नयी दिल्ली 15 दिसम्बर (लाइव 7) बंगाल के ख्यातिप्राप्त संत शिरोमणि स्वामी कृष्ण परमहंस और उनके प्रमुख शिष्य स्वामी विवेकानंद के बीच के रिश्ते के बारे में पूरी दुनिया जानती है। पर बहुत कम लोग जानते हैं कि ये दोनों महान विभूतियां महात्मा गांधी की प्रेरणास्रोत थीं और गांधी जी तीव्र इच्छा के बावजूद स्वामी विवेकानंद से कभी मिल नहीं पाये।
महात्मा गांधी पर श्री कृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के गहन लेकिन अनदेखे प्रभाव पर प्रकाश डालने का काम डॉ. निखिल यादव ने अपनी शोध परक पुस्तक ‘गांधी पर कृष्ण-विवेकानंद आंदोलन का प्रभाव’ में किया है जिसका लोकार्पण रविवार को यहां दिल्ली विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित एक कार्यक्रम में किया गया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह-संपर्क प्रमुख भरत अरोड़ा और डॉ. राज कुमार फलवारिया और डॉ. अनन्या अवस्थी विशिष्ट अतिथि थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विवेकानंद केंद्र, उत्तर क्षेत्र के संघचालक श्री मानस भट्टाचार्य ने की। इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के संकाय सदस्यों और शोध विद्वानों के साथ-साथ शिक्षाविदों, आध्यात्मिक नेताओं और भारत की दार्शनिक परंपराओं में गहरी रुचि रखने वाले विद्वानों के साथ-साथ देश की सांस्कृतिक विरासत से जुड़े नागरिक समाज के प्रतिष्ठित सदस्य उपस्थित थे।
लेखक डॉ. निखिल यादव कृष्ण-विवेकानंद परंपरा के एक प्रतिष्ठित विद्वान और वर्तमान में विवेकानंद केंद्र उत्तर क्षेत्र के उप प्रमुख हैं।
पुस्तक के अनुसार गांधीजी के मन में न केवल स्वामी विवेकानंद से मिलने की तीव्र इच्छा थी, जो पूरी नहीं हो पायी। गांधी जी ने विवेकानंद की रचनाओं को पढ़ा और कृष्ण मिशन का दौरा भी किया, जिसकी स्थापना स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु श्री कृष्ण के सम्मान में की थी।
डॉ. निखिल यादव ने पुस्तक का परिचय देते हुए कहा कि श्री कृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी के जीवन और शिक्षाओं पर अलग-अलग व्यापक शोध और अध्ययन किए गए हैं। हालाँकि, यह पहला व्यापक अध्ययन है जो श्री कृष्ण और स्वामी विवेकानंद दोनों के प्रति महात्मा गांधी की गहरी भक्ति को उजागर करता है। गांधीजी के संग्रहीत कार्यों के हवाले से डॉ. यादव ने इस बात पर जोर दिया कि स्वामी कृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद महात्मा गांधी के जीवन का अभिन्न अंग थे, जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका में उनके दिनों से लेकर उनके पूरे जीवन पर प्रभाव डाला।
इस पुस्तक में, लेखक ने गांधी पर कृष्ण और विवेकानंद की शिक्षाओं के गहरे, स्थायी प्रभाव की जांच की है, इस तथ्य के बावजूद कि गांधी इन दो आध्यात्मिक दिग्गजों से कभी नहीं मिले थे। पुस्तक में बताया गया है कि गांधी ने अपने भाषणों, पत्रों और विभिन्न विषयों पर चर्चाओं में लगातार उनके विचारों का उपयोग कैसे किया।
डॉ. यादव का शोध गांधी के दर्शन की आध्यात्मिक नींव की सूक्ष्म समझ प्रदान करता है, जिसमें बताया गया है कि कैसे कृष्ण और विवेकानंद की शिक्षाओं ने उनके नैतिक और राजनीतिक विश्वासों के निर्माण को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया। पुस्तक में ऐसे अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं, जिनमें गांधी ने सीधे तौर पर कृष्ण और विवेकानंद दोनों की शिक्षाओं का संदर्भ दिया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि इन हस्तियों ने उनके विश्व दृष्टिकोण और दर्शन को आकार देने में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।
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लाइव 7
‘गांधी के प्रेरणास्रोत थे स्वामी कृष्ण और विवेकानंद’
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