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JYOTIRLING 1

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

ज्योतिर्लिंग या ज्योतिर्लिंगम भगवान शिव का एक भक्तिपूर्ण प्रतीक है। ज्योति का अर्थ प्रकाश या चमक और लिंग का अर्थ चिन्ह या प्रतीक होता है। ज्योतिर्लिंग भगवान शिव का उज्ज्वल प्रतीक है। शिव महापुराण के अनुसार, भारत और नेपाल में 64 मूल ज्योतिर्लिंग मंदिर हैं, जिनमें से 12 श्रेष्ठ और पवित्र माने जाते हैं, और उन्हें महा ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। ये 12 ज्योतिर्लिंग भारत में हिमालय से उत्तर से रामेश्वरम तक विक्षिप्त हैं। 12 ज्योतिर्लिंग तीर्थयात्रा स्थानों की पहचान स्थान की पहचान स्थापित करते हैं।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर भारत में पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह मंदिर चालुक्य वास्तुशैली में बना हुआ है। यह मंदिर भारत के पश्चिमी कोने में कठियाद जिले के वेरावल के पास अरब सागर के तट पर बना हुआ है। यह भारत के सभी ज्योतिर्लिंग मंदिरों में सर्वोच्च पवित्र माना जाता है।

लाखों भक्त वर्ष भर में इस मंदिर का दर्शन करते हैं, खासकर महाशिवरात्रि के अवसर पर। कहा जाता है कि सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर को चंद्रमा (सोमनाथ) ने शुद्ध सोने से बनवाया था। इसके बाद रावण ने इसे चाँदी से सुधारा। इसके बाद इसे कृष्ण ने संदल वृक्ष से बनवाया और अंततः भीमदेव ने पत्थर से बनवाया। मंदिर को वर्ष 1947 में सरदार वल्लभभाई पटेल के आदेश पर मर्यादित किया गया था और उस समय के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने ज्योतिर्लिंग स्थापित किया था।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर दक्षिणी भारत के आंध्र प्रदेश के दक्षिणी भाग में कृष्णा नदी के किनारे स्थित है। मंदिर को श्री भ्रमराम्बा ज्योतिर्लिंग मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। शिव पुराण के अनुसार, मल्लिकार्जुन भगवान शिव और पार्वती दोनों का संयुक्त स्वरूप है। शब्द ‘मल्लिका’ देवी पार्वती का परिचय कराता है और ‘अर्जुन’ भगवान शिव का बताता है।

मल्लिकार्जुन 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मंदिर का निर्माण 1234 ईसा पूर्व के आस-पास हुआ था, जिसे होयसल राजा वीर नरसिंह ने बनवाया था। यह मंदिर द्रविड़ी वास्तुशैली में बनाया गया है। मंदिर की सुंदर वास्तुकला वाली चवदीदार स्तंभों से सजी हुई है। मंदिर का कॉम्प्लेक्स 2 हेक्टेयर के भू-भाग पर फैला हुआ है और उसमें चार दरवाजे, जिन्हें गोपुरम कहा जाता है, हैं। मंदिर का कॉम्प्लेक्स में कई हॉल्स भी हैं और सबसे अधिक ध्यान देने योग्य हॉल मुख मंडप है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर को भारत के पश्चिमी क्षेत्र का नागर वास्तुकला पैटर्न अनुसरण किया जाता है, जो मराठी वास्तुकला के साथ संबंधित है। इसके बाहरी दीवारें शिव लीला, कृष्ण लीला, रामायण और महाभारत के स्कीन्स से सजी हैं। हर साल महाशिवरात्रि के अवसर पर लाखों भक्त यहां आते हैं। मल्लिकार्जुन मंदिर आस-पास के गांवों की आयातित चिकित्सा पद्धतियों के लिए भी प्रसिद्ध है, जिसमें लोग विशेष रूप से सावन मास और नागपंचमी पर आते हैं।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को 1947 ईसवी में सरदार वल्लभभाई पटेल के आदेश पर मर्यादित किया गया था और उस समय के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने ज्योतिर्लिंग स्थापित किया था।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर उज्जैन, मध्य प्रदेश में घने महाकाल वन में शिप्रा नदी के किनारे स्थित है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत के सात मोक्ष स्थलों में से एक भी है। वह स्थान जिससे आदमी को अनन्तकाल के लिए मुक्ति प्राप्त हो सकती है। केंद्रीय भारत के लोकप्रिय ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर मंदिर 5 वर्षीय लड़के श्रीकर ने उज्जैन के राजा चंद्रसेन की भक्ति से प्रेरित होकर स्थापित किया था।

