रांची: झारखंड के लिए नासूर बने नक्सलियों के सफाए में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे तिवारी बंधु
एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर बनाई पहचान
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रांची। एक समय था कि झारखंड के 24 जिलों में से 16-18 जिलों में माओवादियों की सक्रियता थी, लेकिन अब आंकड़ों में काफी बदलाव हुआ है। झारखंड के गुमला जिले में कभी एक पत्रकार के रूप में माओवादियों के बड़े नेताओं के इंटरव्यू के लिए जंगलों में सप्ताह-सप्ताह दिन तक बिताने वाले एक युवक वर्षो बाद फिर से जंगल में अपनी उपस्थिति से चर्चा में बना हुआ है। हालांकि अब उसके जंगल में जाने का मकसद बदला चुका है, अब वो इंटरव्यू नहीं बल्कि एक अलग कारण से उसकी तलाश में जुटा है, जिसका वो कभी साक्षात्कार लिया करता था। कभी आईएएस- आईपीएस बनने के सपने लेकर दिल्ली में रहकर तैयारी करने वाले ये युवक अब भी जंगल में जाते हैं, लेकिन अब इनका मकसद पकड़ना या फिर मार गिराना होता है।
ये कहानी है गुमला जिले के रहने वाले तीन तिवारी बन्धुओं की, ये तीनों कैसे गुमला,खूंटी और रांची जिले में अपनी पहचान बनाई है।गुमला जिले के रहने वाले प्रवीण तिवारी,नवीन तिवारी और नीरज तिवारी झारखंड पुलिस के जवान हैं। इन तीनों भाइयों की चर्चाएं हमेशा पुलिस और नक्सलियों में होते रहता है।जहां प्रवीण तिवारी रांची जिला बल में अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं, तो वहीं दो भाई नवीन और नीरज गुमला जिला पुलिस में अपने कार्यों से अलग पहचान बनाया है।
प्रवीण तिवारी जिन्होंने कम से कम 200 उग्रवादियों/ नक्सलियों की गिरफ़्तारी में सक्रिय भूमिका निभाई है। 2009 में पुलिस में शामिल होने के बाद से प्रवीण तिवारी कम से कम एक दर्जन सब-जोनल और जोनल कमांडरों को गिरफ़्तार करने के लिए माओवादियों के गढ़ों में निर्भिक छापेमारी का हिस्सा रह चुके हैं। उनमें से अभी सबसे हाल ही में जोनल कमांडर प्रसाद उर्फ अशोक लकड़ा है, जिसके ऊपर 10 लाख का इनाम है। वहीं कई नामी नक्सली/उग्रवादियों को मुठभेड़ में मार गिराया है। अभी रांची एसएसपी के स्पेशल टीम (क्यूआरटी) के प्रमुख हैं।प्रवीण तिवारी के बारे में बताया जाता है कि एसएसपी के निर्देश मिलते ही अपनी टीम को लेकर मिनटों में रवाना हो जाते हैं।चाहे परिस्थिति जो भी हो हमेशा चट्टान की तरह खड़े रहते हैं ।
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नौकरी हालांकि बगैर जोखिम के नहीं मिलती, तिवारी पिछले एक दशक में नक्सलियों/उग्रवादियों द्वारा करीब 8 हमलों में बाल-बाल बच गए हैं। हालांकि उनके एक रिश्तेदार उतने भाग्यशाली नहीं रहे। साल 2015 में 10 जुलाई को माओवादियों ने उनके चाचा शैलेश तिवारी की हत्या कर दी और उनके परिवार के अन्य सदस्यों को खत्म करने की धमकी दी,मगर उन्होंने उनका पीछा करना बंद नहीं किया।
प्रवीण तिवारी कहते हैं, जब तक वह जीवित हैं, राज्य पुलिस की सेवा करने का वादा करते हुए इन धमकियों से डरता नहीं हूं। मैं अपने परिवार और अपने जीवन के जोखिमों से अवगत हूं, लेकिन इस मिशन में पीछे मुड़कर नहीं देखा है। मैंने पहले ही अपना जीवन राष्ट्र की सेवा में समर्पित कर दिया है। प्रवीण तिवारी कहते हैं कि मैं उन सभी पुलिस अधीक्षकों का आभारी हूं जिन्होंने मुझ पर विश्वास किया और मुझे यह भूमिका और जिम्मेदारी दी। मैं हमेशा उन्हें उनकी अपेक्षा से अधिक देने की कोशिश करता हूं।
प्रवीण तिवारी को उनके वीरतापूर्ण कार्यों के लिए झारखंड पुलिस की ओर से दो वीरता पुरस्कार भी मिला। जो कि 2015 और 2018 में दिया गया था।वहीं राष्ट्रपति पदक के लिए राज्य सरकार ने भारत सरकार को प्रस्ताव भेजा है जो अभी पेंडिग है। कुंदन पाहन सहित कई बड़े नक्सलियों को सरेंडर कराने में भी प्रवीण तिवारी की बड़ी भूमिका रही है।
नवीन और नीरज को 2017 में झारखंड पुलिस की नौकरी मिली, कभी आईएएस- आईपीएस बनने की चाह रखने वाले नवीन और नीरज ने झारखंड पुलिस में ज्वाइन कर देश और राज्य की सेवा में लगे हैं। दोनों भाई अभी गुमला जिला पुलिस बल में तैनात हैं। बड़े भाई प्रवीण तिवारी की तरह ही दोनों भाई भी नक्सलियों /उग्रवादियों के लिए काल हैं, दोनों ने पुलिस में अलग पहचान बनाई है।इनामी नक्सली राजेश उरांव और लजीम अंसारी की मुठभेड़ में मार गिराने में दोनों भाइयों ने गुमला पुलिस के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बताया जाता है कि जब दो दिन गुमला जिले में मुठभेड़ हुई थी तो एएसपी अभियान के नेतृत्व में दोनों भाइयों ने गजब का साहस का परिचय दिया है। माओवादी से करीब डेढ़ घंटे तक लोहा लेते रहा आखिर में कुख्यात माओवादी को मार गिराया। नवीन तिवारी बताते हैं कि अपने जीवन में देश सेवा करना है।हमें अपने राज्य में सेवा करने का मौका मिला है तो पूरी तरह सेवा में लगा हूं। इन दोनों भाइयों की मानें तो बड़े अधिकारियों का विश्वास जितने की कोशिश करते हुए हमलोग आगे अपने कर्त्तव्य पथ पर आगे बढ़ रहे हैं…
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