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सीता राम शर्मा ” चेतन “
भारतीय राजनीति और न्याय व्यवस्था के ऐसे कुछ गिने चुने मामले और अपवाद हैं, जो राजनीतिक इमानदारी और न्यायपालिका के सुधरने की लगभग खत्म हो चुकी उम्मीदों के फिर से पूरी तरह जीवंत और सार्थक होने का विश्वास दिलाते हैं । देश के इन दो महत्वपूर्ण क्षेत्रों में वर्तमान समय की इन उम्मीदों पर बहुत स्पष्टता से बात करें तो राजनीतिक व्यवस्था में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ जैसे कुछ बड़े नेताओं ने जो थोड़ी उम्मीदें बचाई या जगाई, बढ़ाई है, उसका भविष्य में कितना विस्तार होगा और वह कम से कम भाजपा के ही कार्य संस्कृति और आचरण का आधार या हिस्सा होगा, बहुत विश्वास के साथ अभी कुछ कहना निराधार और अतिशयोक्तिपूर्ण ही कहा जा सकता है । ऐसा कहने लिखने के दृढ़ अविश्वास का कारण भी स्पष्ट है, जैसा कि उपर लिखा भी है, थोड़ी उम्मीदें । थोड़ी उम्मीदें इसलिए कि दिखाई देते इन दो बड़े नेताओं का राजनीतिक इमानदारी को लेकर व्यक्तिगत तौर पर पूर्ण और अपने अधिकार क्षेत्र पर बहुत हद तक नियंत्रण दिखाई देता है, पर दलगत राजनीति की नीतियों पर अभी भी व्यापक कमियां हैं । बात राजनीतिक चंदों में पूर्ण पारदर्शिताा नहीं होने के राष्ट्रीय महापाप, भ्रष्टाचार और कुकृत्य की हो या फिर देश के अन्य भाजपाई राज्य सरकारों के आचरण की, कई जगहों पर भारी अनियमितता और भ्रष्टाचार का खेल जारी है । व्यक्तिगत रूप से मैंने झारखंड का जागरूक निवासी होने के नाते 2014 से 2019 तक, जब केंद्र में मोदी सरकार ही थी, झारखंड में भ्रष्ट तथा खोखली घोषणाओं वाली भाजपाई रघुवर सरकार का कर्मकांड देखा है ! दल के रूप में भाजपाई विवशता का वह दौर, जब उसके मंत्री से लेकर आम कार्यकर्ता तक रघुवर को हटाने की मांग करते रहे, पर नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही रहा, वह एक दल के रूप में भाजपा का पोलखोल वाला दौर था । इसलिए वर्तमान समय के मुख्य नेतृत्व मोदी या योगी की व्यक्तिगत इमानदारी को अभी भाजपा की राजनीतिक इमानदारी कहना बिल्कुल गलत होगा । अब बात न्यायपालिका की, तो स्थिति चाहे आज के राजनीतिक, प्रशासनिक भ्रष्टाचार की हो या फिर सामाजिक, सार्वजनिक अनियंत्रित अपराध और आतंकवाद, नक्सलवाद, अलगाववाद की, सब की मजबूती और सक्रियता, अबाधित निरंतरता का मुख्य और बड़ा कारण न्यायपालिका की कमियां, कमजोरियां और पापी निष्क्रियता ही है । छोटे-मोटे अपराधों की तो बात ही छोड़ दें, बड़े-बड़े जघन्य और सार्वजनिक अपराध, जिनमें गवाह और साक्ष्यों की कोई विवशता ही नहीं थी, वो सार्वजनिक थे, जिनका साक्षी पूरा देश था, उनमें भारतीय न्यायपालिका के द्वारा न्याय करने की दीर्घकालीन प्रकिया बेहद चिंतनीय, निंदनीय, शर्मनाक और जनता के विश्वास को तार-तार करने वाली रही है । मामले चाहे देश के दो प्रधानमंत्री की हत्या के हों या फिर संसद पर आतंकी हमले और मुंबई बम धमाकों के जैसे व्यापक नरसंहार के, सब पर न्यायपालिका द्वारा न्याय करने और दोषियों को दंडित करने की अपनाई गई दीर्घकालीन प्रक्रिया बेहद निराशाजनक रही है । खैर, फिलहाल बात वर्तमान की सुर्खियों में छाए भ्रष्टाचार के उस मामले की, जिसमे आरोपी लंबे समय तक देश के सत्ता शीर्ष पर रही कांग्रेस पार्टी के दो मुख्य बड़े नेता हैं । जो माँ और बेटे हैं । जिन पर भ्रष्टाचार का आरोप है । जो न्यायपालिका की दृष्टि में भी भ्रष्टाचार के संदिग्ध होने के साथ उसके द्वारा दी गई बेल पर हैं । जब राष्ट्रीय राजनीति और सत्ता शीर्ष के इन दोनों संदिग्ध अपराधियों को न्यायपलिका ने बेल दी थी तब उस मामले के लिए त्वरित न्याय की व्यवस्था उसने क्यों नहीं बनाई ? वैसा करना उसने क्यों उचित नहीं समझा ? यह समझ से परे है । न्यायपालिका को यह समझना चाहिए कि उसका अस्तित्व, महत्व और उसकी उपयोगिता सबसे पहले देश की व्यवस्था को बनाए रखने के लिए ही है । यदि इस व्यवस्था को बनाए रखने के जिम्मेवार मुख्य लोग ही गलत या कोई अपराध, भ्रष्टाचार करते हैं तो उसे उस पर अपनी पूरी ताकत और तत्परता के साथ त्वरित न्याय करने की व्यवस्था बनानी चाहिए, जिससे देश की व्यवस्था को बनाए रखने और चलाने वाले निचले अधिकारियों के साथ आम जनता तक में यह संदेश जाए कि देश या कानून के खिलाफ काम करने पर उसे सजा मिलेगी और जल्दी मिलेगी । यह घोर आश्चर्य की बात है कि नेशनल हेराल्ड के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने फास्ट ट्रैक कोर्ट की जरूरत क्यों नहीं महसूस की ? देश की जांच एजेन्सयों को एक समय सीमा में जांच पूरी करने का आदेश क्यों नहीं दिया ? और फिर देर से ही सही, अब जांच शुरू की गई तो उसे गलत तरीके के षड्यंत्रकारी धरने प्रदर्शन विरोध और पापी सत्याग्रह से बाधित करने के प्रयास पर उसने त्वरित स्वतः संज्ञान ले, ऐसा करते लोगों को रोकने, फटकारने का काम क्यों नहीं किया ? ऐसे कई सवालों के जवाब अब भारतीय न्ययपालिका को खुद से ही करने की जरूरत है । क्या वह ऐसा करेगी ? यह तो वही जाने, पर देश की करोड़ों जनता तो अब सिर्फ और सिर्फ यह जानना चाहती है कि क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरी इमानदारी से काम करने का दावा करती केंद्र सरकार और न्यायपालिका बहुत विलंब से ही सही नेशनल हेराल्ड मामले को अंजाम तक पहुंचाएगी ? क्या इस मामले पर विधिसम्मत फैसला और न्याय अब त्वरित आएगा ? और यदि हजारों करोड़ के इस गबन या घोटाले के दोषि सोनिया और राहुल पाए जाते हैं तो उन्हें सजा होगी ? वे जेल जाएंगे ? या फिर न्यायपालिका के विलंब का अन्याय और केंद्र सरकार की राजनीति का खेल आगे भी जारी रहेगा ?
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