आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू जिले में मंगलवार को आंध्र-ओडिशा सीमा क्षेत्र में सुरक्षा बलों और माओवादी समूह के बीच हुई मुठभेड़ में शीर्ष माओवादी कमांडर माडवी हिडमा समेत छह माओवादी मारे गए। यह मुठभेड़ मारेडुमिली वन क्षेत्र में उस समय हुई जब छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और ओडिशा की पुलिस और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवान माओवादियों की मौजूदगी की सूचना मिलने के बाद तलाशी अभियान में लगे हुए थे। पुलिस सूत्रों के अनुसार मुठभेड़ उस समय शुरू हुई जब सुरक्षा बलों ने माओवादियों के एक समूह को घेर लिया और उन्हें आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया। इसके बाद माओवादियों ने कथित तौर पर गोलीबारी शुरू कर दी, जिससे सुरक्षा बलों को जवाबी कार्रवाई करनी पड़ी। सुरक्षा बल अब भी कुछ माओवादियों की तलाश में अभियान जारी रखे हुए हैं, जिनके जंगलों में गहरे भाग जाने की आशंका है।
माडवी हिडमा को भारत का सबसे वांछित माओवादी कमांडर माना जाता था। 43 वर्षीय हिडमा पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) बटालियन नंबर 1 का प्रमुख था, जिसे सबसे घातक माओवादी हमला इकाई माना जाता है। वह CPI (माओवादी) केंद्रीय समिति का सदस्य और छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र का एकमात्र आदिवासी प्रतिनिधि था। हिडमा पर 50 लाख रुपये का इनाम था। हिडमा को 2010 में दंतेवाड़ा नरसंहार का मास्टरमाइंड माना जाता है, जिसमें केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के 76 जवान शहीद हुए थे। इसके अलावा, 2013 के झीरम घाटी नरसंहार में शीर्ष कांग्रेस नेताओं समेत 27 लोगों की हत्या में उसका संदेह था। 2021 में सुकमा-बीजापुर हमले में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के 22 जवान शहीद हुए, जिसके लिए भी हिडमा को जिम्मेदार माना जाता था।
इस मुठभेड़ को माओवादी विरोधी अभियानों में सुरक्षा बलों की बड़ी सफलता माना जा रहा है। हिडमा के खात्मे से आंध्र-ओडिशा सीमा क्षेत्र में माओवादी संगठन के फिर से संगठित होने की संभावना पर बड़ा झटका लगा है। यह क्षेत्र कभी माओवादी गतिविधियों का गढ़ माना जाता था और हिडमा ने इस क्षेत्र में संगठन की मजबूत पकड़ बनाए रखी थी। विशेषज्ञों का कहना है कि हिडमा के मार गिराए जाने से माओवादी हिंसा पर न केवल कड़ा प्रभाव पड़ेगा, बल्कि स्थानीय लोगों की सुरक्षा भी बेहतर होगी। यह कार्रवाई त्रि-राज्यीय सुरक्षा तंत्र की दक्षता और समन्वय का प्रतीक है, क्योंकि मुठभेड़ आंध्र प्रदेश, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के त्रि-जंक्शन बिंदु के पास हुई।
सुरक्षा बलों की यह सफलता पिछले कुछ वर्षों में माओवादी विरोधी अभियानों में मिली कई सफलताओं के बाद एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। हिडमा की हत्या से न केवल संगठन की रणनीतिक क्षमता कमजोर हुई है, बल्कि क्षेत्र में आम जनता को भी राहत मिली है। इस मुठभेड़ से यह संदेश जाता है कि सरकारी सुरक्षा बल माओवादी हिंसा के खिलाफ गंभीर और निर्णायक कदम उठा रहे हैं, और देश के उन हिस्सों में भी कानून और व्यवस्था बहाल करने की कोशिशें लगातार जारी हैं, जो लंबे समय तक माओवादी आतंकवाद का गढ़ रहे हैं।

