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मथुरा : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में विकास और सुशासन के दावे के साथ चुनावी रणक्षेत्र में उतरी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिये मथुरा वृन्दावन सीट पर भगवा लहराने के लिये कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा हैै।
यूं तो इस विधानसभा क्षेत्र से 15 प्रत्याशी चुनाव मैदान में है लेकिन असली टक्कर कांग्रेस के प्रदीप माथुर, भाजपा के श्रीकांत शर्मा, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के एस के शर्मा और समाजवादी पार्टी (सपा) के देवेन्द्र अग्रवाल के बीच में है। चूंकि देवेन्द्र अग्रवाल इस जिले के निवासी नही हैं इसलिए आज की तारीख में उनका स्थान त्रिकोणीय संघर्ष में भी नही आ रहा है तथा उन्हें काफी परिश्रम करना पड़ रहा है जबकि पूर्व के सपा/रालोद प्रत्याशी अशोक अग्रवाल दोनो चुनाव में सीधी चुनौती की स्थिति में रहे हैं। पहली बार के चुनाव मे तो वे जीतते जीतते हार गए थे जबकि दूसरी बार पराजय का अन्तर कुछ बढ़ गया था।
विधानसभा क्षेत्र में 4,58,405 मतदाता है जिनमें से 2,47,491 पुरूष एवं 2,10,816 महिलाएं है। इनमें से 5026 नये मतदाता है जो 18 वर्ष से कम आयु के हैं तथा 8411 मतदाता 80 वर्ष से अधिक आयु के है। मतदाताओं का यह वर्गीकरण भाजपा प्रत्याशी श्रीकांत शर्मा के काम एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस क्षेत्र को संवारने का मूल्यांकन करेगा। योगी अपने पांच साल के कार्यकाल में 19 बार मथुरा आए। बीसवीं बार वे आज मथुरा में दो चुनाव सभाओं को संबोधित करने आये हैं।
योगी ने इस क्षेत्र को संवारने के लिए न केवल तीर्थस्थल की घोषणा की बल्कि वृन्दावन कुंभ, जन्माष्टमी, होली को नया कलेवर देने का प्रयास किया तो श्रीकांत ने बिजली की अनवरत आपूर्ति कर, जवाहरबाग को नया कलेवर दिलाकर, मीठे पानी की व्यवस्था, मल्टी स्टोरीड कार पार्किंग, वृन्दावन की कुंज गलियों को नया कलेवर देने, ओपेन एयर थियेटर जैसे कई कार्य कराये।
कहा जाता है कि 99 दोस्त पर एक दुश्मन भारी पड़ता है। मथुरा की यमुना प्रदूषण की समस्या उक्त कार्यों पर भारी पड़ सकती है। बन्दरों की समस्या, महंगाई, बेरोजगारी , चैबिया पाड़ा क्षेत्र के मकानों के फटने जैसी कई समस्या ऐसी है जो ब्रजवासियों के जनजीवन से सीधी जुड़ी हुई है तथा भाजपा जब विरोध में थी तो इन्ही को प्रमुख मुद्दा बनाती रही है। पिछले पांच साल में केन्द्र और प्रदेश में भाजपा सरकारों के होने के बावजूद इस दिशा में कुछ न हुआ। नमामि गंगे योजना से यमुना प्रदूषण को जोड़ने का झुनझुना ब्रजवसियों को काफी समय तक पकड़ाया गया। नमामि गंगे परियोजना का प्रजेन्टेशन कर ब्रजवासियों को दम दिलासा दिलाई जाती रही पर यमुना मैली की मैली ही रह गई।आजादी के बाद यहां पर हुए विधानसभा के 17 चुनावों में से नौ कांग्रेस की झोली में रहे है जब कि भाजपा प्रत्याशियों ने इस सीट को पांच बार भाजपा की झोली में डाला है। कांग्रेस के प्रदीप माथुर इस सीट से चार बार विजयी रहे है जिनमें उनके विजय की एक हैट्रिक शामिल है। भाजपा की ओर से व्यापारी नेता रविकांत गर्ग एवं रासाचार्य रामस्वरूप शर्मा भी इस सीट से लगातार दो दो बार विजयी रहे हैं इस दृष्टि से भी भाजपा प्रत्याशी श्रीकांत के लिए इस सीट को भाजपा की झोली में डालना एक चुनौती है मथुरा विधान सभा का यह भी इतिहास रहा है कि इसने जाति पात और हिन्दू मुस्लिम को स्वीकार नही किया है। कायस्थ वोट की संख्या नाम मात्र होने के बावजूद प्रदीप माथुर यहां से चार बार विजयी रहे हैं। भगवान के वस्त्र, तोड़िया , साड़ी जैसे कई ऐसे व्यवसाय है जिन्हें दोनो वर्ग एक साथ मिलकर संभालते हैं इसलिए जातिगत ध्रुवीकरण की संभावना बहुत कम मालूम पड़ती है। इस सीट से देवीचरण शर्मा और कन्हैयालाल गुप्ता निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भी विजयी रहे हैं ।
जातिगत वर्गीकरण में मथुरा में सबसे अधिक संख्या ब्राह्मणों की है, उसके बाद वैश्य समाज की है। परंपरागत तरीके से ब्राह्मण कांग्रेस का समर्थक रहता है तथा वैश्य समाज भाजपा का समर्थक रहता है लेकिन लगभग एक पखवारे पहले एस के शर्मा के भाजपा छोड़कर बसपा में शामिल होकर प्रत्याशी बनने से समीकरण उलट पुलट गए हैं। ब्राह्मण मतदाताओं का विभाजन अवश्यमभावी है । और यह तीन भागों में बंट सकता है। अभी तक भाजपाई रहे एस के शर्मा भाजपा प्रत्याशी श्रीकांत शर्मा के मतों में भी सेंध लगा सकते हैं तथा उन्हें बसपा का परंपरागत वोट मिलना लगभग तय है।इसी प्रकार वैश्य वोटों का भी बटवारा होना लगभग इसलिए तै है कि एस के शर्मा अभी तक भाजपा की तह में घुसे हुए थे। चुनाव प्रचार के दौरान टूटी फूटी सड़क पर चलने के कारण कांग्रेस प्रत्याशी माथुर कुछ दिन पूर्व ही गिर गए थे जिससे उनके एक हाथ में ऐसा फ्रैक्चर है जिसे ठीक करने के पहले आपरेशन होगा। माथुर फ्रैक्चर होने के बावजूद जनता के पास जा रहे हैं उससे उनके प्रति यदि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरह सहानुभूति लहर चल गई तो उनका पलड़ा भारी हो सकता है। इसके विपरीत भाजपा ने श्रीकांत को विजयी बनाने के लिए अपनी ताकत झोंक दी है।
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