डब्ल्यूटीओ में किसानों की आजीविका, खाद्य सुरक्षा से जुड़े मुद्दों का स्थायी समाधान चाहता है भारत

Live 7 Desk

नयी दिल्ली, 11 दिसंबर (लाइव 7) भारत विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में कृषि बाजार को और मुक्त बनाने के लिये विकासशील और गरीब देशों पर किसी और दायित्व को स्वीकार करने के लिये कहे जाने से पहले किसानों की आजीविका और गरीबों की खाद्य सुरक्षा जैसे दो ज्वलंत मुद्दों के स्थायी समाधान पर जोर दे रहा है।
डब्ल्यूटीओ की 14वीं मंत्रिस्तरीय बैठक से पहले संगठन के मुख्यालय जिनेवा में चल चल रही आधिकारिक स्तर की लाइव 7ओं में कृषि क्षेत्र संबंधी लाइव 7ओं की प्रगति के बारे में पूछे जाने पर यहां अधिकारियों ने कहा, “ हमारे लिये अपने किसानों की आजीविका और आम लोगों की खाद्य सुरक्षा का मुद्दा एक प्रकार की लक्षमण रेखा है। इन मुद्दों के सर्वमान्य स्थायी समाधान ढूंढे जाने चाहिए, तभी कृषि व्यापार पर कोई और प्रगति हो सकती है। ”
डब्ल्यूटीओ के 116 सदस्य देशों के मंत्रियों की 14वीं बैठक कैमरून में मार्च 2025 में होने वाली है।
अधिकारियों ने कहा, “ अनाज की सरकारी खदी से जुड़े मुख्य मुद्दों को प्राथमिकता मिलनी ही चाहिये। यह मामला दोहा बैठक (2001) से लंबित है। ” अधिकारियों ने कहा कि इस शताब्दी के प्रारंभ में दोहा बैठक (2001) में इन मुद्दों के महत्व को स्वीकार किया गया था और इस पर विधिवत बातचीत शुरू की गयी। बाली (इंडोनेशिया) में 2013 में हुई बैठक में भारत और अन्य विकासशील देशों के कड़े रूख से अनाज की सरकारी खरीद के मुद्दे पर “ शांति उपबंध ” के रूप में यह सहमति बनी थी कि जब तक इस मुद्दे का समाधान नहीं हो जाता तब तक काई सदस्य किसी सदस्य के खिलाफ इस मुद्दे पर विवाद समाधान के लिये शिकायत नहीं करेगा, लेकिन अब तक इस विषय में सहमति नहीं बन सकी है।
भारत जैसे विकासशील देशों में समर्थन मूल्य पर अनाज की सरकारी खरीद छोटे या सीमांत किसानों की आजीविका और राशन की दुकानों के जरिये उनकी आपूर्ति आम लोगों की खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। भारत और विकासशील देशों का मानना है कि भारत जैसे देशों के अनाज के विशाल सरकारी स्टॉक का कार्यक्रम उनके कृषि उत्पादों का बाजार की संभावनाओं बाधित करता है।
भारत में खाद्य सुरक्षा कानून और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना जैसे कार्यक्रमों के लिये अनाज का भारी स्टॉक जरूरी है। यहां अधिकारियों ने कहा, “ प्रति किसान सब्सिडी की तुलना करे तो भारत और पश्चिमी देशों के की तुलना तिल और ताड़ जैसी दिखती है। ”
अधिकारियों ने कहा कि भारत में सरकार गरीब किसानों की आय बढ़ाने के लिये मदद करती है, जबकि पश्चिम में उत्पादन बढ़ाने के लिये सब्सिडी दी जाती है।” उन्होंने कहा कि भारत सरकार की किसान सम्मान निधि जैसी योजनायें भी आय बढ़ाने का माध्यम है।
अधिकारियों ने यह भी कहा कि कृषि सब्सिडी केवल सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीदे गये स्टॉक के हिसाब से नहीं बल्कि पूरे उत्पादन के हिसाब से भी देखी जानी चाहिये।
भारत चाहता है कि खाद्य सब्सिडी की गणना के लिये संदर्भ मूल्य में संशोधन बहुत जरूरी है1 इस समय भी 1986 की कीमतों को आधार बनाया जाता है, जो कतयी व्यावहारिक नहीं रह गया है। अधिकारियों का कहना है कि संदर्भ मूल्य में व्यावहारिक संशोधन इस मुद्दे के समाधान एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
 .श्रवण
लाइव 7

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