रांची, आजसू पार्टी ने झारखंड स्थापना दिवस समारोह पर तीखा हमला बोलते हुए कहा है कि राज्य सरकार ने इसे ‘झामुमो महिमामंडन समारोह’ में बदल दिया है। पार्टी का आरोप है कि समारोह में झारखंड आंदोलन में आजसू की भूमिका को अनदेखा किया गया और केवल झामुमो नेताओं का गुणगान किया गया। आजसू के केंद्रीय उपाध्यक्ष एवं झारखंड आंदोलनकारी प्रवीण प्रभाकर ने बताया कि सांस्कृतिक कार्यक्रम और कॉफी टेबल बुक में बिरसा मुंडा और अन्य शहीदों की बजाय सिर्फ शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन पर ध्यान केंद्रित किया गया। उन्होंने कहा कि न तो झारखंड के शहीदों और आंदोलनकारियों का जिक्र किया गया और न ही अन्य किसी मुख्यमंत्री का उल्लेख किया गया। राजधानी रांची में होर्डिंग्स पर भी बिरसा मुंडा की जगह हेमंत सोरेन के फोटो प्रमुखता से दिखाई दिए।
प्रवीण प्रभाकर ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि झारखंड आंदोलन में गुरुजी की बड़ी भूमिका थी, लेकिन झामुमो को यह जवाब देना चाहिए कि जब वह लंबे समय तक यूपीए में कांग्रेस और राजद के साथ था तो झारखंड क्यों नहीं बना। उन्होंने सवाल उठाया कि आजसू के एनडीए से जुड़ने के बाद ही राज्य का निर्माण क्यों संभव हुआ। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि 1993 में झामुमो के चार सांसदों के समर्थन से कांग्रेस के प्रधानमंत्री नरसिंह राव की सरकार बचाई गई थी, तब अलग राज्य का प्रस्ताव क्यों नहीं आया। 1992 में लालू सरकार को झामुमो ने समर्थन दिया था, तब भी अलग राज्य का गठन क्यों नहीं हुआ।
श्री प्रभाकर ने जोर देकर कहा कि स्थापना दिवस समारोह में आजसू और झारखंड पार्टी जैसे आंदोलनकारी संगठनों की भूमिका पूरी तरह दरकिनार कर दी गई। उन्होंने याद दिलाया कि आजसू के उग्र आंदोलन के प्रभाव में ही कांग्रेस की राजीव गांधी सरकार ने 1989 में और भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 1999 में आजसू से वार्ता की, जिसके परिणामस्वरूप अलग राज्य का गठन हुआ और झारखंड नामकरण किया गया। उन्होंने कहा कि झारखंड आंदोलन में आजसू के संघर्ष और बलिदान को नजरअंदाज करना उचित नहीं है। पार्टी का यह भी कहना है कि राज्य निर्माण में आजसू की सक्रिय भूमिका और आंदोलनकारियों के योगदान को स्थापना दिवस समारोह में सही तरीके से प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
आजसू का यह विरोध झारखंड स्थापना दिवस को लेकर राजनीतिक विवाद का एक नया अध्याय जोड़ता है। पार्टी ने स्पष्ट किया कि वह राज्य आंदोलन के इतिहास और शहीदों की स्मृति को संरक्षित करने के लिए लगातार संघर्ष करती रहेगी और सरकार को इस दिशा में कदम उठाने के लिए मजबूर करेगी। राज्य की राजनीतिक गलियारे में इस बयान के बाद चर्चा शुरू हो गई है कि स्थापना दिवस समारोह में राजनीतिक और आंदोलनकारी इतिहास को संतुलित रूप से प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि आजसू का विरोध झारखंड के राजनीतिक इतिहास और झामुमो की नीतियों पर नई बहस को जन्म दे सकता है।

