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डॉ. जगत राम, डॉ. राकेश कुमार कोछड़
भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर ने फिलहाल कोहराम मचा रखा है। वैश्विक दैनिक पॉजिटिव मामलों का लगभग आधा और मृत्यु दर का एक-चौथाई हिस्सा केवल भारत में दर्ज हो रहा है। फिक्र यह कि परीक्षणों में पॉजिटिव दर लगभग 20 फीसदी आ रही है, कुछेक राज्यों में तो यह करीबन 30 प्रतिशत तक है। दूसरी लहर पहली वाली के मुकाबले ज्यादा आक्रामक है, क्योंकि तब एक दिन में आए पॉजिटिव मामलों की संख्या ज्यादा-से-ज्यादा 97000 से कुछ अधिक दर्ज की गई थी।पिछले साल जनवरी माह से शुरू हुई वैश्विक महामारी के बाद अनेक देश तो कई लहरें भुगत चुके हैं। अमेरिका में दो लहरें पिछले साल अप्रैल और जुलाई में तो एक जनवरी 2021 में आई थी, तीसरी सबसे घातक रही। इंग्लैंड में भी दो, गत वर्ष अप्रैल और अक्तूबर-नवंबर में तो एक इस साल जनवरी में आई थी, यहां भी आखिरी वाली अधिक मारक थी।वायरस प्रवृत्ति अपनी जैविक संरचना में लगातार बदलाव करके कई म्यूटेशन (रूपांतर) और किस्में बनाता रहता है। इससे अधिक संक्रमण दर, तीव्रता और दवा की प्रभावशीलता घटने का खतरा पैदा हो जाता है। अमेरिका का छूत रोग नियंत्रण विभाग (सीडीसी) वायरस के रूपांतरों को तीन मुख्य श्रेणियों में रखता है। ये वेरिंयट आॅफ इंट्रैस्ट, वेरिएंट आॅफ कंसर्न, वेरिएंट आॅफ हाई कोंसिक्वेंसेस हैं। कोविड-19 के जिन रूपांतरों की शिनाख्त अब तक हो चुकी है: बी.1.1.7 (अमेरिका), बी.1.3.351 (दक्षिण अफ्रीका), पी.1 (ब्राजील) और बी.1.427 और बी.1.429 (केलिफोर्निया)। इंडियन सार्स-कोव-2 जीनोमिक कंसोर्टियम ने अपने अध्ययन में पाया है कि भारत में दो चिंताजनक रूपांतरों के घालमेल से एक नया दोहरे रूपांतर वाला वायरस बन चुका है, इसके मां-बाप में एक वह है, जिसकी शिनाख्त पहली बार केलिफोर्निया में हुई थी तो दूसरे वाला दक्षिण अफ्रीका एवं ब्राजील में मिला है। अमेरिकी संस्थान ने भारतीय संस्करण को बी.1.617 नाम देते हुए ह्यचिंताजनक श्रेणीह्ण में रखा है, आगे इसके 3 उप-रूपांतर हैं। पंजाब में यूके वाला, महाराष्ट्र-कर्नाटक में दोहरा भारतीय रूपांतर चला हुआ है तो तेलंगाना में दक्षिण अफ्रीका वाली किस्म ज्यादा व्याप्त है। अब डर यह है कि कहीं नए रूपांतर पर टीके का असर विशेष न हो पाए। परंतु, गनीमत है कि उपलब्ध वैक्सीन अब तक पहचाने गए रूपांतरों पर भी प्रभावशील पाई गई है।प्रभावित लोगों का इलाज सतत प्रयासों से करते हुए और ठीक इसी वक्त आबादी के लगभग 60-70 हिस्से का टीकाकरण करके बीमारी और संक्रमण कड़ी को भंग करना होगा। