राजस्थान में इस बार गाय के गोबर से बने दीपकों की रोशनी जगमगायेगी

Live 7 Desk

जयपुर 18 अक्टूबर (लाइव 7) राजस्थान में पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों में जागरुता आने से दिवाली पर मिट्टी के दीयों से रोशनी करने के प्रति रुझान बढ़ने लगा है और साथ ही गाय के गोबर से बने दीयों को भी बढ़ावा मिलने लगा हैं और इस बार रोशनी के पर्व दीपावली पर गो संवर्द्धन एवं पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए राजधानी जयपुर सहित कई क्षेत्रों में मिट्टी के बने दीयों के साथ गाय के गोबर से बने दीपकों की रोशनी जगमगायेगी।
जयपुर के विभिन्न स्वयं सहायता महिला समूह से जुड़ी महिलाओं ने अपनी अथक मेहनत से इन गोमय दीपकों को तैयार किया हैं। हैनिमन चेरिटेबल सोसायटी की सचिव मोनिका गुप्ता ने बताया कि पिछले दो महीनों से महिलाएं गाय के गोबर से ये दीपक बनाने में जुटी है। श्रीमती गुप्ता ने बताया कि टोंक रोड स्थित पिंजरापोल गौशाला के वैदिक पादप अनुसंधान केन्द्र में बड़ी संख्या में गाय के गोबर से दीपक तैयार किए गए हैं। माता रानी स्वयं सहायता समूह की महिलाएं प्रतिदिन लगभग पांच हजार दीपक बना रही हैं। यह कार्य इन महिलाओं को आत्मनिर्भरता और सम्मानजनक आजीविका दोनों प्रदान कर रहा है, साथ ही ग् ीण कारीगरों और गौशालाओं को भी आर्थिक सहयोग का माध्यम बन रहा है।
उन्होंने बताया कि ये दीपक देसी नस्ल की गाय के गोबर और दुर्लभ औषधीय जड़ी-बूटियों से निर्मित हैं। इनमें जटामासी, अश्वगंधा, रीठा, देसी घी, मोरिंगा पाउडर, काली हल्दी, नीम, तुलसी और अन्य प्राकृतिक तत्व सम्मिलित किए गए हैं। जब ये दीपक जलते हैं, तो उनसे न केवल उजाला फैलता है बल्कि हवन सामग्री जैसी दिव्य सुगंध भी वातावरण में व्याप्त हो जाती है। यह विशिष्ट संयोजन दीपों को आध्यात्मिक और औषधीय दोनों दृष्टियों से उपयोगी बनाता है।
अखिल भारतीय गौशाला सहयोग परिषद के अंतराष्ट्रीय संयोजक डा अतुल गुप्ता ने बताया कि गोमय दीपकों की विशेषता यह भी है कि ये अत्यंत हल्के, गिरने पर टूटते नहीं और इन्हें कई बार जलाया जा सकता है। जलने के बाद इन्हें मिट्टी या पौधों में डालने से ये प्राकृतिक खाद (उर्वरक) की तरह कार्य करते हैं। इस प्रकार ये दीपक रोशनी के साथ पोषण का संदेश देते हैं। यह प्रयोग भारतीय परंपरा में वर्णित पंचगव्य सिद्धांत का आधुनिक स्वरूप है जो यह दर्शाता है कि स्वदेशी ज्ञान और पर्यावरण-संरक्षण के मेल से भी नवाचार संभव हैं।
श्री गुप्ता ने बताया कि इस बार दीपावली पर श्री  जन्मभूमि अयोध्या में 26 लाख दीपकों से दीपोत्सव आयोजित होगा, जिसमें जयपुर से पांच लाख गोमय दीपक विशेष आकर्षण का केन्द्र होंगे। उन्होंने बताया कि इस वर्ष राजस्थान राजभवन में भी देसी नस्ल की गाय के गोबर और दुर्लभ औषधीय जड़ी-बूटियों से बने गोमय दीपक प्रज्वलित होंगे। इसके लिए शुक्रवार को विभिन्न गोसेवा संगठनों के प्रतिनिधियों ने राज्यपाल हरिभाऊ किसनराव बागडे से मुलाकात कर उन्हें गोमय दीपक भेंट किए।
उन्होंने बताया कि बाड़मेर जिले में एक संस्था से जुड़ी महिलाएं भी गाय के गोबर से पर्यावरण-अनुकूल दीये बनाकर दीपावली की तैयारी में जुटी हैं। इन्होंने गुजरात के मेहसाणा में प्रशिक्षण लेकर यह कार्य प्रारंभ किया। अब बाड़मेर ही नहीं, प्रदेश के अन्य जगहों से भी इन दीयों की मांग बढ़ने लगी है। उन्होंने बताया कि जयपुर नगर निगम ग्रेटर की ओर से भी इस बार प्रत्येक वार्ड में गोमय दीपक जलाने की तैयारी की जा रही है। शहर के आधा दर्जन से अधिक सामाजिक और धार्मिक संस्थाएं भी गांवों और मोहल्लों में ‘गोमय दीपोत्सव’ मनाने की दिशा में जुटी हैं।
श्री गुप्ता ने बताया कि लोगों में जागरुता आने से दिवाली पर मिट्टी के दीयों से रोशनी करने के प्रति लोगों का रुझान बढ़ने लगा है और साथ ही गाय के गोबर से बने दीयों को भी बढ़ावा मिलने लगा हैं और दीपावली जैसे पर्व पर इनकी मांग भी बढ़ने लगी हैं।
उधर श्रीयादे माटी कला बोर्ड भी मिट्टी के दीयों सहित मिट्टी से बनी वस्तुओं को बढ़ावा देने के प्रयास में जुटा हैं और बोर्ड के अध्यक्ष प्रहलाद राय टाक ने बताया कि दिवाली के मौके पर प्रदेश के विभिन्न शहरों में दीयों सहित मिट्टी से बनी वस्तुओं को बेचने के लिए फुटपाथ पर भी बिना रोकटोक के बेचने देने में मदद के लिए प्रशासन एवं पुलिस को पत्र लिखा गया और मिट्टी के दिए हर जगह उपलब्ध हो रहे हैं।
जोरा
लाइव 7

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