नयी दिल्ली, 26 अगस्त (लाइव 7) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ जितेन्द्र सिंह ने कहा है कि सरकार द्वारा शुरू की गयी नयी जैव – अर्थव्यवस्था नीति आने वाले वर्षों में भारत को इस क्षेत्र में अग्रणी देश के रूप में स्थापित करेगी।
श्री सिंह ने कहा कि इसके लिये अंतरराष्ट्रीय मानकों के साथ जुड़ते हुये नैतिक जैव सुरक्षा संबंधी विचारों और वैश्विक नियामकीय सामंजस्य पर नये सिरे से ध्यान दिया जा रहा है।
डॉ सिंह ने मीडिया चैनल से बातचीत में कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले सप्ताह जिस जैव अर्थव्यवस्था नीति-बायो-ई3 (इकोनॉमी, एम्प्लायमेंट और एनवायरानमेंट ) यानी जैवप्रौद्योगिकी पर विकसित अर्थव्यवस्था, रोजगार और पर्यावरण को मंजूरी दी है, वह भारत को इस क्षेत्र में नेतृत्वकारी भूमिका दिलाने में सहायक होगी।
मंत्रालय की रविवार को जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार डॉ सिंह ने कहा, “ जैव-ई3 नीति पासा पलटने वाली होगी। ”
उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि भारत की जैव अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और यह 2014 के 10 अरब डालर से बढ़ कर 2024 में 130 अरब डालर तक पहुंच गयी। उन्होंने इस अनुमान का भी जिक्र किया कि 2030 तक भारत की जैव प्रौद्योगिकी आधारित अर्थव्यवस्था 300 अरब डालर तक पहुंच सकती है।
विज्ञप्ति के अनुसार डॉ सिंह ने कहा, ‘‘ मोदी सरकार द्वारा शुरू की गयी नयी जैव- अर्थव्यवस्था नीति आने वाले वर्षों में भारत को वैश्विक स्तर पर नेतृवकारी भूमिका निभाने वाले के तौर पर स्थापित करेगी। ”
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने एक प्रगतिशील नीति को
आगे बढ़ाया है जिसका उद्देश्य परंपरागत उपभोक्तावादी सोच से हटकर बेहतर प्रदर्शन, पुनरुत्पादक जैव विनिर्माण नीति को अपनाना है जो कि स्वच्छ, हरित और अधिक समृद्ध भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
उन्होंने कहा, “ जैव-ई3 नीति भारत के वृद्धि दायरे का विस्तार करेगी और न्यूनतम कार्बन उत्सर्जन के साथ जैव आधारित उत्पादों के विकास को बढ़ावा देते हुये ‘मेक इन इंडिया’ प्रयासों में व्यापक योगदान करेगी। ”
इसमें रसायन आधारित उद्योगों से स्वस्थ विकास में सहायक जैव उत्पाद -आधारित मॉडल की ओर बदलाव में सुविधा, चक्रीय जैव अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने, हरित गैसों, बायोमास, अपशिष्ट भू-भराव से नवीन अपशिष्ट उपयोग के माध्यम से शून्य कार्बन उत्सर्जन हासिल करने और जैव आधारित उत्पादों के विकास को प्रोत्साहन देने के साथ ही रोजगार सृजन बढ़ाने पर जोर दिया गया है।
उन्होंने कहा कि यह नीति जैव आधारित रसायनों, स्मार्ट प्रोटीन, सटीक जैव चिकित्सा, जलवायु -सक्षम कृषि और कार्बन बंदीकरण सहित विभिन्न क्षेत्रों में उद्यमिता को प्रोत्साहित करती है। इसमें देश में अत्याधुनिक जैव विनिर्माण सुविधाओं के विस्तार, बायो-फाउंड्री क्लस्टर और जैव-एआई हब स्थापित करने का विचार है।
विज्ञप्ति के अनुसार नयी नीति में जैव विनिर्माण केन्द्रों के महत्व के बारे में मंत्री ने कहा कि ये केंद्र जैव-आधारित उत्पादों के उत्पादन, विकास और वाणिज्यिकरण के लिये एक केन्द्रीकृत सुविधा के तौर पर काम करेंगे।
उन्होंने कहा, ‘‘ ये केन्द्र प्रयोगशाला-पैमाने और वाणिज्यिक-पैमाने के विनिर्माण के बीच के अंतर को पाटने, स्टार्ट अप, एसएमई और स्थापित विनिर्माताओं के बीच सहयोग बढ़ाने का काम करेंगे। ”
उन्होंने कहा कि जैव-एआई केन्द्र एआई को बड़े पैमाने के जैविक डेटा विश्लेषण के साथ जोड़ने में नवाचार को आगे बढ़ायेंगे और इससे नई वंशाणु उपचार और खाद्य प्रसंस्करण समाधानों का मार्ग प्रशस्त होगा।
डाॅ. सिंह ने कहा, ‘‘ उम्मीद की जाती है कि इससे दूसरी और तीसरी श्रेणी के शहरों में, जहां जैव विनिर्माण केन्द्र स्थापित किये जायेंगे, रोजगार के व्यापक अवसर पैदा होंगे। इन विनिर्माण केन्द्रों में स्थानीय बायोमास संसाधनों का लाभ उठाया जायेगा जिससे कि उन क्षेत्रों का आर्थिक विकास भी तेज होगा। ’’
.श्रवण
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नयी जैव-अर्थव्यवस्था नीति भारत को अग्रणी स्थानी दिलायेगी: डॉ जितेंद्र सिंह
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