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परिष्कृत और सुखी वातावरण: आज की आवश्यकता

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डॉ. सुधा कुमारी

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बहुत प्राचीन समय से हमारा समाज स्वच्छता और परिष्कृत वातावरण का समर्थक और पोषक रहा है । तन की स्वच्छता और स्वास्थ्य को तन के परिष्कार एवं व्यायाम द्वारा, मन की स्वच्छता और स्वास्थ्य को योग-अभ्यास एव अनुशासन द्वारा, वातावरण की स्वच्छता को हरियाली और नदी- नालों-नलियों की सफाई द्वारा- इस प्रकार, एक परिष्कृत समाज के निर्माण का संकल्प किया गया । हड़प्पा संस्कृति भारतीय स्वच्छ नगर- सभ्यता की एक सुन्दर मिसाल थी। प्रकृति और मनुष्य के बीच संतुलन के लिये भी आवश्यक है कि सफाई तन-मन और जीवन के साथ- साथ वातावरण की भी हो । हरियाली जीवन में, वातावरण में और हर जगह हो । इसका एक कारण यह है कि व्यायाम, योग -ध्यान, पूजा, सब कुछ एक साफ वातावरण में संभव है । किन्तु औद्योगिक क्रिया-कलाप, बढ़ती जनसंख्या और उसकी बढ़ती आवश्यकताओं के कारण क्रिया-कलापों के बढ़ने से वातावरण की स्वच्छता घटी है और जल-प्रदूषण, वायु-प्रदूषण और जमीन पर गन्दगी बढ़ी है। बढ़ती जनसंख्या का एक परिणाम है-अशिक्षा और निर्धनता जिसने झुग्गी-झोंपड़ी और चौराहे-गलियों में गन्दगी का अम्बार लगा दिया है। हवा और जल के प्रदूषण के कारण ग्रीन हाउस गैस- उत्सर्जन बढ़ा है और कार्बन फुटप्रिंट समग्र वातावरण के 60% तक हो गया है । संपूर्ण मनुष्य जाति का कार्बन फुटप्रिंट 1961 से 11 गुना बढ़ गया है । इससे ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज का खतरा बढ़ा है । इससे भविष्य में मानव प्रजाति के अस्तित्व को संकट हो सकता है । यह एक बड़ी चुनौती है । 1995 से ही इस चुनौती का सामना करने के लिए संयुक्त राष्टÑ-संघ ने क्लाइमेट चेंज कॉन्फरेंस द्वारा प्रदूषण एवं कार्बन फुटप्रिंट कम करने का प्रयास किया है । प्रतिवर्ष यह कॉन्फरेंस आयोजित होता है । 1997 में क्योटो, जापान में कार्बन उत्सर्जन (एमिसन) करने के नियम तय किये गए । क्योटो प्रोटोकोल के मुताबिक जो देश निर्धारित सीमा से कम कार्बन-उत्सर्जन करेंगे उन्हें कार्बन क्रेडिट मिलेगा। इसके बाद से संयुक्त सहमति एवं प्रयास से सफाई, स्वच्छता, कचरे का निस्तारण योजनाएं और ग्रीन टेक्नोलॉजी को अपनाना सभी व्यक्तियों की जिम्मेदारी बनाई गई है जिसमें सरकार को सक्रिय भूमिका निभानी है। क्योटो प्रोटोकोल को सभी देशों ने स्वीकार किया है और उन्होंने 1990 के कार्बन स्तर को करीब 7% कम करने का लक्ष्य तय किया। कार्बन क्रेडिट के साथ ही कार्बन-ट्रेडिंग की भी व्यवस्था बनाई गई है। एमिशन ट्रेडिंग या कैप एन्ड ट्रेड- सरकार द्वारा निर्धारित बाजार की व्यवस्था है। प्रदूषण कम करने के बाद आर्थिक प्रोत्साहन की धारणा है। अंतरराष्टÑीय ट्रेडिंग सिस्टम में जिन देशों ने कार्बन क्रेडिट पाया है वे अन्य देशों से इसका विनिमय कर सकते हैं। कार्बन आॅफसेट रिन्यूएबल एनर्जी क्रेडिट, वाटर रेस्टोरेशन सर्टिफिकेट- कुछ ऐसे ही प्रचलित नाम हैं ।
कार्बन क्रेडिट जहां एक सकारात्मक प्रभाव रखता है वहीं कार्बन टैक्स एक नकारात्मक उपाय है। यूरोप में कई देशों ने यह टैक्स लगा रखा है जिसके द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक कार्बन गैस उत्सर्जन करनेवालों पर यह टैक्स लगाया जाता है। इस प्रणाली को अर्थशास्त्री कार्बन प्राइसिंग के नाम से भी जानते हैं और समर्थन करते हैं ।
भारत की वर्तमान स्थिति में प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक है। जहरीली गैसों का उत्सर्जन, तेज शोर-शराबा, दीवारों और सार्वजनिक वाहनों में लिखावट और गंदगी, पानी तथा जमीन पर कचरा और सड़कों पर गन्दगी और टहलते हुए जानवर, जो काट भी सकते हैं । कचरे का डिब्बा होते हुए भी बाहर कचरा फेंकना, इधर- उधर थूकना और पान-तंबाकू के दाग छोड़ना आम दिनचर्या का अंग है। दफ्तरों में फालतू कागज,टूटे-फूटे फर्नीचरों का ढेर और गंदी दीवारें एक सामान्य दृश्य है। भारत में कचरे के अंबार और लोगों में गंदगी के प्रति उदासीन दृष्टिकोण को देखते हुए कचरा फैलानेवाले