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रांची : रिम्स की व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो गई है। सिरिंज, कॉटन, गलब्स, एक्सरे प्लेट, फिल्म तक प्रबंधन नहीं खरीद रहा है। हाईकोर्ट के लगातार निर्देश के बाद भी रिम्स की व्यवस्था में बदलाव नहीं हो रहा है। रिम्स प्रशासन में बदलाव की इच्छाशक्ति ही नहीं है। शुक्रवार को यह सख्त टिप्पणी चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण की अदालत ने मौखिक रूप से की। अदालत में रिम्स की बदहाली पर स्वत: संज्ञान लिए मामले की सुनवाई हो रही थी। अवमाना का मामले चलने के बावजूद रिम्स निदेशक के अदालत में हाजिर न होकर प्रभारी निदेशक को भेजने पर भी अदालत ने नाराजगी जतायी और सुनवाई तीन सितंबर को निर्धारित कर दी। सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि रिम्स की पूरी व्यवस्था ही ध्वस्त है। कई जांच मशीन महज एक-दो दिन ही चलती है, फिर खराब हो जा रही है। रिम्स में पैथोलॉजी जांच की कीमत काफी कम होती है, जबकि निजी लैबों में इसके लिए 4 से 5 गुनी अधिक राशि की वसूली की जाती है। जांच मशीनों के खराब रहने से राज्य की जनता को इलाज के दौरान काफी अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ रहा है। लेकिन रिम्स प्रशासन इसे लेकर थोड़ा भी गंभीर नहीं है। सुनवाई के दौरान अदालत ने रिम्स के अधिवक्ता से पूछा कि किन कारणों से रिम्स के डॉक्टरों को प्राइवेट प्रैक्टिस की छूट दी गई है। रिम्स के चिकित्सक प्राइवेट प्रैक्टिस भी करते हैं और नन प्रैक्टिस अलाउंस भी लेते हैं। रिम्स में चाहे नियुक्ति की बात हो या एक्सरे मशीन, अल्ट्रासाउंड मशीन, सीटी स्कैन मशीन आदि को दुरुस्त रखने की, इसे लेकर कोई सार्थक प्रयास नहीं किया जाता है। अधिकांश जांच मशीनें खराब ही रहती हैं। ऐसे में रिम्स की अव्यवस्था पर हाईकोर्ट आंखें बंद नहीं रख सकता। कोर्ट ने रिम्स में आउटसोर्सिंग से लोगों की नियुक्ति किए जाने पर भी नाराजगी जतायी। अदालत ने कहा कि रिम्स में नियमित नियुक्ति सुनिश्चित की जानी चाहिए। स्वीपर के पद पर भी सीधी नियुक्ति होनी चाहिए।
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