नयी दिल्ली, 18 अगस्त (लाइव 7) नरेन्द्र मोदी सरकार की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति की सफलता दिल्ली की अरावली पहाड़ियों के बीच ‘साउथ एशियन यूनिवर्सिटी’ यानी ‘दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय’ के 100 एकड़ में फैले परिसर में साफ तौर पर झलकती है।
आठ सदस्यीय सार्क देशों की सरकारों के आपसी सहयोग से स्थापित और संचालित इस अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के अध्यक्ष का पद संभालने से पहले भारत में कई विश्वविद्यालयों के करीब डेढ़ दशक तक संस्थापक कुलपति रहे 76 वर्षीय जाने-माने शिक्षाविद् प्रोफेसर के. के. अग्रवाल ने इसकी खासियत समेत विभिन्न मुद्दों पर ‘यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया’ (यूएनआई) की हिंदी सेवा ‘यूनीलाइव 7’ से बातचीत की।
उन्होंने बाताया, “यह दुनिया का इकलौता अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय है, जिसे दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के सदस्य देशों ने मिलजुलकर बनाया और चला रहे हैं।भारत 50 फीसदी के साथ इसका सबसे बड़ा सहयोगी और हिस्सेदार देश है, जो माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में अहम भूमिका निभा रहा है।”
प्रो. अग्रवाल ने बताया कि भारत सरकार के 100 एकड़ जमीन के अलावा 1200 करोड़ रुपए की लागत से इस विश्वविद्यालय का आधुनिक सुविधाओं वाला नया परिसर पिछले साल तैयार हुआ और इसका लाभ अब विद्यार्थियों को मिलने लगा है। इससे पहले यह विश्वविद्यालय नयी दिल्ली के चाणक्यपुरी के अकबर भवन में चलाया जा रहा था। इसकी शुरुआत वर्ष 2010 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पुराने परिसर से हुई।
दिल्ली के गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति (1998 से 2008 तक) के अलावा देश-विदेश के अनेक प्रमुख प्रौद्योगिकी संस्थानों में उल्लेखनीय सेवा देने वाले प्रो. अग्रवाल ने बताया कि महज कुछ विद्यार्थियों के साथ 2010 में शुरू किये साउथ एशियन यूनिवर्सिटी में वर्तमान में विभिन्न देशों से आए करीब 625 छात्र-छात्राएं हैं। ये सभी स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के अलावा विभिन्न विषयों पर शोध कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि इस शैक्षणिक सत्र से इंजीनियरिंग में स्नातक और स्नातक सह स्नाकोत्तर की पढ़ाई शुरू की जा रही है। इसके अलावा आने वाले समय में पै ेडिकल के क्षेत्र में कुछ पाठ्यक्रम शुरू करने की योजना है। इस तरह से अगले शैक्षणिक सत्र में विद्यार्थियों की संख्या बढ़कर करीब 1000 से अधिक हो सकती है।
विश्वविद्यालय के अध्यक्ष प्रो. अग्रवाल ने बताया कि यहां पाठ्यक्रमों को इस प्रकार से तैयार किया गया है कि विद्यार्थियों को सार्क के सदस्य देशों- भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान, मालदीव और अफगानिस्तान के अलावा अन्य मुल्कों की सामाजिक, सांस्कृतिक विविधता, कानून, तकनीकी आदि खासियतों से रूबरू होने के साथ ही उन देशों के समक्ष भविष्य में आने वाली चुनौतियों का समाधान ढूंढने का अवसर मिल रहा है।
प्रो. अग्रवाल ने बताया कि सार्क देशों के समक्ष आने वाले वर्षों की चुनौतियों से निपटने वाले पाठ्यक्रम शुरू करने की योजना को मूर्त रूप देने के लिए काम चल रहा है। जलवायु परिवर्तन, कृषि और अन्य क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आदि पर केंद्रित उच्च स्तरीय पाठ्यक्रमों को शुरू करना, उनकी प्राथमिकताओं में शामिल है। इन पाठ्यक्रमों को इस प्रकार से संचालित करने की योजना है कि विद्यार्थी किताबी ज्ञान के साथ-साथ सामाजिक रूप से व्यावहारिक ज्ञान में भी दक्षता हासिल कर सकें।
उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय में कुल विद्यार्थियों में 50 फ़ीसदी भारत, 40 फ़ीसदी (आनुपातिक रूप से) सार्क देशों और 10 फ़ीसदी दुनिया के अन्य देशों के विद्यार्थियों को दाखिला देने का प्रावधान है।
प्रो. अग्रवाल ने बताया कि किसी देश में किसी कारण से कोई समस्या है तो वहां के विद्यार्थियों को इस अनूठे अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में शोध या उच्च स्तर की पढ़ाई जारी रखने में कोई बाधा नहीं आती है। यह इसकी एक सबसे बड़ी खासियत है।
उन्होंने कहा, “मुझे विश्वास है कि कि जब अलग-अलग संस्कृतियों और परिस्थितियों से आये विद्यार्थीयों को एक साथ पढ़ाई और शोध करने का अवसर बढ़ेगा तो पड़ोसी देशों के साथ संबंध बेहतर करने में भी और मदद मिलेगी। यदि राजनीतिक या अन्य कारणों से किसी तरह का दरार है, तो यह विश्वविद्यालय उसे भी पाटने का एक सशक्त माध्यम साबित होगा।”
उन्होंने बताया कि सार्क देशों की सरकारों द्वारा संचालित इस विश्वविद्यालय का विस्तार दिल्ली परिसर के अलावा अन्य देशों में भी करने की योजना है।विश्वविद्यालय के सदस्य देशों से विचार-विमर्श विमर्श के बाद आने वाले समय में कुछ अन्य सार्क देशों में इस विश्वविद्यालय के नए परिसर स्थापित किए जाएंगे। यह संबंधित देशों की रुचि और सहयोग पर निर्भर करेगा। यानी जो सार्क देश अपने यहां जमीन और भवन निर्माण के लिए धन औरअन्य जरूरी साधन जितनी जल्दी उपलब्ध कराएंगे, वहां इस विश्वविद्यालय के नए परिसर की स्थापना पहले की जाएगी।
प्रो. अग्रवाल ने बताया कि उन परिसरों में विश्वविद्यालय की मूल भावना के अनुसार पाठ्यक्रम संचालित किए जाएंगे।
विश्वविद्यालय के अध्यक्ष ने बताया कि इस अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के संचालक मंडल में सभी सार्क देशों के शिक्षा मंत्रालय के सचिव और उन देशों के विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष पदेन सदस्य हैं। इस प्रकार इसकी मान्यता को लेकर कोई संदेह नहीं है। इस अनूठे अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय को सार्क देशों में सरकारी विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त है।
दिल्ली के गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति के तौर पर 10 सालों तक सेवा देने वाले प्रो. अग्रवाल ने उम्मीद जताई कि उच्च शिक्षा और शोध पर केंद्रित यह साझा प्रयास करीब दो अरब की आबादी वाले दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए शांति, समृद्धि और खुशहाली लाने वाला साबित हो सकता है।
श्री मोदी ने 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद विदेश नीति पर चर्चा करते हुए उन्होंने ‘नेबरहुड फर्स्ट’ यानी ‘पड़ोसी सबसे पहले’ की नीति पर चलने की बात कही थी। उन्होंने कई मौके पर कहा कि भारत अपने पड़ोसी मुल्कों के साथ संबंधों को ज्यादा अहमियत देगा।
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इस विश्वविद्यालय में झलकती है मोदी की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति की सफलता
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