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मेरी माटी मेरा देश : अकम्मा चेरियन के आगे ब्रिटिश अफसर ने मानी हार, पढ़ें वीरता की कहानी

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अकम्मा चेरियन स्वतंत्रता आंदोलन की मजबूत सिपाही और महान समाज सुधारक रही हैं। शुरू में वह प्राध्यापिका थीं, लेकिन मातृभूमि को गुलामी की जंजीर से मुक्त करवाने के लिए उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी और आजादी की लड़ाई में कूद पड़ीं। बाद में वह ‘त्रावणकोर राज्य कांग्रेस’ की सक्रिय सदस्य बनीं और आंदोलन में हिस्सा लिया। 1947 में देश आजाद हुआ, पर अकम्मा का मिशन जारी रहा।

बात 1938 की है, त्रावणकोर में लोग तत्कालीन शासक से नाखुश थे। ‘त्रावणकोर राज्य कांग्रेस’ के नेतृत्व में लोग विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे, लेकिन वहां के दीवान ने कई प्रतिबंध लगा दिए थे। इसके विरोध में केरल में अपने तरह का पहला सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ। पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष सहित कई नेता जेल में डाल दिए गए। ऐसा लगा कि आंदोलन बिखर जाएगा, लेकिन पार्टी के अध्यक्ष ने अकम्मा को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। इसके बाद भी कठिन समय में निडर अकम्मा ने त्रावणकोर राज्य कांग्रेस की कमान संभाली और जेल में डाले गए नेताओं को रिहा कराने के लिए रैली की।

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प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए ब्रिटिश पुलिस अफसर कर्नल वॉटसन ने गोली चलाने का आदेश दिया, तब उस अफसर को ललकारते हुए अकम्मा ने कहा, ‘मैं इनकी नेता हूं, दूसरों को गोली मारने से पहले मुझे गोली मारो।’ उनकी निडरता ने अफसर को उनका आदेश वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया। इस तरह बड़ा नरसंहार टल गया और उनकी वीरता की प्रशंसा हुई। इसके बाद अकम्मा ने महिला स्वयंसेवी समूह, ‘देससेविका संघ’ की स्थापना की और महिलाओं को स्वाधीनता आंदोलन के लिए प्रेरित किया।

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आजाद भारत में भी अकम्मा चेरियन ने समाज सुधार के क्षेत्र में काम किया, और उनकी देशभक्ति की आग आज भी जलती रहती है। उन्होंने अपने जीवन में समाज के अन्याय, रूढ़िवाद, अर्थहीन कर्मकांड, सामाजिक अन्याय और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ लड़ाई दी। उन्होंने कहा कि जब वे इन अन्यायों को देखती हैं, तो वे अंधी हो जाती हैं, लेकिन वे अपने लक्ष्य से विचलित नहीं होतीं।

अकम्मा चेरियन का जन्म 1909 में कांजीरपल्ली, त्रावणकोर में हुआ था। उन्होंने ग्रेजुएट की डिग्री प्राप्त की और फिर सेंट मैरी स्कूल, एडक्कारा में प्राध्यापिका के रूप में काम किया। उन्होंने त्रावणकोर राज्य कांग्रेस की सक्रिय सदस्य बनकर देशभक्ति और समाज सुधार के क्षेत्र में काम किया। उनका परिवर्तनकारी योगदान आज भी स्मरणिक बना हुआ है और उन्हें ‘त्रावणकोर की झांसी की रानी’ की उपाधि भी प्राप्त है।

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