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नयी दिल्ली: वित्त एवं कंपनी मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की वाणिज्यिक इकाई अंतरिक्ष कार्पोरेशन के साथ संप्रग सरकार के समय के सौदे में भ्रच्टाचार के आरोपों में घिरी देवास मल्टी मीडिया को परिसमाप्त करने के बारे में उच्चतम न्यायालय के ताजा निर्णय का हवाला देते हुए मंगलवार को कांग्रेस पर जम कर प्रहार किया और कहा कि यह सौदा देश के साथ कांग्रेस की ओर से किया गया धोखा था।
श्रीमती सीतारमण ने उच्चतम न्यायालय ने कल के उस निर्णय के संबंध में सरकार की राय देने के लिए विशेष रूप से आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उच्चतम न्यायलय ने अपने विस्तृत निर्णय में जगह-जगह यह स्पष्ट किया है कि 2005 का देवास-अंतरिक्ष सौदा अनधिकृत एवं धोखा था। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय को लेकर सरकार विदेशी अदालतों में जाएगी, जहां देवास ने भारत के खिलाफ अरबों रुपए की क्षतिपूर्ति के दावे कर रखे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ विधि का शासन मामने वाला कोई भी देश धोखाधड़ी के अधार पर किसी समझौते को सही नहीं मानेगा।’’ उन्होंने यह पूछे जाने पर कि यह धोखा किसने किया तो श्रीमती सीतारमण का जवाब था,‘‘ मैं कैसे समझाऊं, यह कांग्रेस का धोखा था, कांग्रेस द्वारा किया गया धोखा था और कांग्रेस के लिए किया गया धोखा था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ कभी यह नहीं सुना गया कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस पर कोई समझौता फाड़ा हो या उस समय की सरकार से कुछ पूछा हो। ’’ श्रीमती सीतारमण ने कहा कि अंतरिक्ष देवास समझौते में एक निजी कंपनी को ऐसी उपग्रह फ्रीक्वेंसी कौड़ी के मोल देने का सौदा कर लिया गया जो सेनाओं द्वारा इस्तेमाल की जाती है।
उन्होंने कहा कि इस सौदे के लिए मंत्रिमंडल में मंजूरी तक नहीं ली गयी थी और धोखे का पता लगने के बावजूद उसे रद्द करने में छह साल का समय लग गया और इसे उस समय की सरकार ने कहीं 2011 में जाकर इसे रद्द किया।
उन्होंने कहा कि यह करार रद्द करने का निर्णय देश की सुरक्षा संबंधी उपबंध नहीं लगाया गया और जब देवास इस कार्रवाई के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय पंच निर्णय के लिए आर्बिट्रेशन में में गयी तो अंतरिक्ष कार्पोरेशन ने समय रहते अपनी ओर से पंचा की नियुक्ति नहीं की।
श्रीमती सीतारमण ने कहा कि देवास मल्टीमीडिया को लिक्विडेट (परिसमाप्त) करने के राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के निर्णय को चुनौती देने वाली देवास मल्टीमीडिया और और देवास इम्प्लाइज मारीशस प्रा लि की अपील को खारिज करने वाले अपने विस्तृत निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि अंतरिक्ष कार्पोरेशन का देवास के साथ करार ‘सरासर धोखा था।’इस सौदे में इसरो की वाणिज्यिक इकाई अंतरिक्ष कार्पोरेशन ने ‘देवास के साथ देवास सर्विसेज के लिए देवास डिवास के माध्यम से देवास की प्रौद्योगिकी के लिए करार कर लिया जिसका अस्तित्व ही नहीं था। उन्होंने कहा कि मजे की बात है कि यह करार देवास को ऐसे उपग्रहों जीएसएलवी6 और जीएसएलवी8 की 90 प्रतिशत एस बैंड फ्रीक्वेंसी बेचने के लिए थो जिनको प्रक्षेपित करने के बारे कोई निर्णय तक नहीं हुआ था।
श्रीमती सीतारमण ने कहा कि सरकार ने देवास के साथ सौदा रद्द करने के निर्णय के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा का अनुबंध नहीं जोड़ और अंतरिक्ष कार्पोरेशन के 2011 में आईसीसी में आर्बिट्रेशन के जाने के बाद उस साल अगस्त में आए नोटिस पर 21 दिन की समय सीमा में अपनी तरफ से पंच की नियुक्ति नहीं की। देवास मल्टीमीडिया के दावे पर इंटरनेशनल चैम्बर आफ कामर्स (आईसीसी) के पंचाट ने 2015 में भारत के खिलाफ 56.25 करोड़ डालर और उस पर ब्याज की बिक्री सुनाई है।
उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायलय के निर्णय में भी यह स्पष्ट है कि देवास ने भारत में 578 करोड़ रुपए का निवेश किया था और वह अमेरिका में अपनी एक अनुषंगी कंपनी बनाने के गठन, व्यावसायिक सेवाओं और कानूनी खर्च के रूप में 85 प्रतिशत रकम उड़ा ले गयी है। उन्होंने कहा कि न्यायलय ने लिखा है, ‘‘ यहां खेत की मेड़ न केवल खेत की फसल खा रही थी बल्कि दूसरों को भी खिलवा रही थी। ’’ उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सत्ता में आने के बाद इस मामले को गंभीरता से लिया गया है और देश को लूट से बचाने की पूरी शिद्दत से कोशिश चल रही है। उन्होंने पुरानी द्विपक्षीय निवेश संधियों (बीआईटी) की समीक्षा करने और एक आदर्श बीटीए का प्रारूप तैयार किया है। इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेशी निवेशकों की जिम्मेदारी भी शामिल है जो पहले के बीआईटी में नहीं थी।
श्रीमती सीतारमण ने कहा कि कांग्रेस जब भी सत्ता में रहती है,सत्ता का दुरुपयोग करती है।
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने देवास को समाप्त करने की छूट दे दी। इससे पहले अंतरिक्ष कार्पोरेशन की अर्जी पर राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण ने जनवरी 2021 में कंपनी को कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 271 और 272 के तहत परिसमाप्त करने का आदेश दिया था। देवास ने उसे एनसीएलएटी में चुनौती दी थी लेकिन वह चुनौती वहां खारिज हो गयी थी। उसके बाद में देवास उच्चतम न्यायालय में आ गयी थी।
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