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अग्नि परीक्षा के साथ संपन्न हो गया अखंड सुहाग का पर्व मधुश्रावणी

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देवघर : युग बदला,समय बदला,संस्कृति बदली लेकिन सब कुछ बदलने के बावजूद आज भी मिथलांचल सहित देवघर की ना तो संस्कृति बदली है और ना ही रीति।मयार्दा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के ससुराल और जगजननी माता सीता की प्राकाट्य भूमि मिथिलांचल सहित सति भूमि देवघर में आज भी महिलाओं को अपने पतिव्रता धर्म की निष्ठा के लिए अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है।शादी के बाद आने सावन महीने में मधुश्रावणी के समापन दिवस को नवविवाहिता अपने शरीर को दीपक की जलती बत्ती से जलाकर निष्ठा और प्रेम की अग्नि परीक्षा से सहर्ष गुजरी।इसी के साथ अखंड सौभाग्य एवं पति के दीघार्यु होने की कामना को लेकर मनाया जाने वाला मिथिलांचल सहित देवघर का विशिष्ट लोकपर्व मधुश्रावणी नवविवाहिताओं के अग्नि परीक्षा के साथ समाप्त हो गया।अंतिम दिन विशेष पूजा और टेमी दागने की परंपरा के साथ ही पिछले दो सप्ताह से शहर से गांव तक की गलियों में गूंजने वाले लोकगीतों के मधुर स्वर पर विराम लग गया।अंतिम पूजा के दौरान कोहबर में गौरा और पार्वती के साथ नाग-नागिन एवं भगवती विषहरा की विशेष रूप से पूजा-अर्चना कर नव विवाहिता के साथ-साथ घर-समाज और आस-पड़ोस की महिलाओं ने पति के दीघार्यु होने की कामना की ।इसके बाद टेमी दागने की रस्म हुआ, जिसमें नवविवाहिताओं के कई अंगों पर पान के छिद्र युक्त पत्तों को रखकर उस पर जलते दीए की बाती (दीप में रखा जलती बत्ती) रखी गई । जिससे उनके अंगों पर फफोले निकल आए तथा उस फफोले को नवविवाहिता के अचल सुहाग का प्रतीक माना गया । व्रत के आखिरी दिन पति अपने पत्नी से मिलने उसके मायके आए तथा शाम को पूजा संपन्न होने के बाद महिलाओं को भोजन कराया गया, उसके बाद व्रती ने भोजन कर पूजा का विसर्जन किया।नवविवाहिता अमृत मिश्रा की धर्म पत्नी शैल झा ने बताया कि मधुश्रावणी पूजन का अनुष्ठान नव विवाहिताओं के लिए तपस्या है।इस लोकपर्व का समापन 31 जुलाई यानी आज को अंतिम पूजा कर टेमी दागने के साथ हो गया।इसमें प्रत्येक दिन वासी फूल और पत्ता से भगवान भोले शंकर,माता पार्वती के अलावे मैना विषहरी,नाग नागिन, गौड़ी की विशेष पूजा हुई है। इसके लिए तरह-तरह के पत्ते भी तोड़े हैं।14 दिनों तक चलने वाला यह पर्व एक तरह से नव दंपतियों का मधुमास है। सावन माह में देवघर के घर-घर में मनाया जाने वाला यह पर्व भारतीय समाज की सांस्कृतिक, धार्मिक, परंपरागत सम्मान के प्रतीक रूप में आज भी देवघर क्षेत्र में जीवंत है। शादी के बाद पड़ने वाले पहले सावन में नव विवाहित सुहागन अपने मायके में जाकर विधि-विधान से यह पूजा करती है, जिसका अलग ही महत्व है।
मिथिलांचल सहित देवघर के लोक आस्था का पर्व मधुश्रावणी शुरू होते ही शहर से लेकर गांवों तक लोकगीतों से गलियां गुलजार हो जाती है। 18 जुलाई से शुरू इस पर्व में प्रतिदिन नवविवाहिताओं ने सुबह में गौरी एवं विषहारा की पूजा की तथा फिर सखी-सहेलियों संग श्रृंगार कर अगले दिन की पूजा के लिए फूल लोढ़ने के लिए बहनों, सखी-सहेलियों के साथ जब नवविवाहिताओं का झूंड गलियों में निकलता था तो आनंद और विनोद की अनुपम छटा देखने को मिलती है।
गौरी के गीत, शिव की नचारी, बजरंग बली के गीत, फूललोढ़ी के गीत, सोहर, बटगमनी गाते नवविवाहिताओं का समूह जिधर से गुजरता, लोगों की आंखें और कान उसी दिशा में ठिठक जाते हैं। अनेक सांस्कृतिक विशिष्टताओं को अपने आंचल में संजोए देवघर का घर, आंगन, बाग, बगीचा, खेत, खलिहान और मंदिर परिसर इन दिनों पायल की झंकार तथा मैथिली गीतों से मनमोहक हो उठता है, एक गजब का समां बंधता है।

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