पोक्सो और त्वरित न्यायालयों में तीन लाख से अधिक मामलों का निपटारा

Live 7 Desk

नयी दिल्ली,22 मार्च (लाइव 7) बच्चों को यौन शोषण और यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए देश में 404 पोक्सो अदालतों सहित 754 त्वरित अदालतें कर रही है जिन्होंने तीन लाख से अधिक मामलों का निपटारा किया है।
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की संसद में पेश एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है। न्याय विभाग दुष्कर्म और पोक्सो से संबंधित मामलों की त्वरित सुनवाई और निपटान के लिए विशेष पोक्सो अदालतों सहित त्वरित विशेष न्यायालयों (एफटीएससी) की स्थापना की योजना लागू कर रहा है। उच्च न्यायालयों से प्राप्त जानकारी के अनुसार 31 जनवरी 2025 तक, 30 राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों में 404 विशेष पोक्सो अदालतों सहित 754 त्वरित न्यायालय कार्यरत हैं, जिन्होंने 3,06,000 से अधिक मामलों का निपटारा किया है।
मंत्रालय के अनुसार सरकार ने बच्चों को यौन शोषण और यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए बाल यौन अपराध संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम, 2012 लागू किया है। इसमें 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बच्चा माना गया है। इसके अलावा बच्चों पर यौन अपराध करने वालों के लिए मृत्युदंड सहित अधिक कठोर सजा का प्रावधान करने के लिए वर्ष 2019 में अधिनियम में संशोधन किया गया था ताकि अपराधियों को दंडित किया जा सके।
अधिनियम की धारा चार में ‘पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट’ के लिए न्यूनतम 20 वर्ष के कठोर कारावास का प्रावधान है, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। यदि हमले के परिणामस्वरूप पीड़ित की मृत्यु हो जाती है या वह लगातार शारीरिक निष्क्रियता की अवस्था में रहे, तो धारा छह में मृत्युदंड या आजीवन कारावास का प्रावधान है।
धारा आठ में यौन उत्पीड़न के दोषी पाए जाने वालों के लिए न्यूनतम तीन से पांच साल के कारावास का प्रावधान है, जबकि धारा 10 में गंभीर यौन उत्पीड़न के लिए इसे न्यूनतम पांच साल तक बढ़ाया गया है। अधिनियम की धारा 14 में पोर्नोग्राफिक उद्देश्यों के लिए बच्चों का उपयोग करने पर सात साल तक के कारावास का प्रावधान है।
रिपोर्ट के अनुसार इसके अलावा बच्चों को शोषण, हिंसा और यौन शोषण से बचाने के लिए पोक्सो नियमावली, 2020 को भी अधिसूचित किया गया। नियम तीन में प्रावधान है कि बच्चों को रखने वाली या बच्चों के नियमित संपर्क में आने वाली कोई भी संस्था को समय-समय पर हर कर्मचारी, शिक्षण या गैर-शिक्षण, नियमित या संविदा या ऐसे संस्थान का कोई अन्य कर्मचारी जो बच्चे के संपर्क में आता है, उसका पुलिस सत्यापन और पृष्ठभूमि की जांच सुनिश्चित करनी चाहिए। इसमें स्कूल, क्रेच, खेल अकादमी या बच्चों के लिए कोई अन्य सुविधा शामिल है। ऐसी संस्था को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों की सुरक्षा और संरक्षण के बारे में कर्मचारियों को संवेदनशील बनाने के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाए।
पोक्सो नियमावली के नियम-नौ में यह प्रावधान है कि विशेष न्यायालय, समुचित मामलों में, स्वयं या बच्चे द्वारा या उसकी ओर से दायर आवेदन पर, प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के पंजीकरण के बाद किसी भी स्तर पर बच्चे की राहत या पुनर्वास की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अंतरिम मुआवजे का आदेश पारित कर सकता है।
इसके अलावा, पोक्सो नियम यह भी प्रावधान करते हैं कि भोजन, कपड़े, परिवहन और अन्य आवश्यक जरूरतों जैसे आकस्मिकताओं के लिए विशेष राहत प्रदान की जाने वाली राशि के तत्काल भुगतान की सिफारिश बाल कल्याण समिति कर सकती है। ऐसा तत्काल भुगतान सिफारिश प्राप्त होने के एक सप्ताह के भीतर किया जाना चाहिए।
पोक्सो अधिनियम के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए, देश भर के सिनेमा हॉल और दूरदर्शन में एक लघु फिल्म का प्रसारण किया गया है। मंत्रालय ने एक छोटे वीडियो क्लिप, एक ऑडियो क्लिप और एक पोस्टर के माध्यम से पोक्सो अधिनियम के विभिन्न पहलुओं को प्रभावी तरीके से शामिल करने के लिए जागरूकता अभियान चलाया है। इन्हें प्रभावी पहुंच के लिए क्षेत्रीय भाषाओं में भी अनुवादित किया गया है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने चाइल्डलाइन 1098 चालू की है। यह पूरे वर्ष 24 घंटे संचालन में रहती है। बच्चों को सुरक्षा और शिकायत और आपातकालीन पहुंच के संभावित तरीकों के बारे में जानकारी देने के लिए कक्षा छहवीं से कक्षा 12वीं तक की सभी पाठ्य पुस्तकों में आवरण पर पोक्सो ई-बॉक्स है।
सत्या, 
लाइव 7

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