NTPC के घोटाले पर डीएफओ ने की हद पार, एक जांच की बनाई दो रिपोर्ट, एक में NTPC के तीन अधिकारियों को बताया दोषी, दूसरे में दी सभी को क्लीनचिट
अफसरों को बचाने के लिए डीएफओ का हास्यापद तर्क,नही दे सके कोई ठोस आधार,भूमिका संदिग्ध
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Ranchi: झारखण्ड़ में अवैध खनन कोई नई बात नहीं है. इसमें हर दिन एक नई कहानी निकल कर सामने आती है. अवैध खनन में अधिकारियों की मिलीभगत भी सामने आती रहती है. जिसको लेकर हैरान हुए बिना नहीं रहेंगे. क्योंकि अवैध खनन को लेकर अधिकारी चुप है, जब खुलासे हुए तो अवैध माईनिंग के दोषियों को बचाने के लिए सारी हदें पार कर दिए. एनटीपीसी के पंकरी बरवाडीह कोल परियोजना में फॉरेस्ट क्लियरेंस के शर्तों का उल्लंघन कर सौ एकड़ एरिया में अवैध माइनिंग किए जाने को लेकर वन विभाग की कठघरे में है. उसकी भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है. ऐसा इसलिए कि जब भारत सरकार की पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा एनटीपीसी को पंकरी बरवाडीह कोल परियोजना हेतु स्टेज टू के फॉरेस्ट क्लियरेंस में जो शर्तें लगाई गई थी,उन शर्तों का अनुपालन और देख-रेख की जिम्मेवारी राज्य सरकार-स्थानीय प्रसाशन को दिया गया था. एनटीपीसी और उसके एमडीओ त्रिवेणी-सैनिक माईनिंग प्राइवेट लिमिटेड द्वारा फॉरेस्ट शर्तो-लीज शर्तों का उल्लंघन कर अवैध माईनिंग किया जा रहा था. तब स्थानीय जिला प्रसाशन और वन विभाग के अधिकारी चुप-चाप अवैध माईनिंग देखते रहे किसी ने उसे रोकने-टोकना उचित नहीं समझा. वही मंटू सोनी द्वारा भारत सरकार से शिकायत किए जाने के बाद जब के केंद्र सरकार से रिपोर्ट तलब की गई तब आनन-फानन में खुद की जिम्मेवारी से भागते हुए अवैध माईनिंग के दोषियों को बचाने में जिला प्रसाशन और वन विभाग के अधिकारी लग गए.
अवैध माईनिंग में डीएफओ ने बनाई दो अलग-अलग रिपोर्ट
एनटीपीसी और उसके एमडीओ त्रिवेणी-सैनिक माईनिंग प्राइवेट लिमिटेड द्वारा फॉरेस्ट क्लियरेंस की शर्तो का उल्लंघन कर सौ एकड़ एरिया में अवैध माईनिंग किए जाने को लेकर हजारीबाग पश्चिमी वन प्रमंडल पदाधिकारी आर.एन. मिश्रा ने दो तरह का रिपोर्ट की रिपोर्ट बनाई, अवैध माईनिंग को लेकर एनटीपीसी के तीन अधिकारियों को दोषी बताया तो दूसरे रिपोर्ट में क्लीनचिट दे दी.
डीएफओ ने पहली रिपोर्ट में एनटीपीसी के तीन अधिकारियों को अवैध खनन का दोषी बताया
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हज़ारीबाग़ पश्चिमी वन प्रमंडल पदाधिकारी आर.एन. मिश्रा ने एनटीपीसी के त्रिवेणी-सैनिक माईनिंग प्राइवेट लिमिटेड द्वारा सौ एकड़ एरिया में अवैध माईनिंग कोई जाने को लेकर दो रिपोर्ट बनाया है. वन संरक्षक,प्रादेशिक अंचल हज़ारीबाग़ को दिए रिपोर्ट में तीन बिंदुओं पर कार्रवाई की अनुसंशा किया है. पहले बिंदु में अनाधिकृत खनन हेतु उपयोग किए सौ एकड़ एरिया के पांच गुना एनपी भी वसूला जाए. दूसरे बिंदु में सौ एकड़ एरिया के पांच गुणा दंड क्षतिपूर्ति पौधरोपण करने और तीसरे बिंदु में एनटीपीसी के कार्यकारी निदेशक प्रशांत कश्यप,विक्रम चंद्र दुबे ,अपर महाप्रबंधक ( खनन) और रंजीत प्रसाद उप महाप्रबंधक (खनन) पर वन संरक्षण अधिनियम के तहत दो धाराओं में कार्रवाई की अनुशंसा किया था.
