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सीता राम शर्मा चेतन
पिछले दिनों दिल्ली हाई कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद एक बार फिर समान नागरिक संहिता पर देश भर में खूब चर्चा हो रही है। केंद्र सरकार ने हाई कोर्ट में हुई इस सुनवाई के दौरान कहा कि विभिन्न पर्सनल लॉ राष्ट्र की एकता का अपमान है। समान नागरिक संहिता से देश का एकीकरण होगा। केंद्र सरकार द्वारा एक देश एक कानून की बात किसी भी स्थिति और दृष्टिकोण से गलत नहीं है। यह बात उतनी ही उचित है जितनी सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की बात। बावजूद इसके यह बेहद गंभीर और आश्चर्यजनक बात है कि कई लोगों के साथ संवैधानिक रूप से देश की एकता, अखंडता और समान रूप से सबके विकास के लिए राजनीति करने की शपथ के साथ अस्तित्व में आए कुछ राजनीतिक दल भी स्वार्थ में पथभ्रष्ट हुए समान नागरिक संहिता जैसे कानून का विरोध करते हैं! इनका यह विरोध सुरक्षित, अखंड, एकीकृत और शक्तिशाली भारत के निर्माण पथ पर आगे बढ़ते देश के विरूद्ध सीएए और कश्मीर से धारा 370 हटाने का विरोध करने जैसा ही है, जो पापी स्वार्थों और षड्यंत्रकारी दीर्घकालीन विध्वंसकारी लक्ष्यों के लिए इनकी पापी नीति और नीयत का पदार्फाश भी करता है। अकाट्य सच है कि सुरक्षित, विकसित, न्यायसंगत व दीर्घकालीन शांतिपूर्ण समृद्धशाली मानवीय तथा राष्ट्रीय व्यवस्था के लिए देश को सबसे पहले सिर्फ एक ही चीज की जरूरत है और वह है कानून का राज । जिसके लिए सबसे पहले जरूरी है देश समाज के हर आम और विशिष्ट क्षेत्र से जुड़े लोगों के वर्तमान और भविष्य के संभावित सारे अपराधों पर नियंत्रण और समुचित कठोर दंड का विधान। फिर होना चाहिए उस विधान को पूरी निष्ठा, ईमानदारी और अक्षरश: लागू करने का पूरा तंत्र, जो उस विधान को पूरी निष्पक्षता और पारदर्शिता के साथ बिना किसी भेदभाव, दबाव और लोभ के क्रियान्वित करने के प्रति ईमानदार हो और उसके लिए उसकी ईमानदारी या निष्पक्षता उसकी विवशता भी हो । यदि देश की मानवीय, सामाजिक, राष्ट्रीय और संवैधानिक व्यवस्था बनाए रखने वाला एक ऐसा संपूर्णता से संपन्न प्रभावशाली विधान और उसका पालन करने वाला तंत्र भारत विकसित कर ले तो विकसित और आत्मनिर्भर भारत के साथ विश्वगुरु बनने का हर स्वप्न या लक्ष्य देश यथाशीघ्र साकार कर सकता हैं, इसमें संदेह नहीं है। अब सवाल यह है कि ऐसा विधान अस्तित्व में कैसे आए? ऐसा तंत्र खड़ा कैसे हो? जिसका जवाब है एक देश एक कानून। हर संभावित अपराध और उसके नियंत्रण तथा दंड की समुचित व्यवस्था। पुराने विधान की समीक्षा और उसमें सुधार। अमानवीय, जघन्य और देशविरोधी अपराधों के विरुद्ध अत्यंत कठोर विधान। जिनकी शुरूआत हो सकती है समान नागरिक संहिता कानून से। बहुत स्पष्ट तौर पर यहां एक अंतिम बात लिखी और कही जा सकती है कि अब बदलते वैश्विक परिदृश्य और बहुत स्पष्ट दिखाई देते भविष्य के संभावित संकटों को ध्यान में रखते हुए देश को अब देश के हर नागरिक के लिए एक समान और कठोर कानून बनाने की जरूरत है और साथ ही जरूरत है इस राह में बाधा उत्पन्न करने वालों से पूरी सख्ती से निपटने की भी। दुनिया के कई शक्तिशाली और विकसित देश यही कर रहे हैं। भारत को भी बिना देर किए ऐसा ही करने की जरूरत है।
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