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गोबर के दीयों से होगी इस बार की दिपावली जगमग

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दिवाली पर जहां मिट्टी के दीयों की जबरदस्त मांग होती है, वहीं इस बार अलवर में हजारों घर गोबर के दीयों से जगमग होंगे, जो पर्यावरण के लिए भी लाभकारी होगा।

गोबर से बने दीयों को बनाने के लिए सबसे ज्यादा प्रोत्साहन दिया है अलवर जिला कलक्टर डॉ जितेंद्र कुमार सोनी ने। डा सोनी ने बाकायदा एक आदेश जारी कर मिट्टी एवं गोबर के दीए बनाने वाले तथा बेचने वाले कुंभकारों और छोटे दुकानदारों को प्रोत्साहित करने का निर्देश दिया है।

राजस्थान ग्रामीण आजीविका विकास परिषद राजीविका के तहत महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं इस बार पहली दफा अलवर में गोबर के दीए बना रही हैं। 15 अक्टूबर तक करीब एक लाख दीए बनाने का लक्ष्य तय किया गया है। इन महिलाओं द्वारा विगत 15 दिन से गोबर के दीयों को बनाया जा रहा है। इन महिलाओं का पहला प्रयास है। अगर यह सफल होता है तो अगली दिवाली पर यह महिलाएं निश्चित रूप से मिट्टी के दीयों के साथ-साथ गोबर के दीयों का भी एक बड़ा बाजार खड़ा कर देंगी।

इस संबंध में जिला कलक्टर द्वारा पूरा प्रोत्साहित किया जा रहा है। अभी हाल ही में अलवर में लगे मेले में निरीक्षण के दौरान राजस्थान की मुख्य सचिव उषा शर्मा ने भी गोबर के दीयों को देखकर उन्हें प्रोत्साहित किया और आश्चर्य भी जताया की अलवर की महिलाएं अपने जीविकोपार्जन के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं।

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राजीविका के जिला प्रोजेक्ट मैनेजर राहुल ने बताया कि इस बार महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं के द्वारा गोबर के दीए बाजार में उतारे हैं। मेले में भी काफी पसंद किए गए। उन्होंने बताया कि गोबर के साथ चिकनी मिट्टी एवं कुछ मिक्सर जैसे इमली के बीज का चूर्ण एवं अन्य सामान मिलाकर इस पेस्ट को गूंथा जाता है। फिर मशीन में लगी डाई से दीए तैयार होते हैं। मौसम अगर सही है तो दीए 2 दिन में तैयार हो जाते हैं। इसके लिए मशीन अजमेर से मंगवाई गई जिसकी लागत करीब 18000 रूपए आई है।

उन्होंने बताया कि जिला कलक्टर के सक्षम अलवर अभियान के तहत यह नवाचार पहली बार हो रहा है। गोबर के दीयों को मार्केट देने के लिए राज्य में लगने वाले मेलों में इस उत्पाद को रखा जाएगा। मिट्टी के दीए बनाने में गरीब तबके की महिलाएं जुड़ी हुई हैं। हालांकि अभी दिवाली दूर है क्योंकि खरीदारी दिवाली से 10 दिन पहले शुरू होती है। इसलिए अभी दीए बनाए जा रहे हैं और बाजार में 15 अक्टूबर से खुली बिक्री के लिए उपलब्ध होंगे। अभी एक लाख दीए बनाने का लक्ष्य रखा गया है।

उन्होंने बताया कि यह महिलाओं द्वारा गोबर के दीए के अलावा मंदिरों में चढ़ने वाले फूल जो बाद में फेंके जाते हैं उनको एकत्रित कर अगरबत्ती भी बनाई जा रही है। बाजार में लाने से पहले दीयों का पूरा ट्रायल किया गया कि कहीं यह दिए बाजार में जाते ही ना पसंद ना हो जाए। इसलिए स्वयं जिला प्रोजेक्ट मैनेजर राहुल ने कई बार दीए जलाकर इनका प्रैक्टिकल किया और यह दीए बिल्कुल उसी तरह मजबूत और खरे उतरे हैं जिस तरह मिट्टी के दीए काम में आते हैं। गोबर होने के कारण शुरू में इसको रिस्क माना गया लेकिन जब यह अपने परीक्षण में सफल हुए तो महिलाओं का उत्साह और बढ़ गया।

अतिरिक्त जिला कलक्टर (शहर) आ ेपी सहारण ने बताया कि जिला कलक्टर ने एक आदेश जारी किए हैं कि दीपावली पर्व को देखते हुए कुंभकारों, राजीविका समूहों एवं जिले के ग्रामीणों आदि द्वारा मिटटी एवं गोमय के दीपक बनाए जाते हैं तथा इनके द्वारा स्थानीय जरूरतों को ध्यान में रखते हुए मिट॒टी एवं गोमय के दीपकों को दीपावली के त्यौहार पर विक्रय हेतु लाया जाता है।

उन्होंने बताया कि मिटटी एवं गोमय के बने दीपकों का विक्रय किए जाने के लिए बाजारों में आने वाले कुंभकारों एवं राजीविका समूहों एवं जिले के ग्रामीणों आदि को किसी प्रकार की असुविधा न हो। इसका पूर्ण रूप से ध्यान रखा जाए। नगरपरिषद ,नगरपालिका , ग्राम पंचायत क्षेत्रों में इन्हें किसी भी प्रकार की कर वसूली नहीं की जाए। साथ ही मिट॒टी व गोमय के बने दीपकों के उपयोग को पर्यावरणीय दृष्टि से भी प्रोत्साहित करते हुए आदेश की पालना सुनिश्चित की जाए

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