मुबई, 18 अगस्त (लाइव 7) बॉलीवुड के जानेमाने फिल्मकार,शायर और गीतकार गुलजार आज 90 वर्ष के हो गये।
पंजाब.अब पाकिस्तान के.झेलम जिले के एक छोटे से कस्बे दीना में कालरा अरोरा सिख परिवार में 18 अगस्त 1934 को जन्में संपूर्ण सिंह कालरा गुलजार को स्कूल के दिनों से ही शेरो-शायरी और वाद्य संगीत का शौक था। कॉलेज के दिनों में उनका यह शौक परवान चढ़ने लगा और वह अक्सर मशहूर सितार वादक रविशंकर और सरोद वादक अली अकबर खान के कार्यक्रमों में जाया करते थे ।भारत विभाजन के बाद गुलजार का परिवार अमृतसर में बस गया लेकिन गुलजार ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए मुंबई का रूख किया और वर्ली में एक गैरेज में कार मैकैनिक का काम करने लगे।
गैरेज के पास ही एक बुकस्टोर वाला था जो आठ आने के किराए पर दो किताबें पढ़ने को देता था। गुलजार को वहीं पढ़ने का चस्का सा लग गया था।एक दिन फिल्मकार विमल रॉय की कार खराब हो गई।संयोग से विमल रॉय उसी गैरेज पर पहुंचे गए जहां गुलजार काम किया करते थे।विमल रॉय ने गैरेज पर गुलजार और उनकी किताबों को देखा। पूछा कौन पढ़ता है यह सब? गुलजार ने कहा, मैं! विमल रॉय ने गुलजार को अपना पता देते हुए अगले दिन मिलने को बुलाया। गुलज़ार जब विमल रॉय के दफ़्तर गये तो उन्होंने कहा कि अब कभी गैरेज में मत जाना। इसके बाद वह बिमल राय के सहायक बन गए।
गीतकार के रूप मे गुलजार ने पहला गाना ‘मेरा गोरा अंग लेई ले’ वर्ष 1963 मे प्रदर्शित विमल राय की फिल्म ‘बंदिनी’ के लिये लिखा।गुलजार इसके बाद कवि के रूप मे प्रोग्रेसिव रायर्टस एसोसिऐशन पी.डब्लू.ए से जुड़े गये। गुलजार ने वर्ष 1971 मे प्रदर्शित फिल्म ‘मेरे अपने’ के जरिये निर्देशन के क्षेत्र मे भी कदम रखा। इस फिल्म की सफलता के बाद गुलजार ने कोशिश,परिचय,अचानक,खूशबू,आंधी,मौसम,किनारा,किताब,नमकीन,अंगूर,इजाजत,लिबास,लेकिन,माचिस और हू तू तू जैसी कई फिल्में निदेर्शित भी की।प्रारंभिक दिनों में गुलजार का झुकाव वामपंथी विचारधारा की तरफ था जो मेरे अपने और आंधी.जैसी उनकी शुरआती फिल्मों में दिखाई देता है।आंधी में भारतीय राजनीतिक व्यवस्था की परोक्ष आलोचना की गई थी। हालांकि इस फिल्म पर कुछ समय के लिए पाबंदी भी लगा दी गई थी।
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