मंदिर में केवल स्वयं प्रकट ज्योतिर्लिंग है, जिसमें शुद्ध ऊर्जा होती है। महाकाल शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, महा (भगवान शिव का गुण) और काल (समय)। भगवान शिव की गुणवत्ता को समय से बड़ा माना जाता है और अविनाशी होने के नियम को भी समय प्रभावित नहीं करता। इस मंदिर की मुख्य आकर्षण भस्म आरती है, जो सुबह के पहले रीतीवाज़ की जाती है, जिसमें शिवलिंग को चिता से उठी राख से नहलाया जाता है। विश्व भर से लाखों भक्त खासकर सावन मास और नागपंचमी के अवसर पर इस मंदिर का दर्शन करने आते हैं।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को 1947 ईसवी में सरदार वल्लभभाई पटेल के आदेश पर मर्यादित किया गया था और उस समय के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने ज्योतिर्लिंग स्थापित किया था।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर 12 ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है और यह मध्य प्रदेश के नर्मदा नदी में शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है। ओंकारेश्वर मंदिर एक सुंदर तिन मंजिला निर्माण है जो शिलाकृत ग्रेनाइट पत्थर से बना है। लोग मानते हैं कि एक समय की बात है देवता और दानवों के बीच युद्ध हुआ था और देवता ने भगवान शिव से विजय प्राप्त करने के लिए प्रार्थना की थी। भगवान शिव ने प्रार्थना की पूर्ति करते हुए ओंकारेश्वर के रूप में प्रकट होकर देवता की मदद की। उन्होंने देवताओं की विजय प्राप्त करने में सहायता की।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर को भारत के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित एक नर्मदा नदी की द्वीप (शिवपुरी) पर स्थान की पहचान स्थापित करते हैं। ओंकारेश्वर मंदिर तीन मंजिला निर्माण है, जिसमें सुंदर शिलाकृत ग्रेनाइट पत्थर से बनी खिलौने वाले पिलर्स हैं। मंदिर के परिसर में कई द्वारिकाओं (गोपुरम) के शोभायात्रा के लिए माना जाता है। ओंकारेश्वर मंदिर में कई हॉल्स भी हैं और सबसे अधिक ध्यान देने योग्य हॉल मुख मंडप है। मंदिर के परिसर में एक बड़ी बागीचा भी है, जिसमें भगवान शिव के 25 मीटर ऊँचे मूर्ति और नीली अरब सागर का खुला नज़ारा है, जिससे भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित किया जाता है। मंदिर का निर्माण तिरंबकेश्वर मंदिर को संबोधित करते हुए नागर वास्तुकला पैटर्न में किया गया है, जो मराठी वास्तुकला से संबंधित है। इसके बाहरी दीवारें शिव लीला, कृष्ण लीला, रामायण और महाभारत के स्कीन्स से सजी हैं। लाखों भक्त महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां आते हैं। ओंकारेश्वर मंदिर में मंदिर के पास स्थित कमलजा मंदिर का भी दर्शन किया जाता है – पार्वती का एक अवतार। यह भारत में सबसे लोकप्रिय ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर को 1947 ईसवी में सरदार वल्लभभाई पटेल के आदेश पर मर्यादित किया गया था और उस समय के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने ज्योतिर्लिंग स्थापित किया था।

बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर को वैद्यनाथ या बैज्ञाथ भी जाना जाता है। यह झारखंड के सांताल परगना क्षेत्र में स्थित है। बाबा बैद्यनाथ मंदिर भारत में सबसे प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे बाबाधाम भी जाना जाता है। बैद्यनाथ धाम भारत के 51 शक्तिपीठों में से भी महत्वपूर्ण है। मंदिर का कॉम्प्लेक्स बाबा बैद्यनाथ के मुख्य मंदिर और 21 अन्य मंदिर समेत है।

बैद्यनाथ मंदिर को सन् 1596 में राजा पुराण मल ने पुनः बनवाया था, जो गिद्दौर के महाराजा के पूर्वज थे। मंदिर में कुल 22 मंदिर हैं। मंदिर के कॉम्प्लेक्स में बाबा मंदिर भी है, जो मंदिर के केंद्र में स्थित है। लाखों भक्त हर साल श्रावण मेले के दौरान बाबा बैद्यनाथ मंदिर में आते हैं। मंदिर से 105 किमी दूर सुलतानगंज, उत्तर वाहिनी गंगा, गंगाजल इस बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को कंवर लेकर आते हैं और इसे अपनी कंधे पर रखकर बाबा बैद्यनाथ तक गंगाजल को अर्पित करने के लिए देवघर आते हैं।

बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को 1947 ईसवी में सरदार वल्लभभाई पटेल के आदेश पर मर्यादित किया गया था और उस समय के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने ज्योतिर्लिंग स्थापित किया था।

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मंदिर पुणे, महाराष्ट्र के सह्याद्री क्षेत्र में स्थित है। यह भीमा नदी के किनारे स्थित है और इसे इस नदी का स्रोत माना जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र के अनुसार, भीमाशंकर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में छठा ज्योतिर्लिंग है। भीमाशंकर मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में नाना फड़निस ने किया था।

मंदिर राजस्थानी और गुजराती प्रभाव के साथ नगर वास्तुशैली का अनुसरण करता है, जो मराठी वास्तुकला से संबंधित है। इसके बाहरी दीवारें शिव लीला, कृष्ण लीला, रामायण और महाभारत के स्कीन्स से सजी हुई हैं। हजारों भक्त महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां आते हैं। भीमाशंकर मंदिर के निकट स्थित कमलाजा मंदिर (पार्वती का एक अवतार) का भी दर्शन किया जाता है। यह भारत में सबसे प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को 1947 ईसवी में सरदार वल्लभभाई पटेल के आदेश पर मर्यादित किया गया था और उस समय के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने ज्योतिर्लिंग स्थापित किया था।

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर रामेश्वरम द्वीप, तमिलनाडु के सेतु कोस्ट में स्थित है, जिसमें से 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे ज्यादा ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मंदिर को समुद्र से घिरा हुआ है और इसकी सुंदर वास्तुकला और सजीविकृत कोरीडोरें देखने लायक हैं। मंदिर में भारत के सभी हिंदू मंदिरों में सबसे लंबी कोरीडोर है। रामेश्वरम द्वीप में 64 पवित्र यात्रा स्थल हैं, जिनमें से 24 महत्वपूर्ण हैं, और मंदिर के भीतर 22 मंदिर हैं। यह ज्योतिर्लिंग रामायण की विजय और राम की श्रीलंका से वापसी से जुड़ा हुआ है।

मंदिर का निर्माण पांड्य राजवंश ने 12वीं शताब्दी में किया था और उसके मुख्य मंदिर के गर्भगृह का पुनर्निर्माण जयवीर सिंगारियन और उसके उत्तराधिकारी गुणवीर सिंगारियन ने जाफना राज्य के जनपद के पांड्य वंशियों ने किया था। रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग, दक्षिण भारत का वाराणसी भी माना जाता है। यह हिंदू धर्म के चार धामों में से एक भी है।

