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समीर चक्रवर्ती
वाराणसी: मोक्ष की नगरी काशी में लोग जीवन के अंतिम क्षण में गंगा लाभ के लिए आते है। ये परंपरा सदियों से चली आ रही है। परंतु आज के इस भौतिक युग में भी लोग इस परंपरा पर विश्वास करते है। यह सुनकर थोड़ा आश्चर्य लगता है। मोक्षदायनी काशी ,अब वाराणसी के एक गेस्ट हाउस का एकाउंट है, जहां लोग मृत्यु के लिए प्रवेश लेते हैं। इसे ‘काशी लाभ मुक्ति भवन’ कहा जाता है। एक हिंदु मान्यता के अनुसार यदि कोई काशी में अपनी अंतिम सांस लेता है, तो उसे काशी लाभ (काशी का फल) जो वास्तव में मोक्ष या मुक्ति है, प्राप्त होता है।
इस गेस्ट हाउस के बारे में दिलचस्प तथ्य यह है कि इसमें रहने और मरने के लिए केवल दो सप्ताह की अनुमति है। इसलिए इसमें प्रवेश से पहले किसी को अपनी मृत्यु के बारे में वास्तव में निश्चित होना चाहिए।यदि कोई व्यक्ति दो सप्ताह के बाद भी जीवित रहता है, तो उसे ये गेस्ट हाउस छोड़ना होता है। नहीं तो मुख्य कार्यालय से संपर्क पर पुन: कुछ दिन और देने की मांग की जाती है।
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उत्सुकतावश, मैंने वाराणसी जाने का फैसला किया, यह समझने के लिए कि उन लोगों ने क्या सीखा, जिन्होंने न केवल मृत्यु को एक वास्तविकता के रूप में स्वीकार किया बल्कि एक निश्चित समय के साथ अपनी मृत्यु का अनुमान भी लगा लिया हो।
मैंने गेस्टहाउस में दो सप्ताह बिताए और प्रवेश करने वाले लोगों के बारे में जानकारी एकत्र किया । उनके जीवन के सबक वास्तव में विचारोत्तेजक थे। मेरी मुलाकात भैरव नाथ शुक्ला से हुई, जो पिछले 44 वर्षो से मुक्ति भवन के प्रबंधक थे। इतने सालों में उन्होंने वहां काम करते हुए 12,000 से ज्यादा मौते देखी थीं।
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मैंने उनसे पूछा, शुक्ला जी, आपने जीवन और मृत्यु, दोनों को इतने करीब से देखा है। मैं जानने के लिए उत्सुक हूँ कि आपके अनुभव क्या रहे।
शुक्ला जी ने इस संबंध में मेरे साथ जीवन के 12 सबक साझा किये। लेकिन 12 सबक में एक सबक, जिससे शुक्ला जी बहुत प्रभावित थे और जो मुझे भी अंदर तक छू गया, वह जीवन का पाठ है- ‘जाने से पहले सभी विवादों को मिटा दें।
उन्होंने मुझे इसके पीछे की एक कहानी सुनाई…
उस समय के एक संस्कृत विद्वान थे, जिनका नाम राम सागर मिश्रा था। मिश्रा जी छह भाइयों में सबसे बड़े थे और एक समय था जब उनके सबसे छोटे भाई के साथ उनके सबसे करीब के संबंध थे।
बरसों पहले एक तर्क ने मिश्रा और उनके सबसे छोटे भाई के बीच एक कटुता को जन्म दिया। इसके चलते उनके बीच एक दीवार बन गई, अंतत: उनके घर का विभाजन हो गया।
अपने अंतिम वर्षों में, मिश्रा जी ने इस गेस्टहाउस में प्रवेश किया। उन्होंने मिश्रा जी को कमरा नं. 3 आरक्षित करने के लिए कहा क्योंकि उन्हें यकीन था कि उनके आने के 16वें दिन ही उनकी मृत्यु हो जाएगी।
14वें दिन मिश्रा जी ने, 40 साल के अपने बिछड़े भाई को देखने की इच्छा जताई। उन्होंने कहा, यह कड़वाहट मेरे दिल को भारी कर रही है। मैं जाने से पहले हर मनमुटाव को सुलझाना चाहता हूँ।
16वें दिन एक पत्र उनके भाई को भेजा गया। जल्द ही, उनके सबसे छोटा भाई आ गए। मिश्रा जी ने उनका हाथ पकड़ कर घर को बांटने वाली दीवार गिराने को कहा। उन्होंने अपने भाई से माफी मांगी।
दोनों भाई रो पड़े और बीच में ही अचानक मिश्रा जी ने बोलना बंद कर दिया। उनका चेहरा शांत हो गया और वह उसी क्षण वह चल बसे।
शुक्ला जी ने मुझे बताया कि उन्होंने वहां आने वाले कई लोगों के साथ इसी एक कहानी को बार-बार दोहराते हुए देखा है। उन्होंने कहा, मैंने देखा है कि सारे लोग जीवन भर इस तरह का अनावश्यक मानसिक बोझा ढोते हैं, वे केवल अपनी यात्रा के समय इसे छोड़ना चाहते हैं।
हालांकि, उन्होंने कहा की ऐसा नहीं हो सकता है कि आपका कभी किसी से मनमुटाव ना हो बल्कि अच्छा यह है कि मनमुटाव होते ही उसे हल कर लिया जाए। किसी से मनमुटाव, किसी पर गुस्सा या शक-शुबा होने पर उसे ज्यादा लंबे समय तक नहीं रखना चाहिए और उन्हें हमेशा जल्द से जल्द हल करने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि अच्छी खबर यह है कि हम जिंदा हैं, लेकिन बुरी खबर यह है कि हम कब तक जिंदा है, यह कोई नहीं जानता।
तो, चाहे कुछ भी हो, अपने मनमुटावों को आज ही सुलझा लें, क्योंकि
कल का वादा इस दुनिया में किसी से नहीं किया जा सकता है। सोचें…क्या कुछ ऐसा है या कोई है जिसके साथ हम समय रहते शांति स्थापित करना चाहते हैं?
जब हमें किसी के साथ कड़वे अनुभव होते हैं, तब हमें क्षमा भाव अपनाकर भावनात्मक बोझ दूर कर लेना चाहिए। कोरोना काल में यहां किसी को भी ‘काशी लाभ ‘ के लिए कोई कमरा आवंटित नहीं किया गया था। वर्तमान समय में केवल कुछ कर्मचारी और मंदिर के पुजारी ही इस भवन में है। वहीं इसके पुन: खुलने के बारे में पूछने पर शुक्ला जी ने हंसते हुए कहा अभी कोरोना महामारी वैसे ही लोगों को मुक्ति दे रहा है। परंतु सब ठीक रहा तो होली बाद या चैत्र नवरात्रि में पुन: खोला जा सकता है। यह पूछने पर की क्या लोग मोक्ष के लिए कमरा आवंटन की मांग कर रहे है। शुक्ला जी ने कहा फिलहाल कुछ पत्र आये है। कोरोना के कारण किसी को कमरा आवंटित नहीं किया जा रहा है।
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