चंडीगढ़। भारत ने रक्षा तकनीक के क्षेत्र में एक और बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने फाइटर एयरक्राफ्ट एस्केप सिस्टम के लिए हाई-स्पीड रॉकेट स्लेज टेस्ट सफलतापूर्वक पूरा किया है। इस परीक्षण के बाद भारत दुनिया के उन गिने-चुने देशों के एलीट क्लब में शामिल हो गया है, जिनके पास इस तरह की अत्याधुनिक इन-हाउस टेस्टिंग क्षमता है। इस टेस्ट की जानकारी डीआरडीओ के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल के माध्यम से साझा की गई, जिसे रक्षा मंत्री समेत कई सरकारी संस्थानों ने भी साझा किया।
यह परीक्षण चंडीगढ़ स्थित टर्मिनल बैलिस्टिक रिसर्च लेबोरेटरी में किया गया। परीक्षण में फाइटर जेट के कॉकपिट के आगे के हिस्से को रॉकेट की मदद से लगभग 800 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार तक पहुंचाया गया और उसी गति पर इजेक्शन सिस्टम की कार्यक्षमता को परखा गया। इस दौरान कैनोपी सेवरेंस, इजेक्शन सीक्वेंसिंग और एयर क्रू रिकवरी जैसे महत्वपूर्ण चरणों को सफलतापूर्वक सत्यापित किया गया।
डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया कि इस टेस्ट में जिस व्यक्ति को बाहर निकलते हुए दिखाया गया है, वह कोई वास्तविक इंसान नहीं बल्कि एक मैनिक्विन (डमी) था। इस परीक्षण का उद्देश्य वास्तविक परिस्थितियों में पायलट की सुरक्षा प्रणाली की प्रभावशीलता को जांचना था।
यह टेस्ट एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (एडीए) और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के सहयोग से किया गया। इसके तहत प्राप्त आंकड़ों का उपयोग भविष्य के भारतीय लड़ाकू विमानों की सुरक्षा प्रणालियों को और मजबूत बनाने में किया जाएगा। विशेषज्ञों के अनुसार, यह परीक्षण इसलिए भी अहम है क्योंकि वास्तविक युद्ध या दुर्घटना की स्थिति में फाइटर जेट बहुत तेज गति में होता है और उसी गति पर पायलट को सुरक्षित बाहर निकालना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है।
दुनिया के अधिकतर देश आज भी इजेक्शन सीट के लिए केवल स्टैटिक टेस्ट पर निर्भर हैं, जबकि भारत ने इस बार डायनेमिक यानी वास्तविक परिस्थितियों जैसा टेस्ट कर यह साबित कर दिया कि उसकी तकनीकी क्षमता लगातार श्रेष्ठ होती जा रही है। माना जा रहा है कि अब अमेरिका और रूस जैसे देशों के बाद भारत भी इस अत्याधुनिक टेस्टिंग क्षमता वाले देशों में शामिल हो गया है।
वर्तमान में भारतीय वायुसेना के तेजस जैसे लड़ाकू विमान में ब्रिटेन की प्रसिद्ध कंपनी मार्टिन-बेकर की इजेक्शन सीट का उपयोग किया जाता है, लेकिन यह टेस्ट इजेक्शन सिस्टम यानी पूरी प्रक्रिया की विश्वसनीयता को प्रमाणित करता है, न कि केवल सीट को। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में भारत पूरी तरह से स्वदेशी इजेक्शन सीट विकसित करने की दिशा में भी आगे बढ़ेगा।
रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, यह परीक्षण भविष्य में भारतीय पायलटों की सुरक्षा को और पुख्ता बनाएगा तथा अत्याधुनिक एविएशन सेफ्टी स्टैंडर्ड्स में भारत की भूमिका को मजबूत करेगा।

