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संकट की कसौटी पर नाकामी का नेतृत्व

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क्षमा शर्मा
पिछले चुनावों में जिस नेता को आपने वोट दिया था, चुनाव जिताया था, सत्ता के सुख भोगने के मौके दिए थे, इन दिनों वह श्रीमान जी कहां हैं। वे जो हाथ जोड़े, दरवाजे-दरवाजे आए थे, किसी वृद्धा के पांव छुए थे, किसी बच्चे को गोद में लेकर दुलारा था, कहीं सड़क, कहीं पानी, कहीं अस्पताल, कहीं स्कूल, कहीं बेटी का विवाह तो कहीं बुजुर्गों की मदद जैसे वायदे किए थे, वे वादे तो पूरे नहीं ही हुए होंगे, क्योंकि चुनावी वादे परिणाम आते ही हवा में उड़ जाते हैं। जो पूरे हुए होंगे, वे किस भाई-भतीजा, पत्नी, ससुराल की भेंट चढ़े होंगे, कौन जाने। क्या आम आदमी एक वोट भर है कि वोट मांगते वक्त उसे ईश्वर बताया जाए और वोट मिलते ही इसलिए भुला दिया जाए कि अगले पांच साल बाद ही तो आना है इसके सामने । तब की तब देखी जाएगी।सुख में सुमिरन सब करें, दुख में करे न कोय वाला हिसाब चारों ओर दिख रहा है। कहते तो ये हैं कि सुख के समय चाहे अकेले-अकेले रह लें, मगर दुख के समय जरूर इकट्ठे हों, जिससे कि दुख साझा किया जा सके, मिलकर उसका भार उठाया जा सके। लेकिन इस महामारी के वक्त जब न अपने परिजन आसपास हैं, हैं भी तो बीमारी का डर और डर इतना ज्यादा है कि बाहर निकलना तो दूर, फोन पर बात करने से भी कतरा रहे हैं। ऐसे में वे नेता जो इस देश का मालिक खुद को समझते हैं, उनका कुछ अता-पता नहीं है। वोटों के प्रतिशत और संख्या गिनने वालों ने लोगों को अकेला छोड़ दिया है। क्या इतने अकेले हम पहले कभी थे। जिन नेताओं ने स्वर्ग के सपने दिखाए थे, उन्होंने नर्क की ओर धकेल दिया है। इन नेताओं की सारी आवाजें कहां खो गईं। लोगों के भले के लिए रात-दिन दुबले हुए जाते थे। जैसे ही देश की जनता सचमुच की आफत में आई, ये लापता हो गए।बस वीडियो जारी कर-करके बयानवीर बने हुए हैं, जैसे कि इनके बयानों से लोगों को अस्पताल में बेड मिल सकता है। आक्सीजन मिल सकती है। दवाएं कालेबाजार में नहीं, सही दामों पर प्राप्त की जा सकती हैं। एक वीडियो जारी किया और घर में सुरक्षित हो गए। क्योंकि अगर बीमार पड़े भी तो बड़े-बड़े अस्पतालों में हर सुविधा से सुसज्जित बिस्तर तैयार मिलेंगे। आखिर जिनके कंधों पर देश की जिम्मेदारी है, उन्हें आम लोगों से पहले तो सारी सुविधाएं देनी ही पड़ेंगी, वरना बताइए देश कैसे बचेगा।यही नहीं जब देश इतनी मुसीबत में है, उन दिनों भी राजनीतिक दलों को चुनाव जीतने की पड़ी है। वाक‍् युद्ध में किसने किसको पछाड़ा, इस बात के लिए एक-दूसरे की पीठ थपथपाई जा रही है। चुनावी रैलियों में लाखों की भीड़ इकट्ठी की गई, फिर उसे अपना समर्थक बताकर अपना ही गुणगान किया गया, पीठ थपथपाई गई और आज हालत यह है कि उन जगहों पर भारी संख्या में लोग कोविड पॉजिटिव पाए गए हैं। जिन लोगों को इकट्ठा किया, नारे लगवाए, रोड शो में