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इंसान चाहे उमर के जिस वी पड़ाव पर हो, डर सबको लगता है। किसी न किसी चीज से, डरते हम सभी हैं।
मैं वी सबसे कुछ अलग नहीं हूं, तो डरती मैं भी हूं, शायद थोड़ा ज्यादा ही। काई चीज़ें हैं जिनसे मुझे
डर लगता है, कई से उबर चुकी हूं तो कई पर काम आज भी जारी है। अपने उन्हीं डरों में से 1 डर से जुड़ा एक किस्सा आज आपको सुनाती हूं। यह तो नहीं कह सकती कि कहानी बहुत प्रेरणादायी होगी । शायद पढ़कर आपको हंसी भी आए। पर मुझे अच्छा लगेगा अपनी कहानी सुना कर ।
बात 2023 जनवरी की है, जी हां पिछले माहीने की ही। लेकिन पहले अपना परिचय दे दूं – जी , मैं प्रिया हूं। पेश से सी.ए .और किसी भी आम हिंदुस्तानी की तरह एक अमेरिकन एम.एन.सी.में अपने दिन को रात और रात को दिन बनाने में कर्मठ। बचपन से ही मेरा हँसता- खिलखिलाता चेहरा मेरी पहचान रही है। बचपन में बिना दांतों के और बड़ी होने पर टेढ़े- मेढ़े दांतों के साथ बात करना शौक है मेरा, चाहे जितनी करा लो, हमेशा तैयार मिलूंगी। मैं जितनी ज्यादा खुश मिजाज बच्ची उससे ज्यादा डरपोक बच्ची भी थी। मुझे लगता है ऐसा शायद ही कुछ बच्चा होगा जिससे मुझे डर न लगता हो।
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मेरे डरने की लिस्ट इतनी लंबी थी कि क्या बताऊं। और इस लिस्ट में शमिल थे – मेरे पापा, डॉक्टर, डॉक्टर से लगा -इंजेक्शन, भूत, बीमार होना, अकेले रहना, कुत्ते, गाएं, लिफ्ट पे चढ़ना, फ्लाइट में ट्रैवल करना और पता
नहीं क्या -क्या। और सच बताऊं तो यह लिस्ट कुछ हद तक आज वी मौजूद है। पर इस लिस्ट में सबसे ऊपर था
अंधेरा। जी हां मैं उन लोगों में से हूं जो आज भी अंधेरा होने पर मम्मी के पास भाग जाती है। इस उमर में ! और मेरी उमर क्या है? श्श्श बुरी बात ! लड़कियों से उनकी उम्र नहीं पूछते। बस इतना बताती हूं कि मैंने सी.ए .किया है। अब इस 2 से 5% परिणाम देने वाली परीक्षा में सफल होने में कितना समय लगता है यह जगजाहिर है। और मैंने भी कोई पहला प्रयास में यह परीक्षा पास नहीं किया है। ये भी एक अलग कहानी
है जो कभी और सुनूंगी। आज आप मेरी डर की दास्तान सुनिए।
तो बात ये है कि मुझे बचपन से ही अंधेरे से बहुत डर लगता था। लाइट चली जाए तो ज़ोर से रोनी लगती
थी, कोई साथ ना जाए तो अकेले शौचालय भी नहीं जाती थी, इतनी आती थी, कि कोई मेरी आंखों पर हाथ रख दे तो डर के मारे चिल्ला कर कान फेर देती थी। समय के साथ डर कम तो हुआ , पर आज तक खत्म न हो पाया था। चलो अब जनवरी 2023 की कहानी पर वापस लौटते हैं। मैं रांची में पली -बढ़ी । घर की कुछ परिस्थियों के कारण 2014 में दिल्ली आ गई थी। पर रांची हो या दिल्ली मैं हमेशा घर पर पूरी तरह परिवार के साथ ही रही थी। फिर 2022 अक्टूबर में एम.एन.सी. में काम करने की चाह मुझे गुड़गांव ले आई। अब उमर चाहे जो हो, रहना तो मुझे अकेले ही था। और मैं आपको फिर से याद
दिला दूँ कि ये अकेले रहना भी मेरे डर की लिस्ट में शामिल था, अब सवाल यह था कि अच्छी नौकरी या अकेले रहना का डर। क्या चुनूँ , क्या करूँ? फिर क्या, मेरे सी.ए. दिमाग ने बैलेंसशीट बनाई और नौकरी की सी.टी.सी. की प्रॉफिट की आकांक्षा मेरे अकेले रहने के डर के नुकसान पर भारी पड़ा और मैं अपना बोरिया बिस्तरा ले कर गुड़गांव पहुंच गई। अकेले