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने हाल ही में बीमारी को तीव्रता के मुताबिक निम्न, मध्यम और उच्च श्रेणी में बांटकर तदनुसार इलाज के दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इनमें साफ परिभाषित है कि कम लक्षणों वाले मरीज को घर में एकांतवास से ठीक किया जाए, और जब ब्लड आॅक्सीजन लेवल 94 प्रतिशत से नीचे जाए तभी डॉक्टरी सलाह की जरूरत है। उपचार के विभिन्न अवयव जैसे कि आॅक्सीजन लगाना और रेमडेसिविर जैसी दवा का प्रयोग कब करना है, इसे एकदम स्पष्ट रेखांकित किया गया है। अगर उपचार लीक का सख्ती से पालन किया जाए तो हम अपने सीमित संसाधनों से भी उत्तम परिणाम प्राप्त कर सकते हैं और ठीक होने वाले मरीजों का प्रतिशत सुधार पाएंगे। उपचार संहिता की सही संहिता की जानकारी, खासकर छोटे अस्पतालों के चिकित्सकों तक पहुंचाने की फौरी जरूरत है। ठीक इसी समय यह जागृति बनाई जाए कि मरीज अनावश्यक घबराएं नहीं या घर में दवा-आक्सीजन की जमाखोरी न करें।कोरोना की रोकथाम में कोविड रोधक उपाय (मास्क, निजी साफ-सफाई, सामाजिक दूरी) के अलावा सबसे कारगर हथियार टीकाकरण है। स्पैनिश फ्लू महामारी ने दुनिया भर में लंबे समय तक कोहराम मचाए रखा था क्योंकि उस वक्त कोई प्रभावी इलाज या टीका उपलब्ध नहीं था। आज हमारे पास कोविड-19 के लिए कई किस्म की वैक्सीन हैं जिनमें प्रत्येक की प्रभावशीलता 80 से 95 फीसदी के बीच है। दुनियाभर से प्राप्त अनुभव बताता है कि व्यापारिक, आर्थिक और पर्यटन गतिविधियां सामान्य हो पाएं, इसके लिए व्यापक टीकाकरण ही एकमात्र कारगर उपाय है। द लांसेट नामक पत्रिका में इस्राइल से आए एक ताजा लेख में बताया गया है कि फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन की दोनों खुराकें लगने के बाद व्यक्ति की कोविड-19 से संक्रमण, अस्पताल भर्ती, मृत्यु संभावना में 95 प्रतिशत से अधिक कमी पाई गई है। यह वैक्सीन की प्रभावशीलता का ही असर है कि अमेरिका, इंग्लैंड, इस्राइल और कई यूरोपियन में जनजीवन फिर से सामान्य होने लगा है।दरअसल, दूसरा टीका लगने के बाद वैक्सीन की पूरी प्रभावशीलता बनने में कम-से-कम दो सप्ताह लगते हैं। तथापि कुछ लोग पहला टीका लगने के बाद अपना सावधानी स्तर घटा देते हैं।सांख्यिकी अध्ययनों के मुताबिक कयास है कि मई के मध्य में भारत में कोरोना की दूसरी लहर सबसे ज्यादा उफान पर रहेगी, उम्मीद करें इसके बाद यह घटने लगेगी। तथापि तीसरी लहर की संभावना पर्याप्त टीकाकरण के बूते बनी सामूहिक-प्रतिरोधकता प्राप्त होने तक सिर पर लटकती रहेगी। लिहाजा हमें व्यक्ति-से-व्यक्ति संक्रमण हस्तांतरण रोकने हेतु उचित सामाजिक दूरी बनाना और मास्क लगाना लाजिमी करना होगा। यूएस सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल ने अपनी 19 फरवरी, 2021 की मोरबिडिटी एंड मोर्टेलिटी वीकली रिपोर्ट में बताया है कि एकल तह के मुकाबले दोहरी तह वाले मास्क ज्यादा कारगर हैं। यहां ध्यान रखा जाए कि कपड़े वाले मास्क को लगातार धोया जाए और सर्जिकल एवं एन-95 मास्क को प्रत्येक इस्तेमाल के बाद दुबारा उपयोग न किया जाए। ढीला-ढीला रूमाल बांधना या साफा लगाना मास्क का विकल्प कतई नहीं है। सावधानी और वैक्सीन से संभावित तीसरी लहर की तीव्रता को कम करने में सहायता भी मिलेगी।
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