फोन हैकिंग मामला : कही चुनाव को प्रभावित करने के लिए पेगासस स्पाइवेयर का खेल तो नहीं !
राजनीतिक गलियारों में एक चर्चा यह भी चल रही है कि कही पेगासस का उपयोग तो नहीं किया जा रहा है ?
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अखिलेश अखिल
चुनाव का मौसम है और सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच शह मात का खेल जारी है। चुनाव को पाने पक्ष में करने के लिए डिजिटल वार भी जारी है। कांग्रेस ,बीजेपी और सभी बड़ी पार्टियां डिजिटल वार के जरिये खुद को बड़ा और सामने ववाले को घटिया बताने से बाज नहीं आ रही है। जनता भ्रमित है लेकिन दलों का यह खेल जनता को लुभा भी रहा है। इसी बीच यह खबर सामने आई है कि देश के कुछ चर्चित नेताओं और पत्रकारों के एप्पल फोन हैक हो सकते हैं। एप्पल कंपनी ने ही इस उपभोक्ताओं को सचेत किया है। एप्पल के इस अलर्ट के बाद देश की चुनावी राजनीति फिर से कई सवालों को जन्म दे रही है। विपक्ष इस मामले में सरकार को घेर रही है तो सरकार अभी इस मामले पर कॉपी जवाब नहीं दे रही है। इस मामले में सरकार आगे क्या कुछ करती है इसे देखना होगा लेकिन राजनीतिक गलियारों में एक चर्चा यह भी चल रही है कि कही पेगासस का उपयोग तो नहीं किया जा रहा है ?
सबसे पहले यह जानने की कोशिश करते एप्पल की तरफ से किन -किन लोगों के पास ये अलर्ट आये है कि उनके फ़ोन की हैकिंग हो सकती है। जानकारी के मुताबिक अब ही तक दर्जन भर लोगों ने इसकी शिकायत की है। इसमें विपक्ष के बहुत से नेता तो हैं ही ,कई बड़े पत्रकार भी शामिल हैं। जिन नेताओं को एप्पल की तरफ से चेतावनी मिली है उनमे महुआ मोइत्रा ,प्रियंका चतुर्वेदी ,राघव चड्ढा ,शशि थरूर ,असुद्दीन ओवैसी ,सीताराम येचुरी ,पवन खेड़ा और अखिलेश यादव शामिल हैं। इसके अलावा पत्रकार सिद्धार्थ बरदराजन ,समीर शरण और श्रीराम कर्री जैसे नामचीन लोग भी शामिल हैं। अभी तक कुल 11 लोगों ने एप्पल के अलर्ट की शिकायत की है। चेतावनी यह दी गई कि किसी भी वक्त उनके आई फ़ोन हैक हो सकते हैं।
हालांकि खबर लिखे जाते वक्त एप्पल की तरफ से एक और भी खबर सामने आई है। एप्पल ने अपने आधिकारिक बयान में कहा है कि उसने इस तयारह का कोई अलर्ट नहीं भेजा है। हालांकि एप्पल ने यह भी कहा है कि वह इस मामले की जांच भी नकार रहा है कि आखिर इस तरह का नोटिफिकेशन कैसे चला गया। और गया भी है तो फिर केवल विपक्षी नेताओं के यहाँ ही क्यों गए हैं ? अगर एप्पल के आई फोन का हैक होना है तो सत्तारूढ़ नेताओं के भी हो सकते हैं जबकि सूचना केवल विपक्षी नेताओं के पास ही पहुंचे हैं।
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अब कई तरह की राजनीतिक बाते भी की जाने लगी है। शिवसेना की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी का कहना है कि मुझे कल रात चेतावनी मिली थी। इस चेतावनी से ऐसा लगता है कि यह केंद्र सरकार का पूरा प्लान है और मुझे सावधानी बरतने की जरूरत है। कड़वल विपक्ष के नेताओं को ही ये संदफेश क्यों मिल रहे हैं ?इससे लगता है कि विपक्ष के नेताओं की निगरानी की जा रही है। इसकी जांच होनी चाहिए और सरकार को बताना बी ही चाहिए। चतुर्वेदी के अलावा शशि थरूर ,महुआ मोइत्रा और पवन खेड़ा और राघव चड्ढा ने भी इसी तरह की शिकायत की है।
इस खेल का सच क्या है इसकी जांच शायद हो भी लेकन ऐसा नहीं है कि विपक्षी नेताओं की जासूसी करने की बात पहली बार सामने आयी हो। इससे पहले पेगासस की गूंज भी भारत में सुनी गई थी जिसमे कई नेताओं की जासूसी करने की बात सामने आयी थी। 2019 में न्यूयार्क टाइम्स में खबर छपने के बाद देश की राजनीति में बी भूचाल मच गया था। इंडिया के करीब सौ से ज्यादा नेता और पत्रकारों के खिलाफ जासूसी करने की बात सामने आयी थी। ये जासूसी इजरायल की सॉफ्ट वेयर यंत्र से जासूसी करने की बात हुई थी। इसके बाद 2021 में भी एक रिपोर्ट आयी, जिसमे दावा किया गया कि दुनिया भर के करीब 25 सौ लोगों के फोन टेप किये गए हैं। इनमे कई भारतीय भी शामिल थे।
बता दें कि पेगासस की कहानी सामने आने के बाद मोदी सरकार पर कई सवाल भी उठाये गए थे। सरकार पर पेगासस खरीदने का इल्जाम भी लगा लेकिन सरकार ने नहीं बताया कि उसने पेगासस की खरीद की है। कोर्ट तक मामला गया और इसे देश की सुरक्षा के बताया गया। अदालत भी कुछ नहीं कर पाई। बात में न्यूयार्क टाइम्स ने ही अपनी दूसरी रिपोर्ट में बताया कि भारत सरकार ने 2017 में इजरायल की जासूसी सॉफ्ट वेयर पेगासस ख़रीदा था। रिपोर्ट में कहा गया था कि मोदी सरकार ने बपांच साल पहले दो अरब डॉलर का जो रक्षा सौदा इजरायल से किया था उसमे पेगासस की खरीद भी शामिल थी। भारत सरकार ने इसका खंडन नहीं किया।
अब सवाल है कि जब दुश्मन को ध्वस्त करने ,उसकी सभी जानकारियों को लेने के लिए इस पेगासस का उपयोग होता है तो संभव है कि चुनाव के दौरान इस तरह के खेल हो रहे हों। हालांकि इसकी पुष्टि अभी कही से नहीं की जा सकती। लेकिन चुकी राजनीति में सब कुछ जायज है इसलिए इसकी सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। अब एप्पल को इस पर सफाई देनी होगी। अगर एप्पल सफाई नहीं देती है तो उसकी विश्वसनीयता कम होगी।
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