रहने से डर तो लग रहा था पर सच्चे सनातनी की तरह बजरंगबली की चालीसा पढ़ कर और ऑफिस के काम
से मैंने खुद को इतना व्यस्त कर लिया था कि देखते देखते अक्टूबर से जनवरी 2023 आ गई और मैं अपने
अकेलेपन के डर को थोड़ा थोड़ा जीत लिया था। मैं खुश थी। धीरे धीरे हौसला भी बंध रहा था और
आखिर में मैंने भी माउंटेन ड्यू पीकर अपने डर के आगे जीत है वाला पल सेलिब्रेट किया। पर कहानी
यहां खत्म नहीं होती है, मैंने कहा ना मेरे डर की लिस्ट थोड़ी ज्यादा ही लंबी है और अंधेरे से मेरा सामना अब तक हुआ ही नहीं था या ये कहूं कि मम्मी के बिना अंधेरे से मेरा सामना तो कभी नहीं हुआ था।
तो असली कहानी ये रही।
बात जनवरी 2023 की है। हर एम.एन.सी. के सच्चे कर्मचारी की तरह मैं भी अपने छोटे से स्टूडियो अपार्टमेंट
में अकेले बैठ कर, ध्यान दीजिएगा, मैं यानी प्रिया (खासा डरपोक) अकेले बैठकर, वर्क फ्रॉम होम का
लुत्फ़ उठा रही थी। शाम के 8.30 बजे 9 बजे होंगे, हांजी गुड़गांव के लिए यह शाम ही है, रात तो यहां 1 या 2
बजे होती है। शाम के समय में फिरंगियों के साथ हिंदुस्तानी जुगाड़ से फाइनेंस की एक गुत्थी सुलझाने
में उलझी थी, कि अचानक लाइट चली गई।
मैं जो अभी अभी अपने एक डर से जीती थी, लैपटॉप की रोशनी में काम करते हुए प्रकाश के आने का इंतजार करने लगी और अपने अवचेतन मन को बजरंगबली की चालीसा दुहराने का आदेश दे दिया। यहाँ बिजली बहुत कम जाती है, गुड़गांव में तो अंधेरे से मेरा सामना अब तक हुआ नहीं था । फिर वी उस शाम मैं लगी थी, अपने दूसरे डर से जीतने में कि तभी किचन की खिड़की पर एक परछाई दिखती है। मैंने सोचा की हमेशा की तरह मेरा डर मेरे सर पे हावी हो रहा है। फिर लगा
हावी हो रहा है तो क्या? अगर सही में परछाई हुई तो?? फिर मैंने खुद को अपनी उमर और अपनी पिछली जीत याद दिलाई और कहा मैं नहीं डरती परछाई से। इतने में वो परछाई फिर से दिखी। मैंने फिर उसको इग्नोर किया। फ़िर से दिखी, फ़िर इग्नोर किया । अब ये परछाई कभी इंसान तो कभी जानवर की परछाई में बदल रही थी, ऐसा कुछ पाँच-छ: बार हो चुका था और पता नहीं लाइट भी क्यों नहीं आ रही थी। डर का वो मंजर बना कि बजरंगबली के साथ पूरे 33 करोड़ देवी देवताओं का स्मरण मुझे एक साथ हो गया था। इसी बीच वो परछाई फिर दिखी और मैं जोर से चीखती हुई फ्लैट से बहार भागी। फिरंगियों को भी लगा होगा कि शायद गुड़गांव में भूकंप आ गया है। मैने भाग कर सीधा पड़ोसी का दरवाजा खटखटाया और दरवाजे पर मेरी ही
तरह एम एन.सी. के एक और कर्मयोगी को पाया। उनसे कहा कि मेरे बालकनी में कोई है। मेरे किचन की खिड़की पे एक परछाई बार- बार दिख रही है, जो कभी इंसान तो कभी जनवर सी लग रही है। अब मैं आपको 1 और बात बता दूँ कि सुंदर तो मैं हूं और डरी हुई सुंदर लड़की कि मदद करने से भारत का कोई लड़का कभी पीछे नई हटते । हंसी शायद यूँ भी आ रही होगी पर उसने एक झटके में खुद को शाहरुख खान साबित किया और कहा, चिंता मत करो मैम, मैं हूं ना ! मुझे लगा नकली शाहरुख? पर मेरे सी.ए.दिमाग ने फिर से बैलेंस
शीट बनाया और सोचा – अंधेरा + परछाईं इस नकली शाहरुख की ओवर एक्टिंग से महंगा है। सो झेल लो ।
