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अखिलेश अखिल
यहाँ हालिया तीन घटनाओं का जिक्र पहले किया जाए। पहली और बड़ी घटना तो यह है कि उत्तरखंड के उत्तरकाशी में टनल निर्माण में फंसे 40 मजबूरों की जिंदगी फंसी हुई है। पिछले दस दिन से ये मजदूर टनल के भीतर फंसे हुए हैं। केंद्र से लेकर उत्तराखंड की सरकार बार -बार यही कह रही है कि टनल के भीतर फंसे मजदूरों को निकालने के प्रयास चल रहे हैं। सरकार हर गतिविधियों पर खास नजर रखे हुए हैं। सरकार यह भी कहती है कि टनल ,इ फंसे सभी मजदूर अभी जिन्दा है और सुरक्षित भी। सरकार के लोग अपनी बात के समर्थन में टनल में फंसे कुछ मजदूरों से उनके परिजनों को बात भी कराने का दावा करती है और मीडिया में ये खबरे चल भी रही है।
उत्तराखंड में फंसे बिहारी मजदूर
खबर ये भी आती है कि टनल में फंसे मजदूरों को बहार सुरक्षित निकालने के लिए दुनिया भर के देशों का भी सहारा लिया जा रहा है और वहां के एक्सपर्ट से बातचीत की जा रही है। लेकिन अंतिम सच यही है कि पिछले दस दिनों से सभी 40 मजदूर मिट्टी के नीचे फंसे हुए हैं और किसी भी तरह जिन्दा होने का एहसास दिला रहे हैं। सच क्या है यह किसी को पता नहीं। मजदूरों के परिजनों की क्या हालत हो सकती है इसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है। याद रहे इन 40 मजदूरों में अधिकतर मजदूर बिहार और झारखंड के हैं जो रोजी रोटी के जुगाड़ में मौत से खेलने उत्तराखंड चले गए थे।
सूरत में बिहारी की मौत
दूसरी बड़ी घटना गुजरात सूरत की है। सप्ताह भर पहले की कहानी है। जानकारी के मुताबिक सूरत के कपडा रंगाई फैक्ट्री में पांच मजदूर रंग की टंकी में सफाई करने उतरे। पांचों वही ख़त्म हो गए। पता चला कि रंग की टंकी जहरीली थी। जहरीली गैस से सभी पांचों मजदूरों की घटना स्थल पर ही मौत हो गई। ये पांचों मजदूर भी बिहार के ही थे।
दिल्ली में रह रहे बिहारियों की कथा
तीसरी बड़ी घटना दिल्ली की है। दिवाली और छठ तो गुजर गए लेकिन उन हजारों लोगों की पीड़ा को कौन जानता है जो रोजी रोटी कमाने दिल्ली पहुँचते हैं लेकिन लाख कोशिश के बाद भी अपने मुल्क बिहार को नहीं लौट पाते। दिवाली और छठ में हर बिहारी अपने मुल्क बिहार में जरूर जाना चाहता है। इसके लिए वह साल भर से प्लानिंग करते रहते हैं। गांव में उनके परिजनों की भी आस लगी रहती है।
दिल्ली ,यूपी और केंद्र की सरकार के साथ ही बिहार की सरकार भी दावा करती है कि दिल्ली से बिहार जाने के लिए यातायात की खूब सुविधाएं बढ़ाई गई है। लेकिन सच क्या है यह सरकार और उनके लोगों को शायद ही पता हो। नई दिल्ली ,आनंद बिहार और पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर इन बिहारी मजदूरों की क्या दशा होती है यह शायद ही कोई जानता हो। तीन -तीन दिनों तक ये बिहार के लोग रेलवे स्टेशन पर अपने परिवार ,महिलाएं और बच्चों के साथ पड़े रहे। लुटते रहे लेकिन अंत में घर नहीं पहुँच पाए। उनकी हर कोशिश बेकार ही गई। सरकार के सारे नारे झूठे निकले। छठ से एक दिन पहले कई परिवार रेलवे स्टेशन से निकलकर आनंद बिहार बस स्टैंड पहुंचे। पूरी हिम्मत लगाईं कि बस से ही बिहार का सफर तय करेंगे। पैसे के जुगाड़ भी किये लेकिन वहां तो पहले से ही लूट मची थी। भेंड़ बकड़ीयों की तरह बस के भीतर घुसने का किराया ही ढाई से तीन हजार। जिसके पास परिवार थे उनकी क्या दशा हुई होगी ,किसे से कहने की जरूरत नहीं।
