सिनेमाई यात्रा शुरू करने वाले नये फिल्‍मकारों के लिये लघु फिल्में एक बेहतरीन माध्यम है: एस नाइक

Live 7 Desk

पणजी, 23 नवंबर (लाइव 7) निर्देशक चिदानंद एस नाइक का कहना है कि सिनेमाई यात्रा शुरू करने वाले नये फिल्‍मकारों के लिये लघु फिल्में एक बेहतरीन माध्यम है।

55वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में शुक्रवार को आयोजित एक मीडिया संवाद में प्रशंसित लघु फिल्म ‘सनफ्लावर्स वेयर द फर्स्ट ओन्स टू नो’ की निर्माण टीम ने मीडिया के साथ बातचीत की और इस बेहतरीन फिल्‍म बनाने के अपने अनुभव साझा किये।

निर्देशक चिदानंद एस नाइक ने बताया कि सनफ्लावर वेयर द फर्स्ट वन्स टू नो भारतीय लोककथाओं और बचपन के अनुभवों से गहराई से प्रेरित है। यह एक ऐसी कथा गढ़ती है जो पारंपरिक कहानियों और निजी संस्‍मरणों के काव्यात्मक सौंदर्य को साथ बुनती है। निर्देशक चिदानंद नाइक ने फिल्म को वास्तविक जीवन के अनुभवों की एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति बताया। उन्‍होंने इस फिल्‍म निर्माण में सांस्कृतिक विषयों और कहानी के पिरोये जाने का वर्णन किया।

एक फिल्मकार के तौर पर उनकी यात्रा के बारे में पूछे जाने पर निर्देशक चिदानंद ने युवा और आकांक्षी फिल्मकारों के लिये लघु फिल्मों से यात्रा शुरू करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि लघु फिल्में सिनेमाई यात्रा शुरू करने का बेहतरीन मंच है, जो विभिन्न शैलियों, तकनीकों और कहानी कहने के प्रारूपों को साथ लाता है। उन्होंने कहा कि एक फिल्मकार के तौर पर वे हमेशा समय, स्थान और लागत के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करते हैं। साथ ही यह भी सुनिश्चित करते हैं कि दर्शकों के लिये फिल्‍म में कुछ खास हो।

इस फिल्म की निर्माण प्रक्रिया भी उल्लेखनीय रही। प्रोडक्शन डिजाइनर प्रणव खोत ने सीमित संसाधनों में इस फिल्म को बनाने की चुनौतियों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई), पुणे द्वारा निर्मित, सनफ्लावर वेयर द फर्स्ट वन्स टू नो एक ऐसा प्रोजेक्ट है, जिसमें हमें रचनात्मक रूप से सोचने, दिशा-निर्देशों के पालन और उपलब्ध संसाधनों में इसे बनाने के लिए प्रेरित किया।

सनफ्लावर वेयर द फर्स्ट ओन्स टू नो को आधिकारिक तौर पर लाइव एक्शन शॉर्ट फिल्म संवर्ग में 97वें अकादमी पुरस्कार के लिये चयनित किया गया है। इससे पहले कान फिल्म महोत्सव के ला सिनेफ सिलेक्शन में इस फिल्‍म को प्रथम पुरस्कार मिला था। भारतीय लोक कथाओं और परंपराओं से प्रेरित इस कन्नड़-भाषा की फिल्‍म को वैश्विक तौर पर प्रशंसा मिली है। इस फिल्‍म का कथानक एक बुज़ुर्ग महिला की कहानी है, जो गांव का मुर्गा चुरा लेती है। इससे पूरे समुदाय में उथल-पुथल मच जाती है। मुर्गे को वापस लाने के लिये एक भविष्य कथन होता है, जिसके बाद बुज़ुर्ग महिला के परिवार को निर्वासित कर दिया जाता है।

 .श्रवण

लाइव 7

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