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डीएफओ ने पहली रिपोर्ट बदलकर दूसरी रिपोर्ट में उन्ही अधिकारियों को दी क्लीनचिट
हज़ारीबाग़ पश्चिमी वन प्रमंडल पदाधिकारी आर.एन. मिश्रा ने एनटीपीसी के त्रिवेणी-सैनिक माईनिंग प्राइवेट लिमिटेड द्वारा सौ एकड़ एरिया में अवैध माईनिंग कोई जाने को लेकर पहली रिपोर्ट बदलकर वन संरक्षक प्रादेशिक अंचल हज़ारीबाग़ को दूसरी रिपोर्ट में विभिन्न विरोधाभाषी रिपोर्ट का हवाला देकर अवैध खनन को लेकर किसी भी अधिकारी को दोषी नही बताया और सिर्फ अनाधिकृत खनन हेतु उपयोग किए सौ एकड़ एरिया के पांच गुना एन पी भी वसूलने और सौ एकड़ एरिया में अवैध खनन के पांच गुणा दंड क्षतिपूर्ति पौधरोपण का अनुशंसा किया है.
अफसरों को बचाने के लिए डीएफओ का हास्यापद तर्क,नही दे सके कोई ठोस आधार,भूमिका संदिग्ध
जांच रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद पश्चिमी वन प्रमंडल पदाधिकारी आर.एन. मिश्रा द्वारा एनटीपीसी और त्रिवेणी-सैनिक माइनिंग प्राइवेट लिमिटेड के अधिकारियों को बचाने के लिए हास्यास्पद तर्क गढ़ दिया है. डीएफओ ने वन विभाग के वरीय अधिकारियों को अवैध माईनिंग भी माना है लेकिन किसी को जिम्मेदार नही माना गया है. इसको लेकर डीएफओ की भूमिका पर सवाल उठाया जा रहा है. डीएफओ ने एनटीपीसी के अफसरों को बचाने के लिए दो आदेशों का हवाला देते हैं ,हालांकि उसमें कहीं से यही नहीं लिखा गया है. कि बिना फॉरेस्ट क्लियरेंस के शर्तों को न मानते हुए भी दुमुहानी नाला को नष्ट या पुनर्निर्माण कर सकती है. डीएफओ का पहला तर्क यह है कि झारखंड सरकार द्वारा एनटीपीसी को गैरमजरुआ आम,गैरमजरूआ खास,जंगल-झाड़ की जमीन का लीज एग्रीमेंट के शर्तों का मनमानी विश्लेषण किया गया है. जिसके शर्त संख्या 14 में यह लिखा गया है कि लीजधारक( एनटीपीसी) को ” सार्वजनिक प्रयोजनार्थ अभिलिखित जमीन यथा पूजा स्थान,रास्ता,नाला आदि का विकास कंपनी को को करना होगा तथा इस संबंध में किसी भी सार्वजनिक स्तिथि में सार्वजनिक कार्यों का उल्लंघन न हो यानि अन्य लोग भी उक्त भूमि का उपयोग कर सकें ” तथा डीएफओ का दूसरा तर्क यह है, कि झारखंड सरकार के वाटर रिसोर्स डिपार्टमेंट को दिया था. विभाग में चीफ इंजीनियर अशोक कुमार ने वर्षा जल संचयन के पुनर्निर्माण के लिए एनटीपीसी को दिनांक वर्ष 2013 में इस शर्त पर अनापत्ति प्रमाण पत्र दिया कि उसे ” वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत पर्यावरण और वन मंत्रालय भारत सरकार ” से अनापत्ति आदेश लेना होगा और ” पानी-पर्यावरण की उपलब्धता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नही पड़ना ” उपरोक्त दोनों तर्कों का मनमाना विश्लेषण कर डीएफओ द्वारा एनटीपीसी और त्रिवेणी-सैनिक माइनिंग के अधिकारियों को बचाने के लिए वरीय अधिकारियों को जो तर्क दिया गया है. उसमें किसी मे भी यह स्पष्ट नही किया गया है कि एनटीपीसी को दुमुहानी नाला को नष्ट/डायवर्ट करने का आदेश प्राप्त हो चुका था और उसे फॉरेस्ट क्लियरेंस की शर्तों का पालन करने की अनिवार्यता नही थी.
डीएफओ आर एन मिश्रा की भूमिका पर उठ रहे गंभीर सवाल,दोषियों को बचाने के हद पार किया
भारत सरकार की महारत्न कंपनी एनटीपीसी और उसके एमडीओ त्रिवेणी-सैनिक द्वारा सौ एकड़ एरिया में किए गए. अवैध माईनिंग पर डीएफओ की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं. ऐसा इसलिए कि उनकी पोस्टिंग पिछले तीन साल से हज़ारीबाग़ में है. उस समय से उनकी नजर अवैध माईनिंग पर क्यों नही गई,अवैध माईनिंग को उन्होंने क्यों नही रोका और अब भी क्यों नही रोक रहे ? जब जांच में अवैध माईनिंग की पुष्टि हो गई तो दोषियों को बचाने के लिए दो रिपोर्ट बना दिया. इसके बाद भी अवैध माईनिंग के दोषियों को बचाने के लिए डीएफओ न बायोडाइवर्सिटी एक्ट और माइंस और मिनरल एक्ट,पर्यावरण संरक्षण एक्ट,वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत कार्रवाई की अनुशंसा को जानबूझकर दबा ताकि दोषियों को कम से कम दंड और कार्रवाई हो सके.
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