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जालंधर : कुआलालम्पुर में 1975 में भारत की विश्व कप जीत के सितारे, महान फुल बैक खिलाड़ी सुरजीत सिंह की आज 39वीं पुण्यतिथि है। पंजाब के खेल मंत्री ओलंपियन परगट सिंह ने सुरजीत सिंह को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि ओलंपियन सुरजीत सिंह 1984 में हमें छोड़कर चले गए लेकिन उनकी याद आज भी हमारे साथ है। वह मेरे आदर्श थे और मैंने उन्हें देखकर ही खेलना सीखा। मैं महान खिलाड़ी को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। हॉकी की दुनिया के हीरे और भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान ओलंपियन सुरजीत सिंह रंधावा ने आज से 38 साल पहले जालंधर के पास बिधिपुर में एक घातक कार दुर्घटना में अपनी जान गंवा दी थी। उनके साथ उनके सबसे अच्छे दोस्त और अंतर्राष्ट्रीय बास्केटबॉल खिलाड़ी प्रेशोतम पांथे भी थे, उन्होंने भी इस दुर्घटना में अपनी जान गंवा दी थी जबकि पूर्व एथलेटिक्स कोच राम प्रताप दुर्घटना में बच गए थे। आज देश उनका 38वीं पुण्यतिथि मना रहा है। 10 अक्टूबर, 1951 को जन्मे सुरजीत ने गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के तहत स्टेट कॉलेज आॅफ स्पोर्ट्स, जालंधर और बाद में संयुक्त विश्वविद्यालयों की टीम के लिए फुल बैक के रूप में खेला। सुरजीत ने 1973 में एम्स्टर्डम में दूसरे विश्व कप हॉकी टूर्नामेंट में अपना अंतरराष्ट्रीय पदार्पण किया। वह करिश्माई कप्तान अजीतपाल सिंह के नेतृत्व में 1975 में कुआलालम्पुर में तीसरा विश्व कप हॉकी टूर्नामेंट जीतने वाली भारतीय टीम के सदस्य थे। सुरजीत ने 5वें विश्व कप हॉकी टूर्नामेंट, 1974 और 1978 के एशियाई खेलों, 1976 के मॉन्ट्रियल ओलंपिक खेलों में भी भाग लिया था। सुरजीत को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ फुल बैक में से एक के रूप में जाना जाता है। उन्हें 1973 में वर्ल्ड हॉकी इलेवन टीम में शामिल किया गया और वह अगले साल आॅल-स्टार हॉकी इलेवन के सदस्य बने । वह 1978 के एशियाई खेलों में पर्थ, आॅस्ट्रेलिया और एसंडा इंटरनेशनल हॉकी टूर्नामेंट में भी शीर्ष स्कोरर थे। अपने हॉकी करियर के दौरान, सुरजीत खिलाड़ियों के हितों को लेकर बहुत चिंतित थे। सुरजीत ने कुछ वर्षों तक दिल्ली में इंडियन एयरलाइंस की सेवा की। बाद में वह पंजाब पुलिस में शामिल हो गए । उनकी शादी एक अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र की हॉकी खिलाड़ी चंचल रंधावा से हुई, जिन्होंने 1970 के दशक में भारतीय महिला राष्ट्रीय हॉकी टीम का नेतृत्व किया। उनके बेटे सरबिंदर सिंह रंधावा एक लॉन टेनिस खिलाड़ी हैं। सुरजीत को मरणोपरांत 1998 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
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