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चाकू के 8 वार, फोड़ी गई थीं आंखें… तालिबान की सताई यह दिलेर लेडी कॉप क्‍यों दिल्‍ली में सड़क पर बैठी?

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वह अफगानिस्‍तान में पुलिस अधिकारी रही हैं। उन पर जून 2020 में तालिबान आतंक‍ियों ने हमला किया था। सितंबर में यह लेडी कॉप भागकर दिल्ली आ गई थी। सोमवार से वह वसंत विहार में संयुक्त राष्ट्र हाई कमीशन के कार्यालय के बाहर बैठी हैं। हाशिमी अपने लिए बेहतर भविष्य की मांग कर रही हैं। जून 2020 में तालिबान आतंकवादियों ने 33 साल की पुलिसकर्मी पर आठ गोलियां दागी थीं। उन पर चाकू के आठ वार हुए थे। उनकी आंखें निकाल ली गई थीं। वह चाहती हैं कि यूएनएचसीआर उन्‍हें दूसरे देश में बसाए ताकि वह आत्मनिर्भर बन सकें।हमले के बाद हाशिमी और उनके पति मोहम्मद नबी सितंबर 2020 में इलाज के लिए भारत आ गए थे। जनवरी 2021 में उन्‍हें एक बेटी हुई। इसका नाम बहार है। लेकिन, वह अपने पांच बच्चों को देख नहीं सकती हैं। उन्‍हें वह अफगानिस्तान में छोड़ आई थीं। हाशिमी ने हमारे सहयोगी अखबार टीओआई से बातचीत में कई बातें कहीं। उन्‍होंने बताया, ‘अगर मैं अफगानिस्तान गई तो घर पहुंचने से पहले ही हवाई अड्डे पर मुझे मार दिया जाएगा।’ लगभग एक साल से मेरा अफगानिस्तान में अपने पांच बच्चों से कोई संपर्क नहीं हुआ है।’पत‍ि-पत्‍नी को बेटी के भव‍िष्‍य की च‍िंंता हाशिमी के पति मोहम्‍मद नबी ने कहा, ‘हम अफगानिस्तान में अपने बच्चों के बारे में कुछ नहीं कर सकते हैं। लेकिन, उम्मीद करते हैं कि हम यहां पैदा हुई अपनी बेटी के लिए बेहतर भविष्य सुनिश्चित करेंगे।’ दंपति ने कहा कि उनके लिए खर्च चलाना मुश्किल हो गया है। कारण है कि रेफ्यूजी स्‍टेटस के कारण उनके पास कोई नौकरी नहीं है। निराश महिला ने कहा, ‘मैंने अपनी आंखों की रोशनी खो दी है। हम उचित इलाज और दवाओं की व्यवस्था करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मेरे सिर पर गोली लगने से भी बहुत दर्द होता है। हमने पिछले कुछ महीनों से अपना किराया और बिजली बिल नहीं दिया है। घरेलू काम और कंप्यूटर ट्रेनिंग बंद करनी पड़ी है। कारण है कि अब फीस नहीं दे सकती हूं।’ अब खर्च नहीं हो पा रहे हैं पूरे हाशिमी ने कहा कि यूएनएचसीआर उन्‍हें मासिक सहायता देता है। लेकिन, यह खर्चों को पूरा करने के लिए नाकाफी है। वह मदद के लिए दूसरों से भीख नहीं मांगना चाहती हैं। अलबत्‍ता, आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं। अपने पति और बेटी के साथ वह दूसरे देश में बसना चाहती हैं। ऐसे देश में जहां वह ट्रेनिंग ले सकें। कमा सकें। उचित चिकित्सा उपचार पा सकें। पुलिस सेवा में शामिल होने के तीन महीने बाद ही महिला पुलिसकर्मी को तालिबान का गुस्सा झेलना पड़ा था। तब हाशिमी ने दूसरी महिलाओं को अपने ऊपर हुए हमले के मामलों की शिकायत पुलिस के पास करने के लिए प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया था। हाशिमी ने बताया कि वह पुलिस बल में शामिल होने से पहले भी महिलाओं के लिए काम कर रही थीं।हाशिमी ने कहा, ‘मैंने एक 15 साल की लड़की का पता लगाया था। उसका अपहरण कर लिया गया था। पुलिस को उसके ठिकाने के बारे में सूचित किया था।’ पुलिस बल में शामिल होने के बाद उन्‍हें कई धमकियां मिलीं। इनमें उन महिलाओं के परिवार के सदस्यों की धमकियां भी शामिल थीं जिनकी उन्‍होंने कभी मदद की थी।

 

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