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डॉ. कृष्णा गोप, खोरठा डहर के संस्थापक और अध्यक्ष, झारखंड राज्य में भाषा अकादमी के गठन के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं। उनके अनुसार, भाषा एक सांस्कृतिक धरोहर है और इसे संरक्षित करना आवश्यक है। झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है, जहां कई अलग-अलग भाषाएं बोली जाती हैं। इन भाषाओं को संरक्षित करने के लिए भाषा अकादमी का गठन आवश्यक है।
डॉ. गोप का कहना है कि वर्तमान में राज्य सरकार द्वारा तीन अकादमियों के गठन के लिए प्रस्ताव तैयार किया गया है। हालांकि, इस प्रस्ताव में कुछ कमियां हैं। उन्होंने इन कमियों को दूर करने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं।
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उनके सुझावों में शामिल हैं:
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- प्रस्तावित प्रारूप में स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया गया है कि किन भाषाओं को सरकार संरक्षण देना चाहती है।
- साहित्य अकादमी के प्रस्तावित प्रारूप में राज्य के विश्वविद्यालयों/कॉलेजों से दस भाषाविदों को जगह दिए जाने की बात कही गई है। इसे कम करके पांच भाषाविदों और पांच साहित्यकारों, कथाकारों और शिक्षाविदों को जगह दी जानी चाहिए।
- तीनों अकादमियों के प्रस्तावित प्रारूपों में यह प्रावधान है कि प्रत्येक जिला से जिला उपायुक्तों के द्वारा एक-एक सदस्यों का मनोनयन महासभा के लिए किया जाएगा। इसे बदलकर विभागीय मंत्रालय के द्वारा तय कमिटी विज्ञापनों के जरिये मानक शर्तों को रख कर महासभा के लिए सदस्यों का चयन किया जाना चाहिए।
डॉ. गोप का मानना है कि इन सुझावों को लागू करने से भाषा अकादमियों को अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है। इससे भाषाओं के संरक्षण और विकास में मदद मिलेगी।
डॉ. गोप के सुझावों पर विचार करना महत्वपूर्ण है। भाषा एक बहुमूल्य धरोहर है और इसे संरक्षित करना आवश्यक है। भाषा अकादमी इस लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
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