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग को 1947 ईसवी में सरदार वल्लभभाई पटेल के आदेश पर मर्यादित किया गया था और उस समय के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने ज्योतिर्लिंग स्थापित किया था।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, जिसे नग्नाथ मंदिर भी जाना जाता है, गुजरात के सौराष्ट्र के बीत द्वारका और बैत द्वारका द्वीप के बीच के रास्ते पर गोमती नदी के किनारे स्थित है। मंदिर गुलाबी पत्थरों से बना है और उसकी मूर्ति दक्षिणामूर्ति है। मंदिर का निर्माण तिरंबकेश्वर मंदिर की तरह नागर वास्तुकला पैटर्न में किया गया है, जो मराठी वास्तुकला से संबंधित है। मंदिर का बाहरी भव्य नग्नाथ मंदिर का नगर वास्तुशैली से निर्माण किया गया है और मंदिर के समुद्र तट की अद्भुत विशालता को देखने लायक है। इसके आलीशान आकर्षक मंदिर की स्थानकर्ता हुई दूर होती है। मंदिर का निर्माण की तारीख अज्ञात है, लेकिन मंदिर का वर्तमान पुनर्निर्माण 1996 में लेट गुलशन कुमार ने किया था। प्रति वर्ष लाखों तीर्थयात्रियों को भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यहां यात्रा करते हैं। जो नाग देवता के रूप में यहां पूजा की जाती है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत में सबसे शक्तिशाली ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो सभी प्रकार के विष से सुरक्षा का प्रतीक है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को 1947 ईसवी में सरदार वल्लभभाई पटेल के आदेश पर मर्यादित किया गया था और उस समय के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने ज्योतिर्लिंग स्थापित किया था।

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर विश्व की सबसे पवित्र धरोहरों में से एक, वाराणसी शहर के घने सड़कों में बीच में स्थित है। इसका वर्तमान ढांचा मराठा शासक महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा 1780 ईसवी में बनवाया गया था। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से इस मंदिर के समीप की जमीनों पर अतिक्रमण हटा दिया गया है ताकि 2021 में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बना सके। मंदिर के मिनारें पर सोने की परत होती है, जिस पर सोने की छतरी है। मकर संक्रांति, कार्तिक पूर्णिमा, शिवरात्रि, महाशिवरात्रि, देव दीवाली और अन्नकूट के त्योहारों के दौरान लाखों तीर्थयात्रियों का काशी में आना होता है।

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग को 1947 ईसवी में सरदार वल्लभभाई पटेल के आदेश पर मर्यादित किया गया था और उस समय के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने ज्योतिर्लिंग स्थापित किया था।

त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग

त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर महाराष्ट्र के नाशिक के निकट ब्रह्मागिरी पर्वत के पास, गोदावरी नदी के किनारे स्थित है। मंदिर के कुसावर्त कुंड (पवित्र सरोवर) का निर्माण श्रीमंत सरदार राव साहेब परणेकर ने किया था, जो इंदौर राज्य के फ़दनवीस थे। यह गोदावरी नदी का स्रोत माना जाता है और यह दक्षिणामूर्ति ज्योतिर्लिंग बाराहमास उत्सव का एक महत्वपूर्ण स्थान है। त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग का आकर अनूठा है। यह भारत में सभी 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे अनोखा है, क्योंकि यह तीन चेहरों वाला है, जो भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, और भगवान रुद्र को प्रतिनिधित करता है।

त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग को 1947 ईसवी में सरदार वल्लभभाई पटेल के आदेश पर मर्यादित किया गया था और उस समय के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने ज्योतिर्लिंग स्थापित किया था।

इन ज्योतिर्लिंगों की यात्रा करना हिंदू धर्म के लिए एक विशेष और पवित्र अनुभव माना जाता है, और इन जगहों पर हर साल लाखों भक्त आते हैं शिवजी की कृपा और आशीर्वाद के लिए। ये ज्योतिर्लिंग भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा का अभिन्न हिस्सा हैं और हमारे देश में विश्वास की और आत्मनिर्भर भारत की एकता को दर्शाते हैं।

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