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भारत में भूकंपीय जोखिम के आकलन में दशकों बाद हुए बड़े बदलाव को वैज्ञानिक समुदाय ने अत्यंत महत्वपूर्ण कदम बताया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह नया मानचित्र पहले की तुलना में कहीं अधिक वैज्ञानिक, सटीक और आधुनिक तकनीकों पर आधारित है, जिससे जोखिम वाले इलाकों का मूल्यांकन पहले से बेहतर हो सकेगा।
पूरी हिमालयी पट्टी को मिला समान खतरे का आकलन
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक और राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के पूर्व प्रमुख विनीत गहलोत के अनुसार नया मानचित्र हिमालयी क्षेत्र के लिए वह वैज्ञानिक एकरूपता लेकर आया है, जिसका वर्षों से इंतजार था।
पहले इस पट्टी को दो अलग-अलग जोनों—जोन-IV और जोन-V—में विभाजित किया गया था, जबकि पूरे हिमालय में टेक्टोनिक तनाव समान प्रकृति का है।
गहलोत ने बताया कि पहले बनाए गए जोन लॉक्ड फॉल्ट सेगमेंट्स के वास्तविक व्यवहार को पूरी तरह समझ नहीं पाते थे। यह फॉल्ट लंबे समय से ऊर्जा संचित कर रहे हैं और भविष्य में बड़े भूकंप की संभावना रखते हैं।
केंद्रीय हिमालय का वह भाग जहां लगभग 200 साल से कोई बड़ा सतही भूकंप नहीं आया है, सबसे ज्यादा संवेदनशील माना जा रहा है।
भूकंपीय टूटन दक्षिण तक पहुँचने की आशंका
नए मानचित्र में यह दर्शाया गया है कि बाहरी हिमालय में संभावित भूकंपीय टूटन दक्षिण की ओर बढ़कर हिमालयी फ्रंटल थ्रस्ट (HFT) तक फैल सकती है।
यह फॉल्ट लाइन देहरादून के पास मोहनद क्षेत्र से शुरू मानी जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस नए आकलन से पूरी हिमालयी श्रृंखला के जोखिम का अधिक यथार्थवादी मूल्यांकन संभव हुआ है।
नए निर्देशों में यह भी कहा गया है कि दो जोनों की सीमा पर स्थित किसी भी शहर या कस्बे को स्वतः उच्च जोखिम श्रेणी में रखा जाएगा। इससे इंजीनियरिंग डिज़ाइन और निर्माण मानकों को पुराने डेटा पर आधारित निर्णयों से बचाया जा सकेगा।
आधुनिक मॉडलिंग तकनीक पर आधारित नया भूकंप आकलन
ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) ने बताया कि यह नया मानचित्र बेहद उन्नत PSHA (Probabilistic Seismic Hazard Assessment) मॉडल का उपयोग कर तैयार किया गया है। इसमें शामिल हैं—
सक्रिय फॉल्ट लाइनों का विस्तृत वैज्ञानिक डेटा,प्रत्येक फॉल्ट की अनुमानित अधिकतम भूकंपीय क्षमता
दूरी के साथ जमीन के हिलने की तीव्रता में बदलाव का विश्लेषण,भूगर्भीय संरचनाओं और टेक्टोनिक सेटअप का अध्ययन,
आधुनिक भू-वैज्ञानिक सतह मॉडलिंग