इतने में नकली शाहरुख अपने बालकनी में जा कर, जो कि मेरे बालकनी की बिल्कुल सीधा में है, देखा और पूरी तलाशी करने पर कहा कि वहां तो कोई नहीं है। शायद कोई आस पास पेड़ हिला होगा और उसकी परछाई से मैं डर गई होउँगी । मैने वी खुद को तसल्ली दी और चैन की सांस ली। शाहरुख ने पानी दिया और पानी पीते हुए मुझे ध्यान आया ये तो कंक्रीट सिटी गुड़गांव-डीएलएफ है, यहां दूर तक पेड़ हैं कहां है?? अब क्या मेरी डर के लिस्ट की तीसरे तत्व की बारी थी ? भूूत ! ? मुझे लगा पक्का मैंने भूत देखा लिया है। मैंने नकली शाहरुख को भी बोला कि आस पास पड़ा है कहां जो हिलेगा ? अब मेरी और नकली शाहरुख दोनों के बैंड बज चुकी थी
हम दोनों ने भाग कर तीसरे पड़ोसी का दरवाजा खटखटाया और इतने में रोशनी आ गई। आआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह…
थोरी जान में जान आई। अब हम दोनों ने जैसे ही सारी बातें बताएं वो भाग कर मेरे फ्लैट में आया और
बालकनी का दरवाजा जो कि बिल्कुल किचन की खिड़की के बगल में है, खोल दिया और हम सबने देखा कि मेरी बालकनी में एक बंदर बड़े आराम से बैठकर रोटी खा रहा था जो कभी झुक रहा था तो कभी उठ रहा
था। उस बंदर को देख कर अब मेरी हंसी झुक गई थी। बाकी दोनो को छोड़ो, मैं खुद अपने आप पे जोर जोर
से हंस रही थी। हम सब को देख बंदर भी भाग चुका था। और सामने की बिल्डिंग में कोई छत पर
हांथो में टॉर्च लिए घूम घूम कर मोबाइल पर बात कर रहा था। जिसकी वजह से मुझे कभी इंसान की
तो कभी जानवार की परछाई नज़र आ रही थी। अब सारी कहानी मुझे समझ आ चुकी थी। शायद बिजली के आते ही मेरे दिमाग की बत्ती भी जल गई थी। मैने चैन की सांस ली, खुद पे हंसी और दोनो लड़कों को थैंक्स औरअलविदा बोला। आपको बता दूं से यह सब होने में कुल 10 से 15 मिनट लगे होंगे, पर ये देखकर 15 मिनट
मुझे जिंदगी भर हंसने और डर से रूलाने के लिए काफी हैं।
लो जी, ये रही मेरी डर वाली कहानी। तो क्या अब मैंने अंधेरे से डरती नहीं हूं? शायद थोड़ा। अब डरने से
पहले थोड़ा लॉजिक लगा लेती हूं। अकेले रहने वाले डर से पूरी तरह जीत चुकी हूं। भूत भी अब थोड़ा कम
डरता है और बाकी लिस्ट पर काम पूरी इच्छाओं से जारी है। तो बात सिर्फ इतनी है कि उमर चाहे जितनी भी
हो। इंसान अगर किसी चीज से डरता है तो नाप तोल के या उमर और सिचुएशन देख कर नहीं डरता। बस डर जाता है। डर सिर्फ बच्चों और औरतों की भावना नहीं है बालक इंसान की भावना है, इसे स्वीकार करिए। और शायद यही डर बताता है कि आपके अंदर का छोटा बच्चा आज वी जिंदा है। तो दोस्तों जी खोल कर डरिए। छिपाना क्यू? हम कलयुग के कर्मयोगी हैं, देवता तो है नहीं जो किसी से डर ही ना लगे। भोलेनाथ भी मां शक्ति से कभी कभी डर जाते तो हम और आप किस खेत की मूली हैं साहब….बस याद इतना रहे कि इस डर से जीत की कोशिश हमेशा जारी रहना चाहिए। और जीत जाने पर अपने माउंटेन ड्यू मोमेंट को जरूर सेलिब्रेट करें, खुद को शाबाशी दीजीए और अपने दुसरे डर के झूठ रियल शाहरुख बन कर खुद से जरूर कहिए कि सुनो, मैं हूं ना! चलती हूँ, अपनी दूसरी कहानी के साथ जल्दी ही दोबारा मिलती हूं। तब तक के लिए अपने आप से प्यार करते रहिए।
@ प्रिया सहाय
गुड़गांव , दिल्ली
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