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रघुवर बने महामहिम ,मरांडी को मिला खुला मैदान !

क्या रघुवर दास की राजनीतिक पारी समाप्त हो गई ?

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अखिलेश अखिल
झारखंड में बीजेपी की अगली राजनीति किस करवट बैठेगी यह कोई नहीं जानता लेकिन जिस तरह से अचानक बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को ओडिशा का राज्यपाल बनाया गया है इसके कई संकेत मिल रहे हैं। रघुवर दास को राज्यपाल बनाकर बीजेपी ने पहला संकेत तो यही दिया है कि अब उनकी राजनीतिक पारी ख़त्म हो गई है। अब झारखंड की राजनीति से वे अलग हो गए है। पार्टी ने दूसरा संकेत यह दिया है कि अब राज्य में खुलकर बाबूलाल  मरांडी पार्टी को आगे बढ़ाएंगे और खुलकर सत्तारूढ़ पार्टी झामुमों पर हमला करेंगे।  इस  खेल में बाबूलाल  मरांडी  कितने सफल होंगे, इस पर सबकी निगाह भी टिकी है। हालांकि फिलहाल मरांडी को यह लगता होगा कि उनकी राह का काँटा निकल गया लेकिन रघुवर दास की जो जमीन झारखंड में तैयार है और उनके लोग जो झारखंड की राजनीति में लगे हुए हैं उनसे मरांडी कैसे पार पाएंगे यह एक बड़ा सवाल है।

झारखंड बीजेपी में कहने को तो कई बड़े नाम है लेकिन बदलती राजनीति में जिस तरह से रघुवर दास ने अपनी हैसियत तैयार कर ली थी उससे पार्टी  के कई नेता नाराज भी हुए थे। पहला नाम तो अर्जुन मुंडा का ही ले सकते हैं। अर्जुन मुंडा  बीजेपी के बड़े नेता रहे हैं और मुख्यमंत्री की कुर्सी भी संभाल चुके हैं। अर्जुन मुंडा की  राजनीति अपनी तरह की रही है। वे आदिवासी हैं और सूबे की आदिवासी राजनीति में उनकी अलग पहचान भी है।  सूबे की राजनीति में अर्जुन मुंडा का अपना खेमा है और अपने लोग भी। उनके विधायक भी हैं और समर्थक भी। उनके विरोधी भी कम मनाही हैं।  लेकिन उनकी राजनीति का बड़ा सच ये भी है कि उनके काल में  सरकार की काफी बदनामी  हुई थी। खुद अर्जुन मुंडा भी बदनाम हुए थे। यही वजह है कि जब पिछली बार बीजेपी को सत्ता मिली तो अर्जुन मुंडा की जगह रघुवर दास को सीएम बनाया गया। पार्टी के भीतर भी इस पर काफी  कोहराम मचा था। पार्टी के लोग ही उनको  बाहरी मुख्यमंत्री के रूप मे चिन्हित किया था। बता दें कि रघुवर दास छत्तीसगढ़ से आते हैं और पिछड़े समाज से हैं। केंद्र में अगर पीएम मोदी और अमित शाह नहीं होते तो यह संभव था कि रघुवर दास कभी मुख्यमंत्री नहीं बनते लेकिन अमित शाह ने पूरी तैयारी के साथ रघुवर दास  को यह मौका दिया। रघुवर दास भी अपने मुताबिक़ सरकार को चलाते रहे लेकिन अंत समय में  भी बदनाम होकर ही निकले। उनपर पर भी कई आरोप लगे हैं।

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अब पार्टी चाहती है कि झारखंड की अगली राजनीति बाबूलाल मरांडी के जरिये हो। मरांडी की पहचान बीजेपी के बड़े नेताओं में  रही है। झारखंड का जब निर्माण हुआ तो इस प्रदेश का पहला सीएम बनने का भी उनको मौक़ा मिला। वे सरकार भी चलाते  रहे। कई क्षेत्रों में उन्होंने बेहतर काम भी किया लेकिन झारखंड में जो लूट खसोट की राजनीति रही है उसमे उनकी सरकार भी विपक्ष के निशाने पर रही। बाद में पार्टी से नाराज होकर मरांडी अलग भी हुए। अलग पार्टी भी बनाई। चुनाव भी लड़े और उनमे विधायक भी जीतकर आते रहे। अंत यही हुआ कि वे फिर से बीजेपी के साथ आये। अपनी पार्टी को बीजेपी में विलय कर लिया। आज वे बीजेपी के सबसे कद्दावर नेताओं मे शुमार हैं। ,बीजेपी के झारखंड क्षत्रप के रूप में आप उन्हें देख सकते हैं।

अब बीजेपी को भी लग रहा है कि मरांडी के जरिये ही पार्टी को झारखंड में मजबूती मिल सकती है। ऐसा हो भी सकता है। लेकिन बड़ा सवाल है कि रघुवर दास के राज्यपाल जाने और झारखंड छोड़ने के बाद उनके सहकर्मी आगे क्या करेंगे ? जो नेता,कार्यकर्त्ता और विधायक दास के खेमे में थे उनके साथ क्या होगा यह देखने की बात होगी। इसके साथ ही रघुबर दास के महामहिम बनने बाद झारखंड में पिछड़ों की राजनीति कौन करेगा यह भी एक अलग पहलु है। माना जा रहा है कि ओडिसा में अगले साल चुनाव होने हैं और फिर लोकसभा चुनाव भी है। ऐसे में जानकार यह भी कहते हैं कि रघुवर दास को ओडिसा भेजकर बीजेपी पिछड़ी समाज के वोट बैंक को साध रही है। ऐसा हो भी सकता है। इसका क्या लाभ मिलेगा यह तो देखना होगा। लेकिन अहम् बात तो यह है कि अगर रघुवर दास के झारखंड छोड़ने के बाद झारखंड के पिछड़ों के वोट बैंक में झामुमो ,राजद और कांग्रेस सेंध लगा देती है तो बीजेपी के लिए यह दाव महंगा पड़ सकता है।

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