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ग्रहों की बहस और राजा विक्रमादित्य:
सप्ताह का हर दिन हिंदू धर्म में किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है। इस तरह, शनिवार का दिन कर्मफल दाता शनिदेव को समर्पित होता है। शनिवार के दिन की विशेषता और महत्व को जानने के लिए हम पढ़ते हैं शनिवार व्रत कथा की।
राजा विक्रमादित्य और नौ ग्रह:
एक बार, सभी नौ ग्रहों में यह विवाद था कि कौन सबसे बड़ा और ताकतवर ग्रह है। इस विवाद को निस्तेजी ने निपटाने के लिए राजा विक्रमादित्य के पास ले जाने का निर्णय किया।
राजा विक्रमादित्य का निर्णय:
राजा विक्रमादित्य ने नौ सिंहासन बनवाए और ग्रहों से कहा कि जो ग्रह सबसे छोटे सिंहासन पर बैठेगा, वह सबसे छोटा माना जाएगा। इसी तरह शनि देव को सबसे छोटे सिंहासन पर बैठना पड़ा, जिससे उनका क्रोध उत्तेजित हुआ।
शनि देव की क्रोध:
शनि देव के दरबार से क्रोधित होकर, राजा को साढ़े साती के कष्ट आरंभ हो गए। उनका जीवन असहानुभूति और संकटों से भर गया।
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राजा की साढ़े साती से मुक्ति:
राजा विक्रमादित्य की भक्ति और व्रत से शनि देव ने उनका क्रोध शांत किया और उनके सभी कष्टों को हर लिया। शनिदेव ने उन्हें मुक्ति का उपाय बताया और उन्हें भौतिक सुखों का आनंद दिलाया।
शनिवार पूजा विधि:
- सुबह सूर्योदय से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- शनि देव का ध्यान करें और मन में पूजा और व्रत का संकल्प लें।
- पीपल के पेड़ को जल अर्पित कर धूप-दीप दिखाएं और शनि मंत्रों का जाप करें।
- शनिदेव को काला तिल, काला वस्त्र, और सरसों का तेल चढ़ाएं।
- शनिवार की व्रत कथा कहें और शाम को शनिदेव की आरती करें।
शनिवार आरती:
- जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
- सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी।
- श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी।
- नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी।
- क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी।
- मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी।
- देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी।
- विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी।
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