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रामप्रसाद सिन्हा
पाकुड़: जिले के अमड़ापाड़ा प्रखंड के पचुवाड़ा नाॅर्थ कोल ब्लाॅक से प्रभावित और विस्थापित ग्रामीण भले ही अपनी समस्याओ के लिए बीते तीन दिनों से आंदोलन कर रहे हो लेकिन इनकी समस्याए शत प्रतिशत अबतक दुर नही हुई है। पचुवाड़ा नाॅर्थ कोल ब्लाॅक से विस्थापित और प्रभावित विशन के ग्रामीणो के जारी आंदोलन में यह चर्चा आम सहित खास लोगो में है कि कोयला खदान से विस्थापितो का इसलिए है बुरा हाल क्योंकि अलकतरा और मिठाई पार्टी जो हो रहे मालामाल।
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जिले में वैसे तो वर्षो से चाहे पचुवाड़ा साउथ कोल ब्लाॅक हो या अब नाॅर्थ कोल ब्लाॅक से विस्थापित और प्रभाावित ग्रामीण हमेंशा से एकरारनामा की शर्तो का उलंघन करने, सही तरीके से मुआवजा का भुगतान नही करने के साथ ही स्वास्थ, शिक्षा एवं बुनियादी सुविधाए मुहैया नही कराने का आरोप लगाते रहे है। इतना ही नही आंदोलन के दौरान कोयला खदान से प्रभावित ग्रामीणो द्वारा कोल कंपनी पर विचैलिया प्रथा को बढ़ावा देने के भी आरोप लगाते रहे है और इनके इस आरोप में दम भी है। आज भी कोयला उत्खनन क्षेत्र के आसपास के वैसे इलाके जिन ग्रामीणो की जमीन पर कोयला खुदाई होनी है या हो रही है उनके जीवन स्तर में अबतक कोई खास बदलाव नही आया है। स्वास्थ के लिए आज भी लोगो को सरकारी अस्पताल के अलावे दुर दराज के अस्पतालों में जाना पड़ता है। रैयतो के बाल बच्चों का कौशल विकास कितना हुआ यह तो सभी जानते है। ग्रामीणो को पानी, बिजली की समस्या से भी दो चार होना पड़ रहा है और यह सब इसलिए हो रहा है कि कोयला कंपनी द्वारा विस्थापित और प्रभावित लोगो को मुहैया करायी जाने वाली सुविधाओ के संरचना विकसित करने में विचैलिया प्रथा का बोलबाला है। पचुवाड़ा नाॅर्थ कोल ब्लाॅक द्वारा विशनपुर गांव में विस्थापितो के लिए बनाया जा रहा पक्का मकान विचैलिया प्रथा का सबसे बड़ा नमुना है। ग्रामीणो का आरोप है कि जो पक्का मकान उनके रहने के लिए बनाये जा रहे है उसमें अलकतरा पीने वाले, मिठाई का स्वाद चखाकर चेहरा चमकाने वाले, सरकारी टेंडरो में विश्वकर्मा की भुमिका निभाने वाले, इतिहास और भुगोल की कहानी लिखने वाले सभी विचैलिया के रूप में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अपनी भुमिका निभा रहे है। बन रहे विशनपुर के विस्थापितो के मकान में न केवल घटिया ईट का इस्तेमाल किया जा रहा बल्कि छड़ सीमेंट भी एक अच्छे मकान बनाने के रूप में इस्तेमाल नही किया जा रहा। विशनपुर के ग्रामीणो ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अनेको बार घटिया निर्माण को लेकर शिकायत दर्ज करायी गयी लेकिन विचैलिये इतने हावी हो गये कि उनकी बातें नही सुनी गयी। ग्रामीणो के मुताबिक जो विचैलिये अपना चेहरा चमकाकर ट्रांसपोर्टर बन गये है वे ही इनके बनने वाले आशियाना के विचैलिया हो गये है तो उनके मकान का भविष्य आगे क्या होगा इस पर न तो कोल कंपनी और न ही एकरारनामा की शर्तो को पूरा कराने का दारोमदार रखने वाले सरकारी अमले और जुमले ध्यान दे रहे। ग्रामीणो का कहना है कि यदि कोल कंपनी एवं प्रशासन हम विस्थापितो और प्रभावितो के प्रति वफादार हो जाय तो न केवल हमारी हकमारी रूकेगी बल्कि हमारा बुरा हाल नही होगा और अलकतरा व मिठाई पार्टी मालामाल नही होंगे। कोल कंपनी द्वारा बनाये जा रहे विस्थापितो के आवास मामले में ग्रामीणो द्वारा विचैलियो के हावी होने के मामले को लेकर बीजीआर कंपनी के जनसम्पर्क पदाधिकारी संजय बेसरा का कहना है कि सभी काम कंपनी ही करा रही है।
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