बदलते समय के अनुरूप कल्पवास करने वालों के तौरतरीक में कुछ बदलाव जरूर आए हैं लेकिन कल्पवास करने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है। आज भी  लु भयंकर सर्दी में कम से कम संसाधनों की मदद लेकर कल्पवास करते हैं।
श्री पालीवाल ने बताया कि भारत की आध्यात्मिक सांस्कृतिक, सामाजिक एवं वैचारिक विविधताओं को एकता के सूत्र में पिरोने वाला महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति का द्योतक है। इस मेले में सनातन संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।बताया कि पौष कल्पवास के लिए वैसे तो उम्र की कोई बाध्यता नहीं है, लेकिन माना जाता है कि संसारी मोहमाया से मुक्त और जिम्मेदारियों को पूरा कर चुके व्यक्ति को ही कल्पवास करना चाहिए क्योंकि जिम्मेदारियों से बंधे व्यक्ति के लिए आत्मनियंत्रण कठिन माना जाता है।
माघ मेला, कुंभ, और महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम है जिसकी दुनिया में कोई मिसाल नहीं मिलती। इसके लिए किसी प्रकार का न/न तो प्रचार किया जाता है और न ही इसमें आने के लिए लोगों से मिन्नतें की जाती हैं। तिथियों के पंचांग की एक तारीख पर करोड़ों लोगों पुण्य के पवित्र अवसर पर दूर दराज से पहुंचकर तीर्थराज प्रयाग में पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती में आस्था की डुबकी लगाते हैं।

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