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कैरो-लोहरदगा: भारतरत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद भारतीय आधुनिक शिक्षा व्यवस्था के जनक थे। स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री के रूप में उनके द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किये गए सुधारात्मक कार्य के लिए सदा उन्हें याद किया जाएगा। उक्त बातें मौलाना आज़ाद वेलफेयर सोसाइटी कैरो के मीडिया प्रभारी जहांगीर अंसारी ने चांदनी चौक कैरो में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के 64वें पुण्यतिथि के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में उनको याद करते हुए कही।उन्होंने आगे कहा कि मौलाना आजाद हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर और भारत विभाजन के धुर विरोधी थे।अबुल कलाम आज़ाद पाकिस्तान के निर्माण का विरोध करने वाले सबसे प्रमुख मुस्लिम नेता रहे। वह सदेव अखंड और धर्मनिरपेक्ष भारत के पक्षधर थे। आजादी की लड़ाई के दौरान मौलाना आज़ाद रांची में करीब साढ़े तीन साल तक नजरबंद रहे। मौलाना आज़ाद आईआईटी, आईआईएम और यूजीसी जैसे संस्थानों की स्थापना में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद अरबी, हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, फ़ारसी और बंगाली सहित कई भाषाओं के विद्वान थे। उन्होंने काहिरा के अल अजहर विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने अफगानिस्तान, इराक, मिस्र, सीरिया और तुर्की जैसे देशों का सफर किया।स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मौलाना आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री भी बने। 22 फरवरी 1958 को स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का निधन हो गया। राष्ट्र निर्माण में उनके अमूल्य योगदान के लिए उन्हें 1992 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया और हर वर्ष 11 नवम्बर को उनकी याद में शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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