पश्चिमी सिंहभूम जिला में स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल बेहाल, जिले में डॉक्टरों की भारी कमी के कारण लोगों को नहीं मिल रहा है बेहतर स्वास्थ्य सुविधा
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मलेरिया, डायरिया ,कुपोषण, एनीमिया के लिए देश भर में कुख्यात जिले में ग्रामीण क्षेत्रों सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिलने से असमय काल के गाल में समा रहे हैं ग्रामीण
जिले में विभिन्न पीएचसी, अनुमंडल अस्पताल के अलावा उप स्वास्थ्य केंद्र में 214 डॉक्टरों का पद ,लेकिन पूरे जिले में मात्र 75 डॉक्टर ही कार्यरत
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चाईबासा : कोल्हान प्रमंडल मुख्यालय चाईबासा सहित पूरे पश्चिम सिंहभूम में स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल बेहाल हो गया है। पश्चिमी सिंहभूम जिला पूरे देश भर में मलेरिया, डायरिया ,कुपोषण एनीमिया के लिए कुख्यात है। आदिवासी बहुल इस जिले में शहर से लेकर सुदूरवर्ती जंगल पहाड़ ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पा रहा है, जिसके कारण इलाज के अभाव में लोग असमय काल के गाल में समा रहे हैं और इलाज के अभाव में लोगों की मौतें भी हो रही हैं। बरसात के दिनों में ग्रामीण क्षेत्रों में मलेरिया डायरिया आदि बीमारी गंभीर रूप धारण कर लेती है और महामारी जैसी समस्या उत्पन्न हो जाती है। डॉक्टरों की कमी और बेहतर स्वास्थ्य सुविधा लोगों तक नहीं पहुंच पाती जिसके कारण लोग की जान गंवानी पड़ती है। सारंडा के जोजोगुटू में दर्जनभर लोगों की मौत मलेरिया दूषित गंदे जल को पीने के कारण डायरिया आदि से हो गई है। बीमारी और महामारी फैलने की स्थिति में डॉक्टरों की कमी के कारण स्वास्थ्य विभाग की टीम समय पर नहीं पहुंच पाती जिसका खामियाजा लोगों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है। डॉक्टरों की कमी से सदर अस्पताल के अलावा पीएचसी, अनुमंडल अस्पताल भी जूझ रहा है। सरकार के पास जिला स्वास्थ्य विभाग की ओर से डॉक्टर बहाली को लेकर प्रस्ताव भेजा जा रहा है, लेकिन अब तक इसे स्वीकृति नहीं मिली है। रोस्टर के आधार पर चाईबासा सदर अस्पताल में कुल 37 डॉक्टरों का पद सृजित है। लेकिन सदर अस्पताल में फिलहाल 12 डॉक्टर ही कार्यरत है।जबकि पूरे जिले में 214 डॉक्टरों का पद विभिन्न पीएचसी, अनुमंडल अस्पताल के अलावा उप स्वास्थ्य केंद्र में सृजित है।लेकिन पूरे जिले में केवल 75 डॉक्टर ही पदस्थापित हैं।
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जिले में कुल 16 पीएचसी केंद्र है. लेकिन डॉक्टरों की कमी होने के कारण जिले के मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। मरीजों का समय पर इलाज नहीं होता है। जिला स्वास्थ्य विभाग ने पुन: एक बार सरकार को डॉक्टरों की बहाली से संबंधित प्रस्ताव भेजा है। लेकिन अभी तक सिर्फ आश्वासन ही दिया जा रहा है. इधर, पीएचसी में भी नियमित रूप से डॉक्टर नहीं होते हैं. तीन से चार पीएचसी में एक ही डॉक्टर कार्यरत है। अलग-अलग दिन में अलग-अलग पीएचसी में इन्हें प्रतिनियुक्त किया गया है। अधिकतर स्थानों में तो प्रतिनियुक्त के आधार पर डॉक्टर कार्यरत है।
जिला में कुल 342 उप स्वास्थ्य केंद्र है। 90 प्रतिशत उप स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की सेवा नहीं होती है। एएनएम व जीएनएम के भरोसे ही उप स्वास्थ्य केंद्र चलाया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्र में सही से स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं होने की वजह से डायरिया, मलेरिया जैसी सामान्य बीमारियों का शिकार होकर ग्रामीणों की मौत तक हो जाती है। सदर अस्पताल में भी जिस तरह से सुविधा होनी चाहिये उस तरह की सुविधा भी यहां नहीं है। यहां अल्ट्रासाउंड वर्षों से बेकार पड़ा हुआ है।डॉक्टर की नियुक्ति नहीं होने के कारण यहां के मरीज बाहर से अल्ट्रासाउंड कराते है।
सदर अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. बुका उरांव ने बताया कि सरकार के पास लगातार डॉक्टरों की बहाली को लेकर प्रस्ताव भेजा जा रहा है। लेकिन अभी तक बहाली नहीं हुई है। अस्थायी रूप में कुछ डॉक्टरों की बहाली हुई है. जिले में डॉक्टरों की भारी कमी है. सदर अस्पताल में भी 37 पद सृजित है, लेकिन 12 डॉक्टर ही कार्यरत हैं।
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