रांची। झारखंड हाईकोर्ट में आज मुख्य सचिव, गृह सचिव, डीजीपी और आईटी विभाग की सचिव व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए। अदालत ने राज्य के सभी पुलिस थानों को पूरी तरह सीसीटीवी कैमरों से सुसज्जित करने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए। यह सुनवाई प्रॉपर्टी रिएल्टी प्राइवेट लिमिटेड और पश्चिम बंगाल के शौभिक बनर्जी समेत अन्य की ओर से दायर याचिका पर हुई। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने अधिकारियों से कहा कि वे डीपीआर तैयार करें और सीसीटीवी कैमरों की खरीद एवं स्थापना के लिए टेंडर प्रक्रिया 31 दिसंबर 2025 तक पूरी करें। इसके बाद राज्य के 334 थानों में सीसीटीवी कैमरों की स्थापना शीघ्रतापूर्वक सुनिश्चित की जाए। अदालत ने आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए अंतिम तिथि 5 जनवरी 2026 तय की।
यह याचिका उस समय सामने आई जब शौभिक बनर्जी और अन्य ने आरोप लगाया कि धनबाद कोर्ट में चेक बाउंस से जुड़े मामले में बेल लेने के लिए गए थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें दो दिनों तक अवैध रूप से थाने में रखा और दूसरे पक्ष के पक्ष में दबाव बनाने का प्रयास किया। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि पूरी घटना बैंक मोड़ थाने में लगे सीसीटीवी कैमरों में रिकॉर्ड हो गई थी। हाईकोर्ट ने इस मामले में थाने से सीसीटीवी फुटेज प्रस्तुत करने का आदेश दिया। इसके जवाब में पुलिस ने कहा कि सिर्फ दो दिनों का ही बैकअप उपलब्ध है। अदालत ने इस तथ्य पर आश्चर्य व्यक्त किया और कहा कि धनबाद जैसे बड़े शहर में, जहां अपराध की घटनाएँ अपेक्षाकृत अधिक हैं, वहां सीसीटीवी डेटा का उचित संरक्षण न होना बेहद चिंताजनक है।
अदालत ने स्पष्ट किया कि यह सिर्फ एक तकनीकी मुद्दा नहीं है, बल्कि नागरिकों के मौलिक अधिकार और पुलिस व्यवस्था की जवाबदेही का सवाल है। अदालत ने यह भी जोर दिया कि प्रत्येक थाने में स्थापित कैमरों का डेटा सुरक्षित रूप से संरक्षित किया जाना चाहिए और आवश्यक होने पर अदालत को समय पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए। मुख्य सचिव और डीजीपी सहित अन्य अधिकारी अदालत के आदेशों के अनुपालन का आश्वासन दिया। अधिकारियों ने बताया कि राज्य के सभी थानों में सीसीटीवी कैमरों की स्थापना के लिए आवश्यक बजट, तकनीकी व्यवस्था और टेंडर प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी गई है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सभी थानों में सीसीटीवी कैमरों की व्यवस्था से न केवल पुलिस की जवाबदेही बढ़ेगी, बल्कि नागरिकों के खिलाफ किसी भी प्रकार के दुरुपयोग या अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगेगा। इसके साथ ही अपराधों की जांच और सबूतों की सत्यता सुनिश्चित करने में भी मदद मिलेगी। इस मामले में हाईकोर्ट का स्पष्ट संदेश है कि तकनीकी निगरानी व्यवस्था को केवल फॉर्मेलिटी के रूप में नहीं बल्कि प्रभावी और नियमित रूप से लागू किया जाए। इससे राज्य में कानून और व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने में मदद मिलेगी।

