इसरो ने स्पैडेक्स मिशन की डॉकिंग दो दिन के लिए टली, 09 जनवरी को होगा प्रदर्शन

Live 7 Desk

चेन्नई, 06 जनवरी (लाइव 7) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सात जनवरी को स्पैडेक्स उपग्रह के डॉकिंग तकनीक के प्रदर्शन को दो दिनों के लिए बढा दिया है और अब 09 जनवरी को इसरो दुनिया के सामने अंतरिक्ष में डॉकिंग तकनीकी का प्रदर्शन करेगा। अगर यह प्रयोग सफल रहा तो भारत ऐसा करने वाला अमेरिका, रूस और चीन के बाद दुनिया का चौथा देश बन जाएगा।
इसरो ने सोशल मीडिया एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “सात जनवरी को होने वाली स्पैडेक्स डॉकिंग को अब नौ जनवरी तक के लिए टाल दिया है।” इसरो ने देरी के कारण हुई असुविधा के लिए खेद भी व्यक्त किया है।
अंतरिक्ष एजेंसी ने आज कहा कि डॉकिंग प्रक्रिया को आज पहचाने गए निरस्त परिदृश्य के आधार पर ग्राउंड सिमुलेशन के माध्यम से और अधिक सत्यापन करने की आवश्यकता है।
दिसंबर को स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (स्पैडेक्स) मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था। पीएसएलवी सी60 रॉकेट ने दो छोटे उपग्रहों एसडीएक्स01 और एसडीएक्स02 और 24 पेलोड के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के पहले लॉन्च पैड से उड़ान भरी थी। उड़ान भरने के लगभग 15 मिनट बाद करीब 220 किलोग्  वजन वाले दो छोटे अंतरिक्ष यान को 475 किलोमीटर की गोलाकार कक्षा में प्रक्षेपित किया गया था। भारत स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट तकनीक का सफल प्रक्षेपण करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है। स्पैडेक्स मिशन दो पेलोड ले गया – स्पैडेक्स-ए और स्पैडेक्स-बी। लगभग 15-16 मिनट की उड़ान अवधि के बाद, स्पैडेक्स उपग्रहों, चेज़र और टारगेट की जोड़ी को 55 डिग्री के झुकाव के साथ पूर्व दिशा में 475 किमी गोलाकार कक्षा में स्थापित किया गया। प्रत्येक का वजन 220 किलोग्  था।
इसरो ने कहा कि दो स्पैडेक्स उपग्रहों को पीएसएलवी-सी60 द्वारा स्वतंत्र रूप से और एक साथ, लगभग 66 दिनों के स्थानीय समय चक्र के साथ 55 डिग्री झुकाव पर 475 किमी की गोलाकार कक्षा में स्थापित किया गया।
इसरो ने कहा इस मिशन में उपयोग की जाने वाली स्वदेशी तकनीक को “भारतीय डॉकिंग सिस्टम” और स्पाडेक्स (स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट) मिशन कहा जाता है जो अंतरिक्ष यान डॉकिंग प्रौद्योगिकी में भारत की विशेषज्ञता का प्रदर्शन कर एक मील का पत्थर साबित हुआ है।
यह मिशन भविष्य में भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि डॉकिंग तकनीक “चंद्रयान-4” और नियोजित भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसे दीर्घकालिक मिशनों के लिए महत्वपूर्ण है, इसके अलावा पहले मानवयुक्त “गगनयान” मिशन के लिए भी अति महत्वपूर्ण है।
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जारी लाइव 7

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