( द्विवेदी से)
नयी दिल्ली, 18 अप्रैल (लाइव 7) देश-विदेश की चुनिंदा पुरानी फिल्में देखने के शौकीन राजधानी दिल्ली के लोगों को अब हर माह न केवल ऐसी कम से कम एक पुरानी फिल्म देखने का मौका मिलेगा , बल्कि वे इस अवसर पर फिल्म विशेष से जुड़े अथवा उसके बारे में विशेष जानकारी रखने वाले शख्सियतों से भी मिल सकेंगे।
केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय का संस्थान इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) नयी दिल्ली में अपने मुख्यालय पर बॉलीवुड से हॉलीवुड तक, विभिन्न देशों के फिल्म उद्योग की चुनिंदा प्रतिष्ठित फिल्मों को एक ‘क्लब’ के माहौल में प्रदर्शित करने का सिलसिल इसी माह अंतिम शनिवार को हिंदी कमेडी ‘जाने भी दो यारों’ से शुरू करने जा रहा है। हर माह अंतिम शनिवार या रविवार को जनपथ स्थित आईजीएनसीए ‘संवेद’ प्रेक्षागार में कोई एक पुरानी दिखायी जाएगी जो संस्थान के पास फिल्मों के एक विशिष्ट संग्रह का हिस्सा हैं।
ये फिल्में इंदौर के जाने माने फिल्म समीक्षक-लेखक-पत्रकार दिवंगत श्री ताम्रकर की जीवन भर की सहेजी सम्पत्ति हैं। आईजीएनसीए ने संस्थान के सचिव सच्चिदानंद जोशी की सक्रिय पहल से करीब साढ़े चार सौ फिल्मों ताम्रकर का यह खजाना उनके परिवार से लेकर अपने पास संग्रहीत किया है। इनमें भारतीय, अमेरिकी और यूरोपीय फिल्म उद्योग की अपने जमाने की चर्चित फिल्में शामिल हैं।
आईजीएनसीए के मीडिया प्रभारी अनुराग पुनेठा ने ‘यूनीलाइव 7’ ने कहा, ‘ क्लसिकल पुरानी फिल्मों पर चर्चा करने के लिए हम ‘जाने दो भी यारों’ के साथ इस माह के आखिरी शनिवार, 27 तारीख को यह सिलसिला शुरू कर रहे हैं। यह एक कॉमेडी (हास्य-परिहास से भरी) फिल्म है। उसके दोनों पटकथा लेखक सुधीर मिश्रा और रंजीत कपूर, जिन्होंने कुंदन शाह के लिए फिल्म लिखी थी, से इस फिल्म पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किए गए हैं। इससे दर्शकों को इस फिल्म के निर्माण से जुड़ी कुछ नयी और रोचक जानकारियां मिल सकती हैं।”
श्री पुनेठा ने कहा कि आईजीएनसीए के पास श्री ताम्रकर संग्रह है जिसमें उन्होंने दुनिया का बेहतरीन सिनेमा एकत्र किया था। वे अब आईजीएनसीए के पास आर्काइव में है। उन्होंने बताया कि श्री ताम्रकर हॉलीवुड, हिंदी सिनेमा और यूरोपियन सिनेमा की क्लासिकल फिल्में एकत्र करते थे। वह इसके लिए दिल्ली में स्थित अलग-अलग देशों के दूतावासों को खत लिखते थे और उनके माध्यम से इंदौर में अपने फिल्म क्लब के लिए उन फिल्मों को मंगवाते थे। ऐसी फिल्में मंगा कर वह इंदौर में फिल्म ियों के साथ देखते-दिखाते थे।
श्री पुनेठा ने कहा कि श्री ताम्रकर फिल्मों के परखी थे। वह प्रतिष्ठित फिल्मों को देखने और दिखाने के बड़े शौकीन थे और उन्होंने खुद की पूंजी से फिल्में जुटाईं। उनके उस संग्रह को आईजीएनसीए ने ले लिया है। उन्होंने बताया, “ उनकी स्मृति में आईजीएनसीए ने 2018 तक देश में सिनेमा पर पहला हिंदी इनसाइक्लोपीडिया बनाया है, हमारे पास चार-साढ़े चार सौ फिल्में हैं। हमारा मकसद यह है कि दिल्ली में एक ऐसा सेंटर हो जिसमें दुनिया भर का बेहतरीन सिनेमा देखने को मिले।” इस संग्रह में पश्चिम की गॉन विद द विंड, साउथ ऑफ द म्यूजिक जैसी पुरानी फिल्में हैं। इस सिलसिले में लोगों को ‘जाने भी दो यारों’, ‘गमन’ जैसी अनेक प्रतिष्ठित फिल्में देखने का आनंद मिल सकता है।
श्री ताम्रकर (9 नवंबर 1938 – 16 नवंबर 2014) हिंदी सिनेमा के एक प्रतिष्ठित फिल्म समीक्षक, लेखक और पत्रकार थे और उन्हें मध्य प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग ने 1992 में ‘सर्वश्रेष्ठ फिल्म आलोचक’ सम्मान तथा 2010 में दादा साहेब फाल्के अकादमी द्वारा ‘वरिष्ठ फिल्म पत्रकार सम्मान’ दिया गया था। उन्हें उनके जानने वाले ‘फिल्म जगत का विश्वकोष’ कहा करते थे। उन्होंने इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में सिनेमा विषय पर दो दशक तक अध्यापन किया और विभिन्न अखबारों के लिए लिखते रहे।
. अशोक
लाइव 7
‘जाने भी दो यारों’ के साथ आईजीएनसीए में शुरू होने जा रहा है मासिक फिल्म-क्लब का सिलसिला
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