व्यक्तियों, दुकानों और अन्य सावर्जानिक स्थानों पर जुरमाना या कार्बन टैक्स या अन्य कोई आर्थिक व्यवस्था की नितान्त आवश्यकता है। सिर्फ नारेबाजी, पोस्टरों और बड़े-बड़े लोगों का झाड़ू सहित फोटो खिचवाने से यह समस्या नहीं सुलझेगी। जब गंदगी फैलाने पर ही जुर्माना लग जाएगा तो लोगों को अपना काम छोड़कर सड़क पर झाड़ू उठाने की नौबत ही नहीं आएगी। आखिर झाड़ू लगाने के लिये इतने सफाई-कर्मियों की भर्ती क्यों हुई है ? वे अपने कार्य में मुस्तैद क्यों नहीं है ? यदि उनकी संख्या कम है और लोगों की भर्ती क्यों नहीं की गई ? अत: कचरा फैलाने वाले पर जुर्माना लगाना और सफाई-कर्मियों से कार्य अच्छी तरह करवाना आवश्यक है। उन्हें दस्ताने, टोपी, मास्क और एप्रन भी मिलना चाहिये ताकि उन्हें गंदगी, धूप और धूल से सुरक्षा मिले। गंदगी साफ करते हुए कहीं वे स्वयं बीमारी ग्रस्त न हो जायं। वृक्षारोपण बढ़ाने के साथ-साथ भारत में कचरे पर सख्त जुर्माना, कार्बन-टैक्स लगाना, कचरा- निस्तारण तथा उनका परिष्कार करके रि-साइकल करना, कम लागत से कंपोस्ट और सूखे शौचालय बनाना, दीवारों और वाहनों पर से गंदगी हटाना, बेकार जानवरों को रास्ते से हटाना बहुत आवश्यक है। अच्छी बात है कि कुछ महानगरों में कचरे का परिष्कार और निस्तार तेज गति से हो रहा है। कलकत्ता, मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरू में यह कार्य बढ़ा है। किन्तु पूरे देश में अभी काफी प्रयास करने कि एवं सख्ती की आवश्यकता है । कुछ स्वच्छ शहरों और देशों का तुलनात्मक अध्ययन करने के बाद ये मुख्य बातें सामने आईं: ओसलो (नॉर्वे ) शहर के अधिकांश भाग स्वचालित कचरा निराकरण से जुड़े हैं जो अंडरग्राउंड इनसिनरेटर में कचरे को जला देता है। वहां स्वच्छता दिवसों का भी आयोजन होता है। सिंगापुर ने कड़े नियमों से स्वच्छता को बनाए रखा है। अल्बर्टा (कनाडा) और कोपेनहेगन (डेनमार्क) में कचरे से कम्पोस्ट बनाना, रि-साइकल करना, गंदगी पर कड़ा जुर्माना आदि उपाय किये गए है। एडिलेड (आॅस्ट्रेलिया) में विशाल क्षेत्रों में हरियाली और पार्क की व्यवस्था है । जापान में लोग स्वच्छता का बहुत ध्यान रखते हैं । वेंडिंग मशीन का इस्तेमाल कर वहां खाना- पीना करने के बाद डस्टबिन में कचरा फेकते हैं। जापान न केवल बुलेट ट्रेन के लिये विख्यात है बल्कि अति स्वच्छ वातावरण के लिये भी । सं. रा. अमेरिका में कचरे पर 100 डॉलर से लेकर 1000 डॉलर तक का जुर्माना है । इसके राज्यों में बोतल बिल नामक कानून के अंतर्गत उपभोक्ताओं को बोतल-डब्बे वापस करने पर रिफंड मिलता है । इन खाली डब्बों का निस्तारण विक्रेता की जिम्मेदारी है । भारत में इन उपायों को अपनाना वांछनीय है । दूसरी ओर, स्वच्छता के प्रयास में टीवी- सिनेमा में हिंसा और अश्लीलता के प्रदर्शन को कम करना आवश्यक है। इनकी भाषा का स्तर तथा कार्यक्रमों का स्तर साफ – सुथरा कर लेने के बाद ही इन्टरनेट पर सफाई का प्रयास सफल होगा। म्यूजियमों, मंदिरों के अंदर अश्लील मूर्तियां न रखी जायं या शारीरिक सौंदर्य के नाम पर घटिया दृश्य न दिखाई पड़े । खजुराहो और कोणार्क के ऊपर स्वच्छता अभियान अति आवश्यक है जहां विदेशी पर्यटक भी मजे लेकर घूमते हैं और भारत की पाषाण- सुन्दरियों को पाश्चात्य देशों- सा ही उदार अंग- प्रदर्शन करते देखते हैं । इस विषय पर एक कलाकार की आत्मा आहत हो सकती है क्योंकि कलाकार मां की भांति एक स्रष्टा होता है और उसे एक मां की भांति अपनी सारी रचना सुन्दर और निर्दोष दिखाई देती है। पर एक संस्कारी और शालीन मां भी अपने बच्चों को दिगंबर रूप में बाहर लोगों के सामने नहीं भेजती क्योंकि अपराधियों को ऐसे ही अवसर की तलाश रहती है। फिर यह कलाकार किस प्रकार की मां है जो सुन्दरता के नाम पर लोगों के सामने खजुराहो और कोणार्क जैसी सृष्टि को परोसता है ? सुन्दरता का ऐसा स्वरूप सिर्फ सौंदर्य बोध को ही नहीं, अपराध को भी प्रेरित करता है । और यदि इसे रोका नहीं जाता है तो फिर आम आदमी को अपराध या गंदगी से कैसे रोका जाएगा ? आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि स्वच्छता अभियान में हम इसका ध्यान भी रखेंगे।

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