सफर की दुर्गति
बस के भीतर उनके साथ क्या सलूक किया जाते हैं इसकी जानाकरी भी सरकार के लोगों को होती होगी लेकिन आज तक किसी भी बस की चेकिंग नहीं होती। यह भी याद रहे दिल्ली से बिहार तक जाने वाली अधिकतर बसें बड़े कारोबारियों की है जिसमे नेता भी शामिल हैं। इनकी बसें वगैर कागजात के ही पुलिस की देखरेख में चलती है। पुलिस उगाही करती है और बस के मालिक नोट छापने का धंधा। यह सब सरकार की मिली भगत से सालों भर चलता रहता है। पिछले दिन छठ के लिए घर जाने को तैयार बड़ी संख्या में लोह रलवक़े स्टेशन और बस स्टैंड से लौट गए। घर नहीं जा पाए।
नीतीश से सवाल
अब कुछ बिहार की सरकार से सवाल ? क्या बिहार की नीतीश सरकार यह बता सकती है कि बिहार के लोगों की बिहार से बाहर जो हालत है उसके बारे में जिम्मेदार कौन है ? नीतीश कुमार बड़े ही फक्र से कहते हैं कि देश के भीतर कही का भी मजदूर कही भी जाकर काम कर सकता है। यह सभी भी है। लेकिन क्या दूसरे ैहयों के लोग बिहार में काम करने आते हैं ? और अगर नहीं आते हैं तो क्यों ?
नीतीश कुमार यह भी कहते हैं कि उन्होंने बिहार में बहुत सा काम किया है। ऐसा हो भी सकता है और है भी। लेकिन पलायन को रोकने के लिए उन्होंने क्या कुछ किया है ? पिछले चुनाव में भी उनकी पार्टी ,बीजेपी और राजद ने भी पाले को ख़त्म करने का वादा किया था। क्या इस विषय में उनकी सरकार ने कुछ किया है ? और किया है तो क्या किया है और नहीं किया है तो क्यों नहीं किया ? इसका जवाब तो उन्हें देना चाहिए।
बिहार का सच
हालिया जातीय और आर्थिक सर्वे से यह भी पता चला कि बिहार आज भी इस देश का सबसे पिछड़ा राज्य है। गरीब भी। दूसरे प्रदेशों की तुलना में काम पढ़े लिखे लोग भी बिहार में ही है। ऐसा क्यों ? करीब 20 साल से नीतीश कुमार सत्ता में हैं। कभी लालू यादव के साथ तो कभी बीजेपी के साथ। फिर बिहार की हालत क्यों नहीं बदली ? उद्योग क्यों नहीं लगे ? बिहार बाढ़ ग्रस्त है। सरकार यही सब कहकर लोगो को भ्रम में डाल देती है।और अपनी नाकामियों को छुपाती रही है। लेकिन बिहार में आईटी हब तो तैयार किया जा सकता है। बिहार के जितने औद्योगिक परिसर पहले से निर्धारित हैं उसे जागृत किया जा सकता है। शिक्षा को ही बिहार का उद्योग बनाया जा सकता है। बिहार में जितने बड़े -बड़े यूनिवर्सिटी और कॉलेज है उसकी महत्ता जो बधाई जा सकती है ताकि बिहार के लोग बहार पलायन नहीं कर सके। लेकिन नीतीश जिन ने ऐसा नहीं किया।
नीतीश कुमार से अपील
यही सब बीजेपी वाले भी करते रहे हैं। यह सब राजद वाले भी करते रहे हैं। हालिया सच यही है कि धर्म और जाति की राजनीति बिहार की पहचान बनी हुई है। पांच किलों अनाज पाने के लिए यही बिहार नारे भी लगा रहा है और सबसे ज्यादा बिहार से पलायन करने वाले बिहारी को लोग किस रूप में देखते हैं इसका दर्द उसी बिहारी के सीने में है जो खुद पर गर्व तो करता है लेकिन अपनी सरकार और व्यवस्था पर आंख्ने चुराता रहता है। उम्मीद की जनि चाहिए कि नीतीश कुमार इस बारे में कुछ सोंचेंगे। इस उम्र में भी बिहार के लिए कोई सार्थक फैसला अगर नीतीश कुमार ले सकते हैं तो बिहार और देश सदा उनका ऋणी रहेगा। पलायन को रोकिये नीतीश जी। बिहार को ही अपने संसाधन के रूप में तैयार करने की जरूरत है।
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