शामिल किया, अब जब उनकी जान पर बन आएगी तो कौन-सा नेता उन्हें बचाने जाएगा। शायद कोई नहीं। इतनी नृशंसता की उम्मीद क्या आपने अपने नेताओं से की थी। लोग कराह रहे हैं, तड़प रहे हैं और नेता आज भी एक-दूसरे को परास्त करने की होड़ में लगे हैं। क्या ये सब नेता इस मुश्किल वक्त में इकट्ठे नहीं हो सकते थे। लोगों की मुसीबतों पर जबानी जमा-खर्च करने के मुकाबले वैसी ही हाड़-तोड़ मेहनत नहीं कर सकते थे जो चुनाव जीतने के वक्त करते हैं। और यदि वे ऐसा नहीं कर सकते तो हमारे संसाधनों पर पलने वाले ये नेता हमें क्यों चाहिए। देश को लूटकर जनसेवक बनने का इनका नकाब उतारकर फेंक देना चाहिए। हद तो यह है कि इस आफत में जहां लोग हर तरह की सुविधा और सहायता के अभाव में दम तोड़ रहे हैं, वहां पक्ष-विपक्ष के नेता कभी किसानों के नाम पर, कभी मजदूरों के नाम पर, कभी किसी नेता के नाम पर लोगों को भड़काने में लगे हैं। हाल ही में कांग्रेस के एक बड़े नेता ने कहा कि लोग सड़क पर उतरकर विद्रोह कर दें और लोगों को मूर्ख बनाने वाली सरकार को उखाड़कर फेंक दें। लोग सड़क पर उतरें और अपने घर तक कोरोना ले जाएं, फिर अपनी और परिवार के साथ जान गंवा दें। और तुम सिर्फ किसी पांच-सात सितारा होटल में बैठकर लोगों को सड़क पर उतारने का आह्वान करते रहो। मगर क्या कहें कि शर्म इनको नहीं आती।लोग अपने नेता और विधायक को भगवान मानते हैं, मगर इन भगवानों ने लोगों को सबसे ज्यादा धोखा दिया है। लोग जाएं तो जाएं कहां। हर तरह के शिकंजे में फंसे हैं। किस तरह अपने को तरह-तरह के माफिया से बचाएं। आपदा में अवसर तलाश कर कभी नकली दवा तो कभी खाली आक्सीजन सिलेंडर तो कभी श्मशान में एक दाह संस्कार करने के लिए पचीस-तीस हजार मांगने वालों यानी कि हर तरह से लूटने वालों से बचें। क्या इसी महान संस्कृति पर हम इतराते हैं। इसी को विश्व गुरु बनना कहते हैं। अरे मत बनो विश्व गुरु, एक परेशान को जरा-सा सहारा ही दे दीजिए, क्या पता उसकी जान बच जाए। दवा की तलाश में भटकते किसी परेशान को सही पता ही बता दीजिए कि कहां उसे सही दवा मिल जाएगी, न नकली मिलेगी, न खाली हाथ लौटना पड़ेगा।सारी स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई हैं, मगर नेता कह रहे हैं कि सब ठीक है। इस तरह की झूठी आशा देकर लोगों को भुलावे में रखकर क्या सचमुच उनकी मदद की जा सकती है। जिस भगवान के दरवाजे रात-दिन नाक रगड़ते हो, वह भी तुम्हें माफ नहीं करेगा। कहते हैं कि कोई भी दुख मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं है, मगर मनुष्य साहस भी तो तभी लाएगा, जब उसे कोई हौसला देने वाला होगा।ऐसा लगता है कि लोगों को कोरोना से लड़ने के लिए अकेला छोड़ दिया गया है। बिना किसी परमाणु हमले के कोरोना बम ने दुनिया को तहस-नहस कर दिया है। क्या अब भी लोग सबक लेंगे और सोचेंगे कि लोकतंत्र की चाबी जिनको सौंपी है, क्या वे इसके काबिल हैं।

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