तुलसी के साहित्य में आयुर्वेद के सूत्र

Live 7 Desk

-सत्य प्रकाश से
नयी दिल्ली, 23 अक्टूबर (लाइव 7) श्री चरित्रमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसी दास के साहित्य में बिखरे आयुर्वेद के सूत्रों को बुन्देलखंड विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की शिक्षिका डॉ. सुनीता वर्मा ने शोध पुस्तक “आयुर्वेद मर्मज्ञ:गोस्वामी तुलसीदास” में समेटा है।
पुस्तक में भारतीय ज्ञान परंपरा के अन्तर्गत हिन्दी साहित्य के लोक कवि घाघ और भड्डरी की लोक कहावतों से लेकर मध्यकालीन साहित्यकार गोस्वामी तुलसीदास के सभी काव्य ग्रंथों जैसे श्री चरितमानस,   पत्रिका, कवितावली, दोहावली, बरवे  ायण, वैराग्य संदीपनी, हनुमान बाहुक, हनुमान चालीसा आदि कालजयी रचनाओं में से आयुर्वेद विषयक सूत्रों से परिचय कराया गया है। लेखिका ने चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, अष्टांग संग्रह, अष्टांग हृदय, माधव निदान, द्रव्यगुण विज्ञान, काय चिकित्सा आदि आयुर्वेदिक ग्रंथों के अध्ययन पश्चात् “ आर्युवेद मर्मज्ञ गोस्वामी तुलसीदास” पुस्तक को मूर्त रुप दिया है।
गोस्वामी तुलसीदास ने मानस में जो प्रसिद्ध पंक्तियां “दैहिक दैविक भौतिक तापा,   राज काहूहि नहीं ब्यापा” लिखीं हैं। यह पुस्तक उन पंक्तियों की सटीक व्याख्या करती है। इस पुस्तक के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास के सभी ग्रंथो में से उन्हीं सूत्रों को लिया गया है, जो आयुर्वेदपरक और जीवनोपयोगी हैं। यह पुस्तक जनमानस को स्वस्थ बनाने तथा स्वस्थ व्यक्ति को निरंतर स्वस्थ बनाए रखने में सहायक हैं। गोस्वामी तुलसीदास के आयुर्वेदिक सूत्रों को जो भी व्यक्ति अपने जीवन में ग्रहण करेगा वह निश्चित ही आरोग्यवान होगा।
यह पुस्तक तुलसीदास के ग्रंथों में, जो आयुर्वेदिक सूत्र जड़ी-बूटियों के रुप में जगह-जगह पर बिखरे थे, उनको एक स्थान पर लाने में सफल है। इसके साथ ही भारतीय परंपरा और संस्कृति की रीढ़ के रूप में पहचान “मानव के जीवन मूल्यों “ को भी स्थान दिया गया है।
पुस्तक के माध्यम से भारतीय समाज को स्वस्थ बनाए रखना ही   राज्य की नवीन संकल्पना है। यह संकल्पना सभी को सुखी और स्वस्थ बनाने में सहायक सिद्ध होगी। सार्वजनिक स्वास्थ्य, आयुष संबंधी अनुसंधान, आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा संबंधी नवीन एवं मौलिक अनुसंधानिक सूचनाओं को जनसामान्य तक पहुंचा कर उनको लाभान्वित कर आयुष सुख प्रदान करने का लक्ष्य पूर्ण करेगी।
पुस्तक में डॉक्टर वर्मा ने   पत्रिका का उल्लेख करते हुए लिखा है , “ ज्वर के तो गोस्वामी जैसे विशेषज्ञ हो, उन्होंने अपने काव्य के माध्यम से विभिन्न ज्वरों का विवरण प्रदान किया है। वह भौतिक ज्वर, विषम ज्वर, काम ज्वर इत्यादि के अनेक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। एक उदाहरण इस प्रकार है – काम भुजंग डसत जब जाही, विषय नींब कटु लगत ना ताही।।” इसी तरह से तुलसीदास ने अपने साहित्यिक संसार में सन्निपात, आगन्तुज रोग, कायिक रोग जैसे अनेक रोगों के बारे में जानकारी दी है। इन रोगों में डमरूआ, नहरुवा, कुष्ठ, यक्ष्मा, राज्ययक्ष्मा, कंडू जैसे रोग शामिल हैं।
तुलसीदास  नी जड़ी का अपने साहित्य में “गिरि औषधि” के नाम से उल्लेख करते हैं। श्री  चरितमानस के लंका कांड के 55 वें दोहे में वह कहते हैं- “ कहा नाम गिरि औषधी जाहु पवन सुत लेन।” उन्होेंने साहित्य में वन संपदा के गुण धर्म की चर्चा कर चिकित्सीय वनस्पतियों के अपार भंडार से जनमानस को अवगत कराया है। इन चिकित्सकीय वनस्पतियों की औषधि चमत्कारिकता का भी परिचय दिया गया है।  चरित्र मानस में वह कहते हैं- “औषध मूल फूल फल पाना, कहे नाम गनि मंगल नाना।।”
चूंकि, तुलसीदास   भक्त साहित्यकार हैं और लेखिका इससे भली-भांति परिचित है कि उनकी प्रसिद्धि   भक्त के रूप में है। इसलिए पुस्तक में जगह-जगह पर तुलसीदास के दोहों के साथ आयुर्वेद के महर्षियों और ग्रंथों का भी उल्लेख किया गया है। किसी विषय पर यदि तुलसीदास कोई जानकारी देते हैं तो उसकी प् ाणिकता के लिए भावप्रकाशनिघन्टु, अखरावट, चरक संहिता, सुश्रुत संहिता जैसे प्रमाणिक आयुर्वेद ग्रंथों से उद्धरण दिए गए हैं।
 चरित्र मानस में एक अन्य स्थान पर तुलसीदास स्वस्थ व्यक्ति का वर्णन करते हुए कहते हैं- “अरुन नयन उर बाहू बिसाला, नील जलज तनु स्याम तमाना।।” यह अन्य स्थान पर रावण राज की तुलना क्षयरोग से करते हैं और लंका दहन को मृगांक रस निर्मित करने की प्रक्रिया बताते हैं।
पुस्तक में तुलसीदास के साहित्य में आरोग्य से संबंधित विषयों को वर्णित किया गया है। उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में आने वाले पारिभाषिक शब्दों जैसे- पथ्य, कुपथ्य, अनुपान, शमन, रुज, व्याधि, अगद, औषधि, रोग और रोगी आदि का अपने काव्य में प्रयाेग किया हैं। लेखिका का कहना है कि यह अपने आप में असाधारण बात है, कोई साधारण कवि तो ऐसा कदापि नहीं लिख सकता।
मूल रुप से पुस्तक “आयुर्वेद मर्मज्ञ:गोस्वामी तुलसीदास” जनमानस के लिए लिखी गयी है लेकिन यह शोधार्थियों, विद्यार्थियों और चिकित्सा क्षेत्र में रुचि रखने वाले व्यक्तियों के लिए उपयोगी होगी। इससे न केवल आमजन को श्री चरित्रमानस का नया रुप देखने को मिलेगा बल्कि इसे एक नये रुप में भी समझा जा सकेगा। मानस को न केवल भक्तिभाव से पढा जाएगा बल्कि उपयोगी पुस्तक के रुप में भी इसका अध्ययन हो सकेगा।
सत्या.  .  
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