आखिर ठगिनी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए नेताओं में मारामारी क्यों है ?
मौजूद समय मे राजनीति सबसे बड़ा व्यवसाय और सबसे बड़ा धंधा है
- Sponsored -
अखिलेश अखिल
- Sponsored -
- Sponsored -
पांच राज्यों में हो रहे चुनाव के बीच हर जगह से एक खबर खास कर आ रही है कि उस नेता की टिकट कट गई और उस नेता को टिकट दिया गया। खबर यह भी आती है कि कई नेता इस पार्टी से निकल गए और कई नेता इस पार्टी से जुड़ गए। आपने कभी सोंचा है कि पार्टी में रहते हुए जब कोई नेता गमछा बांधे और पार्टी का पट्टा लगाए किसी पार्टी का बखान करता है तो उसके पीछे भी कई तरह की बेईमानी छुपी रहती है। क्या आपने सोंचा है कि कोई भी आदमी अगर किसी पार्टी के प्रति वफादार है तो वह फिर तिआकत नहीं मिलने से पार्टी को क्यों छोड़ता है ? क्या आपने सोंचा है कि ये नेता रूपी जीव आखिर टिकट क्यों चाहते हैं ? इनके पास लाखों करोडो की राशि कहाँ से आती है और फिर जब चुनाव जीत जाते हैं तब क्या कुछ करते हैं ? राजनीति को आगे बढ़ाने के नाम पर दरअसल ठगी और लूट की कहानी को आगे बढ़ाई जाती है। जनता को भ्रमित किया जाता है।
यह हर कोई जानता है कि राजनीति चरित्रहीन है और यह ठगिनी भी। जो ठग होगा वह चरित्रहीन भी होगा। लेकिन बात इससे बन नहीं रही है। पैसे कमाने के चाहे बहुत से धंधे हों लेकिन पैसा और पवार का असली मजा तो राजनीति में ही है। समाज का जो सबसे बेकार आदमी होता है अचानक वह नेता बन जाता है और चुनाव भी जीत जाता है। उसके पास एक पार्टी का बैनर होता है और फिर जातीय खेल। जिसके पास जितना बड़ा जातीय समर्थन है उसकी राजनीति उसकी ही ऊंचाई पर है। उदहारण के राउर पर आप किसी भी नेता की कहानी को पढ़ सकते हैं।
बिहार समेत तमाम गोबरपट्टी राज्यों में नेतागिरी एक व्यवसाय है। कुछ लोगों को इकठ्ठा कीजिये और कही विरोध कर दीजिये। फिर अपनी जाती के लोगों की आवाज उठाइये और थाना से लेकर ब्लॉक स्तर पर पहुँच कर अधिकारियों से टूटी फूटी भाषा में भी अधिकार की बात कीजिये। एक समय के बाद आपकी आवाज उस थाने से लेकर ब्लॉक तह पहुँच जाएगी। अधिकारी आपकी बात पर अमल करेंगे। आप की कमाई यही से शुरू हो जाती है। अब आप दिन रात ब्लॉक और थाना दौड़ने लगते हैं और अपने समाज में आपकी पहुँच बढ़ जाती है।
पैसे कमाने का बड़ा धंधा
व्यवसाय और धंधा तो कई तरह के हैं लेकिन राजनीति से बड़ा धंधा कुछ भी नहीं। उदहारण के तौर पर देश के अधिकतर सांसदों और विधायकों से लेकर सरपंचो और मुखियाओं को परख सकते हैं। जब चुनाव लड़ने की बारी होती है तो ये लोग जनता के सामने भिक्षाटन करने से बाज नहीं आते। चुनाव में जीत जाने के बाद इनकी हैशियत अचानक बढ़ जाती है। फिर करोडो में खेलते हैं। पैदल चलने वाला आदमी सुरक्षा में चलता है। समाज में दबदबा बनाता है और योजनाओं की लूट करने से बाज नहीं आता। साल भर के भीतर ही इनकी आमदनी इतनी होती है कि ये टैक्स के दायरे में आ जाते हैं और पांच साल के बाद करोडो में खेलते नजर आते हैं। यह ऐसा धंधा है जिसमे पूरा परिवार मालामाल होता है। पैसे की कमाई के श्रोत इतने बढ़ जाते हैं जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। आजादी से पहले राजनीति समाजसेवा थी लेकिन आजादी के कुछ ही सालों के बाद यह धंधा हो गया। इस धंधे में पुरे परिवार की सुरक्षा है। बिना काम किये यह रोजगार है। खुद की पढ़ाई नहीं लेकिन जनता के लिए कानून बनाने का अधिकार इन्ही को मिला हुआ है।
वंशवाद जिंदाबाद
राजनीति वंशवाद को आगे बढ़ाने का सबसे सहज मार्ग है। बाकी बिजनेस में वंशवाद भले ही कामयाव नहीं हो लेकिन इस पेशे में वंशवाद खूब फलता फूलता है। पूर्ति देश की क्षेत्रीय पार्टियों को देख आइये और उसके खेल को समझिये तो आप भौंचक रह सकते हैं। देश का ऐसा कोई राज्य नहीं है जहां राजनीति में वंशवाद नहीं फलफूल रहा हो। बिहार की अधिकतर पार्टियां वंशवाद को ही बढ़ावा देती है। किसी भी नेता से पूछिए कि आपके पिता जी भी पार्टी को हाँक रहे थे और आप भी हाँक रहे हैं ,किसी और को हांकने क्यों नहीं देते ? जो जवाब मिलेगा उस पर आप नाराज भले ही न हों ,हंसी जरूर आएगी। महाराष्ट्र ,हरियाणा ,यूपी और दक्षिण के सभी राज्यों से लेकर उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक वंशवाद की जयकार है। कांग्रेस और बीजेपी समेत कोई भी पार्टी नहीं है जो वंशवाद से अछूती है। इसलिए एक बार अगर इस पेशे से जुड़ गए तो पौ बारह।
बिना पूँजी का रोजगार
राजनीति बिना पूंजी का रोजगार है। यह ऐसा खेल है जिसमे जनता की कमाई को पहले लुटा जाता है और फिर जनता के बीच ही बांटने की कोशिश की जाती है। पहले योजना को लूटो ,ब्लैक मेल करो ,तस्करी ,चोरी ,ठगी और बेईमानी से पैसे कमाओ और फिर नेता बनकर राज करो। देश के कई नेता भी अक्सर कहते हैं कि राजनीति में आने के लिए अब पूंजी की जरूरत भले ही न हो लेकिन अपने घर को पहले सुरक्षित करने की जरूरत है। पैसे चाहे जिस भी तरह से लुटे गए हो ,पहले अपने परिवार को सुरक्षित करो और फिर नेतागिरी की शुरुआत करो।
मौजूदा समय में हर लोग जान गए हैं कि राजनीति के जरिये ही सबकुछ चलता है और राजनीति ही समाज ,देश और आम आदमी को प्रभावित करता है तो उसके खेल कितने प्रभावी होंगे इसे कहने की जरूरत नहीं है।
- Sponsored -
Comments are closed.