नई दिल्ली। ऐसे समय में जब अमेरिका, यूरोप और कई पश्चिमी देश रूस पर लगातार प्रतिबंध, टैरिफ और राजनीतिक दबाव बनाए हुए हैं, भारत ने रूस के साथ अपने पुराने और भरोसेमंद रिश्तों को एक बार फिर खुले तौर पर मजबूती से प्रदर्शित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का एयरपोर्ट पर स्वयं जाकर स्वागत करना वैश्विक कूटनीति में एक स्पष्ट संदेश के रूप में देखा जा रहा है।
आमतौर पर किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष के स्वागत के लिए विदेश सचिव या कोई केंद्रीय मंत्री पहुंचता है, लेकिन प्रधानमंत्री का खुद एयरपोर्ट पर पहुंचना बताता है कि यह दौरा भारत के लिए कितना विशेष है। प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर लिखा – “Delighted to welcome my friend President Putin to India. Looking forward to our interactions. India-Russia friendship is time-tested.” दोनों नेता एक ही वाहन में बैठकर अपने गंतव्य की ओर रवाना हुए।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटनाक्रम अमेरिका, यूरोप और चीन तक को यह संदेश देता है कि भारत और रूस के संबंध आज भी मजबूत हैं और किसी भी दबाव से प्रभावित नहीं हो रहे। इस दौरे के साथ केवल पुतिन ही नहीं, बल्कि रूस के कई मंत्री, रक्षा मंत्री और व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल भी भारत पहुंचे हैं। इसके साथ ही भारत-रूस बिजनेस फोरम की बैठकें भी चल रही हैं, जहां दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश को लेकर चर्चाएं हो रही हैं।
केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में कहा था कि भारत के किसी भी कोने में अगर रूस का नाम लिया जाए, तो लोग उसे “भारत का सुख-दुख का साथी” मानते हैं। भारतीय संस्कृति में दोस्ती केवल अच्छे समय तक सीमित नहीं होती, बल्कि संकट के समय साथ खड़े रहना ही सच्ची मित्रता की पहचान होती है।
हालांकि इस दौरे को लेकर पश्चिमी मीडिया में कई तरह की अटकलें भी सामने आईं। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि रूस भारत को न्यूक्लियर अटैक सबमरीन देगा, लेकिन भारत सरकार की पीआईबी फैक्ट चेक टीम ने इस खबर को पूरी तरह फर्जी करार दिया है। स्पष्ट किया गया कि भारत और रूस के बीच इस समय कोई नई डिफेंस डील साइन नहीं हुई है। जिन सबमरीन लीज की बातें हो रही हैं, वह पुराना समझौता है जो 2019 में हुआ था और जिसकी डिलीवरी अब 2028 तक के लिए टल चुकी है।
व्यापार के मोर्चे पर भी दोनों देशों के बीच ट्रेड बैलेंस असंतुलित बना हुआ है। मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक भारत-रूस व्यापार लगभग 68 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है, लेकिन इसमें भारत का निर्यात सिर्फ करीब 5 बिलियन डॉलर है, जबकि आयात 60 बिलियन डॉलर से अधिक है, जिसमें तेल, उर्वरक और अन्य ऊर्जा संसाधन प्रमुख हैं। विशेषज्ञ इसे भारत के लिए एक अस्वस्थ व्यापार स्थिति मान रहे हैं।
इस दौरे में सबसे अहम विषय ऊर्जा सहयोग (Energy Cooperation) माना जा रहा है। भारत रूस से कच्चा तेल, उर्वरक और पहले कोयला भी खरीद चुका है। परमाणु ऊर्जा को लेकर भी रूस भारत को सहयोग का प्रस्ताव दे सकता है। वहीं रक्षा क्षेत्र में रूस का दबदबा पहले जहां 70 प्रतिशत से अधिक था, वह अब घटकर लगभग 36 प्रतिशत रह गया है। भारत अब अमेरिका, फ्रांस और इज़रायल से भी बड़े पैमाने पर रक्षा सौदे कर रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह दौरा जोड़-तोड़ की नई भूराजनीतिक तस्वीर (Multipolar World) को और मजबूत करता है, जहां भारत किसी एक ध्रुव का हिस्सा बनने की बजाय स्वतंत्र विदेश नीति के साथ अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दे रहा है।

